क्या विकीलीक्स ने कोई अपराध किया है !
‘विकीलीक्स‘ नामक वेबसाइट ने अमेरिकी गोपनीय दस्तावेजों के करीब ढाई लाख पृ ष्ठ एक साथ प्रकाशित करके अमेरिकी सरकार और उसकी दोमंुही कूटनीति को सरे बाजार नंगा कर दिया है। इससे अमेरिका ही नहीं, दुनिया के वे सारे देश खफा हैं, जिनकी ढकी छुपी सच्चाई उजागर हो गयी है। इस वेबसाइट को बंद कराने तथ इसके संस्थापक पत्रकार जुलियन असांजे को पकड़ने का विश्वव्यापी अभियान शुरू हो गया है। एक पूरी महाशक्ति और उसके संगीसाथी एक व्यक्ति के पीछे पड़ गये हैं। इधर अपने देश में ‘नीरा राडिया टेप' को लेकर हंगामा खड़ा है। राडिया टेप के प्रकाशन को भी निजी गोपनीयता तथ पत्रकारिता व्यवसाय की मर्यादा का उल्लंघन बताया जा रहा है। सवाल है कि क्या ‘विकीलीक्स' के संचालक तथा ‘राडिया टेप' के प्रकाशक अपराधी हैं या इन्होंने जनहित का ऐसा काम किया है, जिसकी प्रशंसा होनी चाहिए।
मीडिया के गोपनीय दस्तावेजों, पत्राचारों तथा वार्तालापों के उजागर होने को लेकर इस समय प्रायः पूरी दुनिया में तहलका मचा हुआ है। यह तहलका मचाने वाले हैं 40 वर्षीय आस्ट्रेलियायी पत्रकार, प्रकाशक तथा ‘विकीलीक्स' एवं ‘व्हिशिल ब्लोअर' नामक वेबसाइटों के संस्थापक जुलियन असांजे। इसी समय भारत में एक और गोपनीयता का मामला भड़का हुआ है, जिसने कई राजनेताओं व उद्यमियों के साथ कई शीर्ष पत्रकारों को भी कटघरे में खड़ा कर रखा है। ‘नीरा राडिया टेपकांड' के नाम से चर्चित इस मसले ने देश में पत्रकारिता की व्यावसायिक सीमाओं व उसके कर्तव्यों तथा लोगों के गोपनीयता के अधिकार को लेकर एक नई बहस खड़ी कर रखी है।
लोकतंत्र में सूचना के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथ गोपनीयता के सरकारी व वैयक्तिक अधिकारों को लेकर नई सदी में शुरू हुई यह बिल्कुल नई बहस है। अमेरिका जो अभिव्यक्ति स्वतंत्रता व सूचना के अधिकार का अब तक सबसे बड़ा प्रवक्ता था, वह विकीलीक्स द्वारा लीक किये गये दस्तावेजों से सर्वाधिक बौखलाया हुआ है। अमेरिकी विदेश मंत्री हिले क्लिंटन ने इसे दुनिया पर हमला करार दिया है। असांजे की इस करतूत से अमेरिका को सर्वाधिक शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है। उसका दोहरा चेहरा पूरी दुनिया के सामने उजागर हो गया है। शर्मिंदगी के कारण् हिलेरी को पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी तथा अर्जेंटीना की राष्ट्रपति क्रिस्टीना किर्सकर से माफी मांगनी पड़ी है।
अमेरिका अब असांजे की वेबसाइट बंद कराने पर लगा हुआ है, लेकिन असांजे कहीं न कहीं से अभी भी अपनी वेबसाइट को जिंदा रखे हुए हैं। अमेरिकी डोमेन सेवा ने अमेरिकी सरकार के दबाव में गत शुक्रवार को अपनी ‘डोमेन नेम‘ प्रणाली से ‘विकीलीक्स डॉट ओआरजी' का नाम हटा दिया। असांजे ने इसके बाद ‘अमेजन सर्वर' से संपर्क किया, लेकिन उसने राजनीतिक दबाव के कारण उनका अनुरोध अस्वीकार कर दिया। असांजे ने इसके बाद एक और अमेरिकी डोमेन सेवा केलीफोर्निया स्थित ‘एवरीडन्स‘ की सेवा ली। उसने पहले तो स्वीकार कर लिया, लेकिन बाद में उसने भी असांजे की वेबसाइट को अपने सर्वर से हटा दिया। उसका कहना था कि इस वेबसाइट के चलते उस पर इतने ‘हैकर‘ हमले हो रहे थे कि उसके अन्य 5 लाख ग्राहकों के लिए खतरा पैदा हो गया था। अंततः स्विट्जरलैंड की एक डोमेन सेवा ने उसे अपने सर्वर में जगह दी और उस पर विकीलीक्स डॉट सीएच के नाम से साइट शुरू हुई। अब खबर है कि उसे भी बंद कर दिया गया है।
