महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष राज ठाकरे ने अब राज्य विधानसभा पर भी मराठी का डंडा घुमाना शुरू कर दिया है। उन्होंने सभी नवनिर्वाचित विधायकों को धमकी दी है कि यदि उन्होंने मराठी के अलावा और किसी भाषा में सदन की सदस्यता की शपथ ली तो फिर देख लेंगे कि सदन में उपस्थित उनके 13 विधायक क्या करते हैं। उनका कहना है कि सदन में केवल मराठी भाषा का व्यवहार होना चाहिए।राज्य विधानसभा में राज्य की भाषा का व्यवहार हो, इसमें किसी को आपत्ति नहीं हो सकती, लेकिन औपचारिक शपथ ग्रहण तक में इसकी बाध्यता को तो कतई लोकतांत्रिक करार नहीं दिया जा सकता। राज ने सदन में हिंदी तक के प्रयोग का निषेध किया है। उन्होंने हिंदी का विशेष तौर पर उल्लेख करते हुए उपर्युक्त चेतावनी दी है। हिंदी इस देश की राष्टï्रभाषा एवं राजभाषा है। किसी भी विधानसभा या केंद्र शासित प्रदेश में उसके प्रयोग का निषेध नहीं किया जा सकता। लोग स्वेच्छया मराठी का इस्तेमाल करें, यह अच्छी बात है, किन्तु किसी को बलपूर्वक हिंदी के प्रयोग से रोकना न केवल अलोकतांत्रिक, बल्कि एक तरह का राष्टï्र विरोधी कार्य है।इसे इस देश के संविधान व राजनीतिक प्रणाली की दुर्बलता ही कहा जाएगा कि ऐसे लोगों और उनके संगठनों को राजनीतिक मान्यता मिल जाती है और वे देश की विधायिकाओं में भी पहुंच जाते हैं, जिनका लोकतंत्र की सामान्य मर्यादाओं में भी कोई विश््वास नहीं है। अभी तक जम्मू-कश्मीर ही एक ऐसा राज्य था, जहां कोई विधायक स्वेच्छया हिंदी का इस्तेमाल नहीं कर सकता और यदि वह हिंदी में बोलना चाहता है, तो उसे इसके लिए स्पीकर से पूर्वानुमति लेनी पड़ती है, लेकिन अब महाराष्टï्र भी ऐसा राज्य बन जाएगा, जिसकी विधानसभा में दादागिरी के बल पर हिंदी का निषेध रहेगा।यहां यह उल्लेखनीय है कि महाराष्टï्र में यों भी सदन के भीतर मराठी का ही बोलबाला रहता है। बहुत कम लोग हिंदी और उससे भी कम लोग अंग्रेजी बोलते हैं, लेकिन राज ने यह धमकी देकर केवल यह जाहिर करने की कोशिश की है कि वह मराठी के एकमात्र अलम्बरदार हैं, बाकी सब मराठी विरोधी। वह अपने चाचा बाल ठाकरे के मराठावाद से भी आगे निकलना चाहते हैं। पिछले दिनों उन्होंने मराठावाद का जो हिंसक प्रदर्शन किया, उसका उन्हें चुनावों में जो शानदार प्रतिशाद मिला, उससे वह अब और अधिक उत्साहित हैं। ऐसा न होता, तो वह खुलेआम एक प्रेस कांफें्रस करके राज्य के 275 विधायकों को यह धमकी देने का साहस नहीं कर सकते थे।देश में यदि भाषा आधारित क्षेत्रीयताओं के आधार पर राज्यों का गठन किया गया है, तो वहां क्षेत्रीय राजनीति का उभरना या क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा का पैदा होना स्वाभाविक है। बाल ठाकरे ने इस क्षेत्रीयता की भावना को भुनाकर ही अपना राजनीतिक आधार बनाया। लेकिन आज की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में क्षेत्रीय अस्मिता के नाम पर किसी क्षेत्रीय दल को राष्टï्र विरोधी गतिविधियों की अनुमति तो नहीं दी जा सकती। क्या राज्य की कांग्रेस पार्टी इसका कोई प्रतिकार करेगी।
बुधवार, 4 नवंबर 2009
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1 टिप्पणी:
राजनीतिक स्वारथ कै
खेल है ई ......
सगरे कोना मा भाँग परी |
सुकरिया.....
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