इस पूरी सत्ता को उखाड़ फेंकने के बाद ही कोई सुधार हो सकता है ः केजरीवाल
राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध 'धर्मयुद्ध' की घोषणा
राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध 'धर्मयुद्ध' की घोषणा
अब से करीब साढ़े तीन हजार (भारतीय पुराणों के अनुसार करीब पॉंच हजार) वर्ष पूर्व इंद्रप्रस्थ (आधुनिक दिल्ली) एक अखिल भारतीय 'धर्मयुद्ध' का केंद्र बना था| कौरव शासनाध्यक्ष अंधे धृतराष्ट्र -जो अपनी प्रत्यक्ष दृष्टि ही नहीं, पुत्रमोह के कारण अपने अंतःकरण की विवेक एवं न्याय दृष्टि भी खो चुका था- के भ्रष्ट, अन्यायी एवं अत्याचारी शासन तंत्र के विरुद्ध ऐसे युद्ध की घोषणा की गई थी| वह एक महान युग-प्रवर्तक घटना थी, जिसका नेतृत्व युग पुरुष योगश्वर श्रीकृष्ण ने किया था| यद्यपि उसकी तुलना आज के किसी अन्य युद्ध या आंदोलन से नहीं की जा सकती, फिर भी आज के एक साहसी युवक ने जब इस देश की घोर भ्रष्टाचारग्रस्त राजनीति के खिलाफ ङ्गधर्मयुद्धफ की घोषणा की, तो सहज ही उस काल की स्मृति ताजा हो गई| कहा नहीं जा सकता कि इस नए घोषित युद्ध की परिणति क्या होगी, किंतु इसकी घोषणा मात्र से जैसी हलचल पैदा हुई है, उससे इतना तो दिखाई देने लगा है कि देश में बदलाव लाने वाली शक्तियॉं सक्रिय हो उठी हैं और आज नहीं तो कल, वे सफलता को अपने कदमों तले लाने में सफल अवश्य होंगी|
देश में राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने-अपने स्तर पर गैर राजनीतिक मुहिम चलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता गॉंधीवादी बुजुर्ग अन्ना हजारे और युवा योग गुरु बाबा रामदेव अब पीछे छूट चुके हैं, आगे आ रहे हैं अरविंद केजरीवाल, जिन्होंने इस २ अक्टूबर २०१२ को 'कांस्टीट्यूशन क्लब', दिल्ली के प्रांगण में अपना राजनीतिक दल बनाने तथा देशव्यापी राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक 'धर्मयुद्ध' चलाने की घोषणा की| एक ऐसा धर्मयुद्ध, जिसमें एक तरफ सारे राजनीतिक दल हैं और दूसरी तरफ देश की आम जनता| इस घोषणा के दौरान केजरीवाल ने एक नए किस्म की गांधी टोपी पहन रखी थी, जिस पर लिखा था ङ्गमैं आम आदमी हूँ|फ
अरविंद केजरीवाल अन्ना के अभियान की धुरी माने जा रहे थे| सामने का लोकप्रिय चेहरा अन्ना का था, लेकिन उसके पीछे अरविंद केजरीवाल की मशीनरी काम कर रही थी| अब अरविंद ने अन्ना से अपना रास्ता अलग कर लिया है| उन्होंने पक्ष-विपक्ष के सारे राजनीतिक दलों के खिलाफ एक साथ शंखनाद कर दिया है| २ अक्टूबर को पार्टी बनाने की घोषणा करते हुए केजरीवाल ने अपनी पार्टी के दृष्टिकोण पत्र का प्रारूप (ड्राफ्ट विजन डाकूमेंट) भी पेश किया| इसमें उन्होंने अपनी राजनीति और सत्ता के ढॉंचे के बारे में जो बातें कही हैं, वे अभी तो आकाशकुसुम ही लग रही हैं, फिर भी इन विचारों को लेकर आगे आने के उनके साहस की सराहना की जानी चाहिए| केजरीवाल ने वहॉं उपस्थित करीब एक हजार लोगों की भीड़ के सामने कहा कि 'यह आपकी पार्टी है, मेरी नहीं'| सभी समझते हैं कि यह केवल कहने की बातें हैं, वास्तव में कोई भी पार्टी हो अंततः वह उन लोगों की ही पार्टी बन जाती है, जो उसका संचालन करते हैं| अरविंद की अभी तो सारी बातें अनूठी हैं, इसलिए सभी लोग चकित होकर उनकी बातें