वास्तव में अमेरिका ने पूरे देश में अपने दूतावासों तथा अन्य एजेंसियों को इस कार्य पर लगा दिया है कि विकीलीक्स कहीं से कुछ लीक न करा पाए।
अमेरिकी गृह सुरक्षा से संबद्ध सिनेट कमेटी (सिनेट कमेटी आन होम लैंड सिक्योरिटी) के अध्यक्ष सिनेटर जो, लीवरमैन ने इसकी कमान संभाल रखी है। जुलियन असांजे कहां है, इसका कुछ पता नहीं है। अमेरिकी एजेंसियां उसकी तलाश में हैं। एक खबर के अनुसार वह ब्रिटेन के किसी गुप्त स्थान पर छिपा हुआ है, लेकिन नेट पर वह अपनी उपस्थिति बनाए हुए है। उसने अपने ट्विटर पर अमेरिकी राजनीतिक दबाववश अपनी वेबसाइट को हटाने वाली डोमेन सेवाओं की खिल्ली उड़ाई है। मुख्यतः किताबें बेचने का धंधा करने वाली अमेजन को तो उसने कहा है कि यदि वह अभिव्यक्ति स्वतंत्रता की मदद नहीं कर सकती, तो उसे किताबें बेचने का धंधा बंद कर देना चाहिए।
आश्चर्य की बात है कि दुनिया का कोई देश फिलहाल असांजे या उनकी वेबसाइट के साथ नहीं है। ऐसे में स्विट्जरलैंड में ‘इंटरनेट स्वतंत्रता तथा पारदर्शिता’ (इंटरनेट फ्रीडम एंड टं्रासपैरेंसी) के लिए काम करने वाली संस्था ‘स्विस पाइरेट्स पार्टी‘ उनकी मदद के लिए सामने आयी, लेकिन वह भी दूर तक साथ् नहीं दे सकी। एक खबर के अनुसार इसी संस्था के द्वारा असांजे को ‘विकीलीक्स डॉट सीएच‘ के पते से अपनी वेबसाइट चलाने की सुविधा मिली थी। इसकी स्थापना 2009 में हुई थी। इसके संस्थापक डेनिस सिमोनेट के अनुसार विकीलीक्स के लिए यह नया पता 6 महीने पहले ही रजिस्टर कर लिया गया था। अब इस स्विस पते के भी सेवा से बाहर हो जाने के बाद विकीलीक्स का क्या होगा पता नहीं। यद्यपि यह तय है कि असांजे कहीं न कहीं से किसी न किसी माध्यम से इसे जारी रखने का प्रयत्न करेगा, क्योंकि अभी उसके पास काफी ‘गोपनीय‘ मसाला बचा हुआ है। लेकिन अमेरिकी सरकार के साथ उसका यह गुरिल्ला युद्ध कब तक चल पाएगा और खासकर उस स्थिति में जब दुनिया की प्रायः सभी सरकारें इस मामले में अमेरिकी प्रशासन के साथ हों। अमेरिका इस समय एक तरफ दुनिया भर के देशों के साथ अपने कूटनीतिक संबंधों को संभालने में लगा है, क्योंकि विकीलीक्स द्वारा एक साथ करीब ढाई लाख गोपनीय दस्तावेजों के सार्वजनिक कर दिये जाने से उसकी स्थिति काफी शर्मनाक बन गयी है, दूसरी तरफ वह अपने गोपनीय दस्तावेजों की सुरक्षा तथा उस तक लोगों की पहुंच को सीमित करने में लगा है। अमेरिकी सिनेट ने अभी एक प्रस्ताव पारित करके अमेरिकी फौज और खुफिया सेवा में काम करने वाले मुखबिरों के नाम छापने को गैरकानूनी बना दिया है। उसने अपने यूरोपीय मित्र देशों से भी कहा है कि वे असांजे की वेबसाइटों को रोकें तथा अपने गोपनीय दस्तावेजों की सुरक्षा को मजबूत करें। विकीलीक्स के इस खुलासे के प्रथम शिकार जर्मनी के विदेशमंत्री गुइडो वेस्टरवेले के एक सहायक (उनके चीफ ऑफ स्टाफ) हुए हैं, जिन्हें सूचना लीक करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया है। विकीलीक्स पर आयी कुछ सूचनाओं के लिए माना गया कि उसके बाहर जाने के लिए उपर्युक्त अधिकारी ही जिम्मेदार है। इधर, फ्रांस की सरकार ने कहा है कि वह विकीलीक्स को फ्रांस के सर्वर से ‘ब्लॉक‘ करने के रास्ते तलाश कर रही है। फ्रांस के उद्योग मंत्री एरिक बेसान ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को पत्र लिखकर कहा है कि विकीलीक्स फिलहाल फ्रांस की कंपनी ‘ओ.वी.एच.' के सहारे काम कर रही है। बेसान ने लिखा है कि ‘उन्हें फ्रांस के जरिए ऐसी साइट चलाना कतई कबूल नहीं है, जो कूटनीतिक रिश्ते की गोपनीय बातों को सार्वजनिक करके लोगों की जान को खतरे में डाल रही है। इसलिए आप लोग तुरंत हमें ऐसा तरीका सुझाएं, जिससे कि इस इंटरनेट साइट की फ्रांस में ‘होस्टिंग' तत्काल समाप्त की जा सके।'
वास्तव में विकीलीक्स के खुलासे से अमेरिका के पाकिस्तान, खाड़ी के कुछ देशों, यूरोपीय देशों, रूसी नेताओं आदि के साथ संबंध बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। यद्यपि द्विपक्षीय स्तर पर सभी एक-दूसरे का हाल जानते हैं, लेकिन कोई स्पष्ट प्रमाण न होने से खतरनाक बातें भी संदेह के पर्दे में छिपी रहती हैं, किंतु दस्तावेजी प्रमाणों के सामने आ जाने के बाद सारी सच्चाई जानते हुए भी परस्पर आंखें मिलाना कठिन हो जाता है। सच कहें तो विकीलीक्स ने अब तक एक भी ऐसा दस्तावेज उजागर नहीं किया है, जो वास्तव में चौंकाने वाला हो, लेकिन दस्तावेजों का प्रमाण सार्वजनिक कर देना अपने आपमें एक बहुत बड़ा धमाका है।
यदि भारत के संदर्भ में बात करें, तो ऐसा कुछ भी अब तक सामने नहीं आया है, जिससे भारत को शर्मिंदगी उठानी पड़े, बल्कि पाकिस्तान के बारे में जो भारी खुलासा हुआ है, उससे भारत को कूटनीतिक लाभ ही हुआ है। भारत के संबद्ध अब तक एक ही दस्तावेज विकीलीक्स पर आया है, जो पाकिस्तान-अफगानिस्तान के लिए नियुक्त अमेरिका के विशेष दूत रिचर्ड होलब्रुक तथा भारत की विदेश सचिव निरूपमा राव के बीच बातचीत से संबद्ध है। इससे भारत की प्रतिष्ठा ही बढ़ी है कि वह कितना सिद्धांत निष्ठ है तथा अफगानिस्तान व पाकिस्तान के बारे में उसका दृष्टिकोण कितना रचनात्मक है। हां आगे कुछ यदि भारतीय नेताओं व उनके सिद्धांतों व नीतियों तथा देश की राजनीतिक स्थिति के मूल्यांकन संबंधी कोई दस्तावेज सामने आता है, तो बात दीगर है।
उधर पाकिस्तान व अमेरिका के बीच संबंधों के तो इतने दस्तावेज उजागर हुए हैं कि दोनों ही देश सरे बाजार नंगे हो गये हैं। विकीलीक्स ने पाकिस्तान में अमेरिका की पूर्व राजदूत अन्ने डब्लू पैटर्सन के तमाम उन पत्रों को प्रकाशित किया है, जिसमें उसने पाकिस्तान की राजनीति और उसके नेताओं की सोच का कच्चा चिट्ठा पेश किया है। असांजे ने पैटर्सन को पाकिस्तान की सच्चाई उजागर करने वाली सर्वाधिक महत्वपूर्ण राजनयिक के रूप में पेश किया है। पैटर्सन ने अपने पत्रों में अमेरिकी सरकार को साफ लिखा है कि किसी भी प्रकार की सैनिक व आर्थिक सहायता देकर पाकिस्तान को अफगान तालिबानों के विरुद्ध नहीं