रविवार, 26 दिसंबर 2010

विश्व इतिहास का रुख बदलने वाला दशक



21वीं शताब्दी का पहला दशक पूरा होने जा रहा है। यों यह पूरा दशक ही निर्णायक घटनाओं से भरा रहा है, लेकिन इसका अंतिम वर्ष 2010 विशेष रूप से अनुप्रेरक व जागरूकता बढ़ाने वाला सिद्ध हुआ है। मंदी से जूझने के बहाने जहां इसने पौरूष की गहरी प्रेरणा दी है, वहीं विकीलीक्स जैसे खुलासों द्वारा विश्व समाज को अधिक विवेकशील बनाने का काम किया है। भारत को शायद विकीलीक्स से सर्वाधिक लाभ हुआ है और उससे भी ज्यादा लाभ अपने देशी रहस्योद्घाटनों से हुआ है। हम्माम में सब नंगे हैं, इसका यथार्थबोध शायद पहली बार एक साथ पूरे देश को हो सका है। हो सकता है अगला दशक इससे कुछ वाजिब सबक लेकर आगे बढ़े सके।

काल गणना और उनके नामकरण की पद्धतियां भी अजीब हैं। 21वीं शताब्दी के पहले दशक को यूरोपीय पद्धति में सन् 2000 के दशक की संज्ञा दी गयी। यह दशक 2009 में पूरा हो गया। इस तरह दूसरा दशक 2010 से शुरू हुआ, इसलिए 2010 को इस शताब्दी के दूसरे दशक का पहला साल कह सकते हैं। लेकिन विडंबना यह है कि इस शताब्दी के पहले दशक का पहला साल यानी सन् 2000 तो पिछली शताब्दी की गणना में चला गया, इसलिए पहले दशक की व्याप्ति 20वीं और 21वीं दोनों शताब्दियों में हो गयी। इस दृष्टि से शुद्ध रूप से इस शताब्दी का पहला दशक यह 2010 से शुरू होने वाला दशक ही है। और यदि हम दशक के नामकरण के पचड़े में न पड़ें, तो बीत रहा यह वर्ष 2010 इक्कीसवीं शताब्दी के पहले दशक (जो 2001 से प्रारंभ हुआ) का अंतिम वर्ष है और इसके बाद 2011 से दूसरे दशक का पहला वर्ष शुरू होने जा रहा है।

जो भी हो, लेकिन हम कह सकते हैं कि 2001 से शुरू होने वाला इस शताब्दी का पहला दशक पूरी दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा है। 2001 से 2010 तक का यह समय दुनिया की राजनीतिक, आर्थिक तथ रणनीतिक दिशा को बदलने वाला रहा है। और इसका अंतिम वर्ष 2010 पूरी दुनिया के लिए भले ही कुछ कम महत्वपूर्ण रहा हो, लेकिन भारत के लिए तो अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है।

2001 की सबसे महत्वपूर्ण घटना न्यूयार्क पर हुए आतंकवादी हमले की थी, जिसने इस शताब्दी को राजनीतिक व सामाजिक सोच-विचार के एक नये धरातल पर ही ला खड़ा किया। इसके साथ अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी आतंकवाद को पहली बार विश्व स्तर पर पहचाना गया और उसके खतरे से लड़ने के लिए पश्चिमी देशों में सबसे पहले अमेरिका ने कमर कसी। इस तरह 2001 विश्व इतिहास में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का एक उल्लेखनीय विभाजक बिंदु बन गया। लोग अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर 2001 के पूर्व व 2001 के बाद की बात कहकर चर्चा करने लगे।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया में कई क्षेत्रीय युद्ध हुए, जिनमें महाशक्तियों का समर्थन और उनकी सेनाएं भी शामिल थीं, लेकिन 11 सितंबर 2001 की इस घटना के बाद विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका सीधे युद्ध में उतरा। उसने वैश्विक इस्लामी आतंकवादी की रीढ़ तोड़ने के लिए पहले अफगानिस्तान और फिर इराक पर हमला किया। अफगानिस्तान में उसका युद्ध अभी भी जारी है। इस दशक के अंतिम वर्षों में अमेरिकी राजनीति में भी बदलाव आया। दशक के अंतिम वर्षों में फिर डेमोक्रेट्स का शासन आया और चमत्कार यह हुआ कि राष्ट्रपतीय चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के पूर्व तक लगभग अज्ञात एक अश्वेत नागरिक को पहली बार अमेरिका के श्वेत सदन (ह्वाइट हाउस) की गद्दी मिली। उनका ख्याल है कि 2010 के साथ युद्धों का अध्याय खत्म होगा और अमेरिकी सेनाएं 2011 के मध्य से अफगानिस्तान छोड़कर वापस लौटने लगेंगी। इराक से अमेरिका की अंतिम लड़ाकू ब्रिगेड 2010 में ही वापस हो चुकी है। कल्पना कर सकते हैं कि 2011 से शुरू होने वाला दशक शांति का दशक हो, लेकिन जीवन-जगत का यथार्थ कुछ सत्ताधारियों की इच्छाओं से ही नियंत्रित नहीं होता। इराक का युद्ध एक व्यक्ति के खिलाफ युद्ध था, इसलिए उसके मरने के साथ वह समाप्त हो गया, लेकिन अफगानिस्तान का युद्ध किसी एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि एक प्रवृत्ति, एक विचारधारा और उसकी वैश्विक महत्वाकांक्षा के खिलाफ है। इसलिए यह उतनी आसानी से समाप्त होने वाला नहीं है, जितनी आसानी की कल्पना अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति कर रहे हैं।