सुन रहे हैं| जब उन्होंने यह कहा कि 'आज से अब इस देश की आम जनता राजनीति में प्रवेश करने जा रही है, भ्रष्ट नेताओं अब तुम्हारे दिन केवल गिने-चुने रह गए हैं' तो भारी करतल ध्वनि से इसका स्वागत हुआ| उन्होंने अपने दृष्टिकोण पत्र की बातें बताते हुए कहा कि 'हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि सरकारी आवासों में नहीं रहेंगे और लाल बत्ती वाली गाड़ी का भी इस्तेमाल नहीं करेंगे|' यही नहीं उनकी पार्टी सत्ता में आई तो 'आवश्यक वस्तुओं के दाम जनता की अनुमति के बिना नहीं बढ़ाए जाएँगे|' करीब दिन भर की सभा में केजरीवाल ने अपनी पार्टी की ओर से ढेरों वायदे किए| उन्होंने कहा कि ङ्गवह संसद का केवल चेहरा नहीं बदलना चाहते, बल्कि पूरी व्यवस्था बदलना चाहते हैं| उन्होंने वहॉं उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जब हमने 'जन लोकपाल' का मुद्दा उठाया, तो नेताओं ने कहा कि आप लोग खुद क्यों नहीं चुनाव लड़ के आते और कानून बनाने का प्रयास करते| कानून सड़क पर नहीं बनते, उन्हें बनाने का काम संसद में होता है और जनता के चुने हुए प्रतिनिधि यह कार्य करते हैं|' तो अब हम उन्हें चुनाव लड़कर दिखाएँगे| अब आज से देश की जनता राजनीति में प्रवेश कर रही है| 'सभी पार्टियों ने हमें धोखा दिया है| अब हम प्रार्थना नहीं करेंगे| गुजारिश नहीं करेंगे| अब यह खुली राजनीतिक जंग है|' ...अब देश का बजट संसद में नहीं, गली-कूचों में बनेगा| उन्होंने इसके लिए ब्राजील के एक शहर का उदाहरण भी पेश किया|
केजरीवाल ने अपने राजनीतिक संकल्प को दोहराते हुए बताया कि बहुत से लोगों का कहना है कि जनता को सीधे सत्ताशक्ति देना एक बेतुका व अव्यावहारिक विचार है, लेकिन मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि यह पूरी तरह संभव है| हम इसके ढांचे पर विचार कर रहे हैं और यदि सत्ता में आए तो इसे लागू करेंगे| केजरीवाल ने इस सभा में दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ बिजली तथा पानी की महंगाई को लेकर आंदोलन की एक शृंखला चलाने की घोषणा की| उन्होंने चेतावनी दी कि यदि बिजली पानी की बढ़ी दरें वापस नहीं ली गईं, तो चार नवंबर २०१२ को मुख्यमंत्री आवास का घेराव किया जाएगा तथा उसकी बिजली सप्लाई काट दी जाएगी|
केजरीवाल का साफ कहना था कि इस देश में कोई विपक्षी पार्टी नहीं है| सभी पार्टियॉं सत्ता में हैं| देश बिक रहा है और विपक्ष अपनी कोई भूमिका नहीं निभा रहा है, इसलिए यही वह समय है, जब इस आंदोलन को राजनीति में बदलना है| यदि हमने विलंब किया, तो अगले पॉंच वर्षों में देश बिक जाएगा| देश के नेता कहते हैं, कानून जनता नहीं बनाती| यह विधायकों और सांसदों जैसे कानून निर्माताओं का काम है| अधिकांश जनता ऐसे मामलों को समझती ही नहीं कि इसे कैसे किया जाए| तो हमारा कहना है कि संसद में बैठे क्या सारे लोग इसे समझते हैं| जब आधे सांसद निरक्षर हैं, तो उनको इसका अधिकारी कैसे कहा जा सकता है| यदि वे कानून बना सकते हैं, तो आम आदमी भी बना सकता है| यदि राबड़ी देवी बिहार चला सकती हैं, तो आम जनता कानून भी बना सकती है| केजरीवाल द्वारा प्रस्तुत दृष्टिकोण पत्र प्रायः वह सब कुछ शामिल है, जिसकी जनता की तरफ से आकांक्षा व्यक्त की जा सकती है| भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष तो उसमें शामिल है, साथ में मुद्रास्फीति पर नियंत्रण यानी महंगाई पर रोक, कृषि उत्पादों का उचित मूल्य निर्धारण एवं मतदाताओं को निर्वाचित प्रतिनिधियों को बुलाने तथा चुनावों में सभी उम्मीदवारों को खारिज करने का अधिकार दिलाना प्रमुखता से शामिल है| उन्होंने अपने दोनों हाथ उठाकर घोषणा की कि देश में अब एक धर्मयुद्ध छिड़ा है| देश के हर व्यक्ति को इसमें अपना-अपना पक्ष लेना है| तय करना है कि कौन किधर है| हमारा देश ङ्गवी.आई.पी.फ यानी अतिमहत्वपूर्ण लोगों का देश बन गया है, जिसमें आम आदमी के लिए कोई जगह नहीं रह गई है| लेकिन अब इस देश में केवल एक 'वी.आई.पी.' होगा और वह होगा ङ्गआम आदमीफ| 'मैं हूँ आम आदमी' और 'मुझे चाहिए जनलोकपालफ छपी टोपी पहने केजरीवाल ने घोषणा की कि अब मैं जीवन भर यही टोपी लगाऊँगा और इसके साथ अपना यह राजनीतिक एजेंडा भी घोषित कर दिया कि उनकी पार्टी अगले साल होने जा रहे दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भाग लेगी|
अपनी इस घोषणा के तीन दिन बाद ५ अक्टूबर को केजरीवाल तथा उनके साथी विधिवेत्ता प्रशांत भूूषण (सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता) दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में एक बड़ा धमाका किया| उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष तथा सत्तारूढ़ यू.पी.ए. की चेयरपर्सन सोनिया गॉंधी के दामाद राबर्ट वाड्रा को निशाना बनाया| उन्होंने सीधे आरोप लगाया कि राबर्ट वाड्रा ने देश की सबसे बड़ी 'रियल एस्टेट डेवलपर कंपनी' से ३०० करोड़ रुपये की रिश्वत ली और उसके बदले में दिल्ली, हरियाणा तथा राजस्थान की कांग्रेसी सरकारों ने डी.एल.एफ को हजारों करोड़ रुपये मूल्य की जमीनें तथा अन्य सुविधाएँ दिलवाईं|
केजरीवाल का कहना है कि उनके पास बहुत से लोगों के भ्रष्टाचार के दस्तावेजी सबूत हैं, जिन्हें वह समय-समय पर उजागर करेंगे| वह वर्तमान केंद्रीय सरकार के खिलाफ सीधे युद्ध पर उतर आए हैं| उनका सीधा कहना है कि ङ्गइस पूरी सत्ता को उखाड़ फेंकने के बाद ही कोई सुधार हो सकता है|फ उनका यह भी कहना है कि वे यह सबूत इसलिए सार्वजनिक कर रहे हैं, जिससे देश की जनता के दिल में बैठा डर दूर हो सके|
निश्चय ही केजरीवाल ने यू.पी.ए. सरकार के विरुद्ध अपना धर्मयुद्ध शुरू कर दिया है| संभव है वह इस सरकार को उखाड़ फेंकने में सफल हो जाएँ, लेकिन इसके बाद भी लाख टके का यह सवाल बचा रह जाता है कि क्या इससे व्यवस्था परिवर्तन का उनका सपना पूरा होगा? क्या इससे राजनीति का चेहरा बदलेगा? जवाब बहुत मुश्किल नहीं है| इस तरह के आंदोलनों से सरकार तो बदली जा सकती है, व्यवस्था नहीं| व्यवस्था बदलने के लिए एक विशाल सांगठनिक आधार चाहिए, जिसके लिए एक नहीं हजारों केजरीवालों की जरूरत है और वह भी ऐसे केजरीवालों की, जो देश को एक नई राजनीतिक संस्कृति तथा नई शासन व्यवस्था का सैद्धांतिक आधार दे सकें| जातिवाद, क्षेत्रवाद एवं सांप्रदायिकता इस देश में किसी भी बदलाव के मार्ग की सबसे बड़ी बाधाएँ हैं, जो व्यक्ति या संगठन इनके समाधान का कोई सैद्धांतिक आधार दे सकेगा, वही इस देश में व्यवस्था परिवर्तन की आधारशिला रख सकेगा|
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