खड़ा किया जा सकता। तालिबान वास्तव में पाकिस्तान के अपने रक्षा कवच हैं, जिनसे वह कभी अपने संबंध नहीं तोड़ सकता। अफगानिस्तान में सक्रिय तालिबान संगठन भी वहां पाकिस्तान के हितों की रक्षा कर रहे हैं। वे वहां भारत का वर्चस्व रोकने के सबसे बड़े हथियार हैं। उन्होंने इस बात का भी खुलासा किया है कि पाकिस्तान क्यों ओसामा बिन लादेन तक अमेरिका को नहीं पहुंचने देता। उनके अनुसार पाकिस्तान डरता है कि यदि ओसामा हाथ लग गया, तो फिर अमेरिका पाकिस्तान को छोड़ सकता है। इस सबके बावजूद अमेरिका पाकिस्तान को अरबों डॉलर की सैनिक व असैनिक सहायता दिये जा रहा है। इसकी व्याख्या में पैटर्सन ने लिखा है कि पाकिस्तान यह अच्छी तरह जानता है कि अमेरिका उसे नहीं छोड़ सकता। वह पाकिस्तान सरकार व सेना की मजबूरियों को भी समझता है। वह जानता है कि आम पाकिस्तानी भावना के खिलाफ उसे बहुत अधिक नहीं दबाया जा सकता। दूसरी तरफ अमेरिका यह भी समझता है कि पाकिस्तान उसकी सहायता के बिना जिंदा नहीं रह सकता।
मोटे तौर पर यह बात सभी जानते हैं कि पाकिस्तान की राजनीति तथा सेना में अमेरिका का गहरा दखल है, लेकिन अब विकीलीक्स पर जारी दस्तावेजों से यह प्रमाण मिल रहा है कि पाकिस्तान में सेनाध्यक्ष या इसकी गुप्तचर संस्था आई.एस.आई. प्रमुख की नियुक्ति अमेरिकी स्वीकृति से होती है। एक दस्तावेज के अनुसार पाकिस्तान में फिलहाल विपक्ष के नेता पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने उस समय अमेरिकी सरकार के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया, जब सेनाध्यक्ष के पद पर कयानी की नियुक्ति हुई। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के मामले में अमेरिका की कितनी गहरी पैठ है। पाक स्थित अमेरिकी दूतावास से अमेरिकी सरकार के बीच हुए पत्राचार से ही यह पता चलता है कि पाक राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को यह खतरा था कि वहां सैनिक विद्रोह हो सकता है और उनकी हत्या भी की जा सकती थी। इसके लिए उन्होंने पहले से ही प्रबंध कर लिया था। उन्होंने अपने बेटे बिलावल को कहा था कि यदि उनकी हत्या हो जाए, तो वह राष्ट्रपति पद के लिए उनकी बहन फरयाल तालपुर का नाम प्रस्तावित करें।
विकीलीक्स के दस्तावेजों से खाड़ी के देशों का अंतर्द्वंद्व भी उजागर होता है। जैसे सउदी अरब तथा मिस्र आदि देश इजरायल के विरुद्ध फलस्तीन का समर्थन करते हैं तथा अमेरिका के विरुद्ध ईरान के साथ भी खड़े नजर आते हैं, लेकिन वास्तव में ईरानी परमाणु बम से वे सर्वाधिक डरे हैं और इस बात के समर्थक हैं कि अमेरिका या इजरायल ईरानी परमाणु ठिकानों पर हमला करके उन्हें नष्ट कर दें।