खैर, अब यदि अकेले इस 2010 पर ध्यान केंद्रित करें, तो इस वर्ष की विश्व स्तर की सबसे बड़ी घटना है विकीलीक्स द्वारा किया गया अमेरिकी कूटनीति का पर्दाफाश। उसने अमेरिकी विदेश विभाग व रक्षा विभाग के कई लाख दस्तावेजों को गोपनीयता की अंधेरी कोठरी से निकालकर दुनिया की आंखों के सामने फैला दिया है। गत अप्रैल महीने में उसने सबसे पहले इराक युद्ध से संबंधित दस्तावेज अपने वेबसाइट पर प्रसारित किये। उसके बाद जुलाई में अफगान वार से संबंधित गोपनीय दस्तावेजों को उजागर किया। और इसके बाद तीसरे चरण में नवंबर में उसने एक साथ ढाई लाख से अधिक गोपनीय पत्राचार तथा अन्य दस्तावेज दुनिया में फैला दिये। इस पर्दाफाश से अमेरिका ही नहीं, तमाम दुनिया के लोग सकते में आ गये। पश्चिम के तमाम देश व राजनेता इतने घबड़ा गये कि वे विकीलीक्स के संस्थापक पत्रकार जुलियन असांजे को ‘साइबर आतंकवादी' बताने लगे और उस पर कार्रवाई का रास्ता ढूंढ़ने लगे, लेकिन अफसोस कि उन्हें कोई कानून ही नहीं मिला। नया कानून बनाएं, तो भी उसकी गिरफ्त में कम से कम असांजे तो आने वाला नहीं।

अब इसमें अमेरिका व अन्य देशों की भले ही भारी फजीहत हुई हो, लेकिन विकीलीक्स के इस खुलासे से भारत को भारी लाभ हुआ है, क्योंकि इससे सबसे बड़ी बात यह हुई है कि उसके पड़ोसी पाकिस्तान की सारी कलई खुल गयी है और उसके सारे राजनीतिक व सैनिक नेता चौराहे पर नंगे हो गये हैं। अमेरिकी दस्तावेजों ने पाकिस्तान ही नहीं, स्वयं अंकल सैम (अमेरिका) का कोट, पतलून, शर्ट सब उतार लिया। विकीलीक्स ने अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति से सारी पर्तों को इस तरह उघाड़ दिया है कि अग दशकों तक किसी राष्ट्रनेता के कूटनीतिक बयानों पर कोई भरोसा नहीं करेगा। इस दौरान भारत में तो पर्दाफाश की और अद्भुत घटनाएं हुईं। ऐसी घटनाएं, जिन्होंने विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, पत्रकारिता और कार्पोरेट जगत सबको नंगा करके रख दिया। कार्पोरेट लाबीस्ट नीरा राडिया 2010 की सबसे बड़ी शख्सियत के रूप में सामने आयी। ब्रिटिश पासपोर्ट रखने वाली भारतीय मूल की इस महिला की अद्भुत क्षमता से लोग चकित हैं। उद्योग व्यवसाय जगत में सत्ताधारियों से काम निकलवाने के लिए अपने एजेंट नियुक्त करना कोई नई बात नहीं, लेकिन वह एजेंट राडिया जैसी हैसियत पा ले, यह असंभव सी कहानी लगती है। देश की आम जनता को 1 लाख 76 हजार करोड़ का नुकसान पहुंचाने वाला 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला कल्पनातीत व्यापार लगता है। भले ही यह आंकड़ा कल्पित है, लेकिन यह बाजार भाव पर की गयी गणना के यथार्थ पर आधारित है। इसके समानांतर आर्थिक घोटाले का दूसरा कांड राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन से जुड़ा है, जिसके केंद्र में कांग्रेस के नेता और खेल आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी हैं। उनके साथ भी किसके-किसके कितने तार जुड़े हैं, कहना कठिन है।

और 2010 की इससे भी अधिक चौंकाने वाली घटना तो न्यायपालिका से जुड़ी है। पता चला कि किसी राजनेता को बचाने या केंद्र सरकार की मदद करने में भारत के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं। क्या कोई विश्वास कर सकता है कि भारत की सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश जो इस समय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष है, वह झूठ बोल सकता है। लेकिन यह झूठ मीडिया में सबके सामने आया। शायद इस बात पर भी विश्वास करना कठिन होगा कि एक सरकारी अफसर जिस पर खुद भ्रष्टाचार का मुकदमा चल रहा हो और चार्जशीट दाखिल की जा चुकी हो, उसे भ्रष्टाचार पर निगरानी करने वाली देश की सर्वोच्च संस्था का शिखर पुरुष यानी सी.वी.सी. (चीफ विजिलेंस कमिश्नर या मुख्य सतर्कता आयुक्त) नियुक्त किया जा सकता है। लेकिन भारत में ऐसा हुआ और व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना, फटकार के बाद भी अपने पद पर कायम है।

हम्माम में सब नंगे की कहावत तो बहुतों ने सुनी होगी, लेकिन शायद ही किसी को सत्ता के हम्माम में घुसे तमाम लोगों को एक साथ नंगा देखने का अवसर मिला हो, लेकिन भारत में 2010 के इस वर्ष में हर एक को यह देखने का अवसर मिल गया है। सत्ताधीशों के साथ संत और मठाधीशों के चारित्रिक पतन की कहानियां इसी वर्ष में प्रमुखता से उजागर हुई हैं। इसलिए निश्चय ही इस वर्ष 2010 का भारत की आम जनता पर बहुत बड़ा एहसान है, क्योंकि उसने प्रायः पूरी दुनिया का नग्न यथार्थ ब्योरेवार सप्रमाण उसके सामने प्रस्तुत कर दिया है। यों यदि पिछले एक दशक पर मनुष्यता के दूसरे कोण से दृष्टिपात करें- जिसमें राजनीति, कूटनीति के दृश्य ओझल रहें तथा युद्ध और सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएं भी दरकिनार की जा सके, तो कई रोचक और सुखकर उपलब्धियां भी दिखायी पड़ेंगी। इस अवधि में वैज्ञानिकों ने कृत्रिम रूप से जीवित कोषिका बनाने में सफलता प्राप्त की, चांद पर पानी का भंडार खोज निकाला, मंगल पर खोजी यान उतारा और अपनी आकाशगंगा के परे दूसरी आकाशगंगा में पृथ्वी से मिलता-जुलता एक ग्रह भी ढूंढ़ निकाला। वास्तुविदों ने दुबई में ’बुर्ज खलीफा' जैसी एक चमत्कारी संरचना खड़ी कर दी (जनवरी 2010), जो धरती पर मानवनिर्मित सबसे उंची (828 मीटर यानी 2717 फिट) वस्तु है। और यह भी रोचक है कि इसके विभिन्न अंशों को खरीदने वालों में भारतीयों की संख्या सबसे बड़ी है। यानी इसके बड़े भाग पर भारतीयों का कब्जा है। इसके पहले इसी दशक की (2004) सबसे उंची अट्टालिका ’ताईपेई 101’ (509.2 मीटर) थी। खेलों में 2008 के बीजिंग ओलंपिक का आयोजन भी किसी चमत्कार से कम नहीं था। इस अवधि में पहले कृत्रिम हृदय का प्रत्यारोपण हुआ, तो कृत्रिम किडनी के निर्माण में सफलता प्राप्त हुई। कृत्रिम गर्भाशय निर्माण का काम बस पूरा ही होने वाला है।

विभीषिकाओं में सर्वाधिक गंभीर विभिषिका विश्व व्यापी आर्थिक मंदी रही, जिससे उबरने का संघर्ष अभी भी चल रहा है, लेकिन इसने दुनिया के तमाम धन्नासेठ देशों की जड़ता को तोड़ा है। आने वाला दशक इससे लाभान्वित ही होगा।

दुनिया सतत आशावाद पर टिकी है। और यदि उसके सामने से राजनीति और कूटनीति के भ्रम के पर्दे दूर हो जाएं, तो यथार्थ से जूझने का उसका साहस और बढ़ जाता है। वैश्विक स्तर पर 'विकीलीक्स’, भारत में 'राडिया टेप’ आदि से उजागर हुए तथ्य शायद विश्व मानव समाज को अधिक विवेकशील बनाने में सहायक होगा। भारत भी निश्चय ही इनसे लाभन्वित ही होगा। आज की युवा पीढ़ी यदि इनसे सबक लेगी, तो अगले दशक को आकार देने वाली उसकी भूमिका निश्चय ही अधिक सशक्त और साहसपूर्ण होगी, जिसका लाभ पूरे विश्व समाज को प्राप्त होगा। शताब्दी के इस पहले दशक ने नये युग की भूमिका निर्धारित कर दी है। लेकिन युग के कर्णधारों को अपना रास्ता तो खुद ही बनाना पड़ेगा।

26/12/2010

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

‘ 21वीं शताब्दी के पहले दशक को यूरोपीय पद्धति में सन् 2000 के दशक की संज्ञा दी गयी। ’

हमें सहस्त्राब्दी आने की जल्दी थी पर दशाब्दी जाने की सुध नहीं ":) इतिहास के पन्नों को छोटे से लेख में समेटने के लिए बधाई। पिछली दशाब्दी का दृश्य आंखों के सामने से गुज़र गया॥