ऐसी और भी असंख्य बातें। अब सवाल है कि क्या इन दस्तावेजों को उजागर करके जुलियन असांजे ने कोई अपराध किया है, जिसकी उन्हें सजा मिलनी चाहिए या उन्होंने व्यापक मानवता के हित में भारी खतरा उठाकर एक जनहितैषी पत्रकार की भूमिका निभायी है। निश्चय ही असांजे ने किसी निजी स्वार्थ अथवा किसी देश या संगठन के हित में यह कार्य नहीं किया है। शायद ही कोई इस बात का विरोध करे कि लोकतंत्र का विकास शासन सत्ता की बढ़ती पारदर्शिता में ही निहीत है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक संबंधों में भी यदि पारदर्शिता रखी जाए, तो बहुत सारे संकटों से यों ही बचा जा सकता है। धोखे या छल पर टिकी कूटनीति से मनुष्यता का कोई भला नहीं हो सकता। इसलिए यदि ईमानदारी से कुबूल करें, तो जुलियन असांजे ने अमेरिकी कूटनीति का मुखौटा उतार कर विश्व राजनय का बहुत बड़ा उपकार किया है। उसने गोपनीयता की सीमा तथा क्षेत्र को नये ढंग से परिभाषित करने की आवश्यकता भी रेखांकित की है।
इध्र अपने देश के नीरा राडिया कांड ने भी देश की कलुषित हो चली पत्रकारिता के परिमार्जन की एक शुरुआत की है। यद्यपि नीरा राडिया के फोन स्वयं सरकार द्वारा टेप कराये गये थे, लेकिन देश की दो पत्रिकाओं ने उसे प्रकाशित करने का जो साहस दिखाया, वह प्रशंसनीय है। जिसे लेकर अब देश के भीतर फिर पत्रकारिता के आदर्शोंं और उसकी व्यावसायिक सीमाओं के बारे में एक खुली बहस शुरू हुई है। अब यह भी बात उठ रही है कि बड़े पत्रकारों का संपादकों को भी अपनी संपत्ति की घोषणा करनी चाहिए। भारत के एडिटर्स गिल्ड की बीते सप्ताह हुई बैठक में पत्रकारिता की आचार संहिता को लेकर साहसपूर्ण बहस की शुरुआत हुई। गिल्ड के अध्यक्ष राजदीप सरदेसाई ने यद्यपि निजी गोपनीयता का आदर करना पत्रकारिता के व्यावसायिक आदर्श का हिस्सा बताया और कहा कि राडिया फोन टेप को प्रकाशित करना पत्रकारिता की व्यावसायिक मर्यादा के अनुरूप नहीं है, लेकिन उसी बैठक में उपस्थित अन्य कई संपादकों ने सरदेसाई का खुला विरोध किया और कहा कि किसी तरह के राजनीतिक व आर्थिक कदाचार को उजागर करना पत्रकारिता के व्यावसायिक आदर्शों के प्रतिकूल नहीं, बल्कि उसका मूल आधार है। इस बैठक में ऐसे प्रश्न भी उठाये गये कि कई पत्रकार अपना निजी चैनल शुरू कर लेते हैं, आखिर इसके लिए उनके पास इतना पैसा कहां से आ जाता है। प्रहारों से घिरे सरदेसाई को कहना पड़ा कि एडिटर्स गिल्ड की आगामी 24 दिसंबर को होने वाली बैठक में संपादकों की अपनी संपत्ति की घोषणा करने के बारे में विचार किया जा सकता है।
यह सच्चाई है कि आज भारत की ही नहीं, प्रायः दुनिया भर की पत्रकारिता सूचना और मनोरंजन उद्योग में बदल गयी है और सत्ताधारियों तथा उद्योग व्यवसाय जगत से उसका चोली-दामन का साथ हो गया है। शीर्ष पत्रकार, शीर्ष व्यवसायी और शीर्ष राजनेता तीनों एक ही थैली के चट्टे-बट्टे बन गये हैं। उनमें से बिरला ही कोई सिरफिरा जुलियन असांजे जैसा निकल आता है, जो अपनी जान की बाजी लगाकर भी सत्य को उजागर करने का भार स्वतः अपने कंधे पर उठा लेता है। होना तो यह चाहिए था कि असांजे को 2010 का ’वर्ष पुरुष' (मैन ऑफ द इयर) घोषित किया जाता, लेकिन यह न भी हो तो भी वर्ष 2010 के साथ विकीलीक्स और जुलियन असांजे का संबंध इस तरह स्थापित हो गया है कि इसे सरकारी गोपनीयता कानून की ओट में चलती कपटी और दोगली राजनीति व कूटनीति के विरुद्ध विश्वव्यापी आंदोलन की एक शुरुआत के रूप में सदैव याद किया जाएगा।
5/12/2010
1 टिप्पणी:
किसी ने यह संदेह भी ज़ाहिर किया कि अमेरिका जानबूझ कर इन्हें लीक करा रहा है :)
एक टिप्पणी भेजें