फिर पतंजलि आश्रम से उठी एक राजनीतिक क्रांति
राजनीतिक भ्रष्टाचार के विरुद्ध ऐलाने जंग : बाबा रामदेव
अब से करीब 2 हजार साल पहले भी महर्षि पतंजलि के आश्रम से क्रांति की एक ज्वाला उठी थी, जिसने देश में व्याप्त क्लैव्य और निराशा के विरुद्ध शौर्य और दीप्ति का नव संचार किया था। आज फिर पतंजलि योग पीठ से एक नव्य क्रांति ने जन्म लिया है, जिसने भ्रष्टाचार, अपसंस्कृति तथा राजनीतिक कदाचार के विरुद्ध देशव्यापी आंदोलन का रूप ले लिया है। उस ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की क्रांति के कर्णधार थे सेनापति पुष्यमित्र शुंग, तो इस नवयुग की क्रांति के संवाहक है योग गुरु बाबा रामदेव, जिन्होंने गत 27 फरवरी की दिल्ली में आयोजित अपनी पहली रैली में बेईमानी की राजनीति के खिलाफ बाकायदे जंग का एलान कर दिया है।
गोनर्दीय महर्षि पतंजलि ने अपने समय में योग-दर्शन और व्याकरण शास्त्र का ही कीर्ति ध्वज नहीं स्थापित किया था, उन्होंने एक विराट राजनीतिक व सांस्कृतिक क्रांति भी की थी। उन्होंने क्लीव हो चले भारत वर्ष में चेतना व स्वाभिमान का मत्र भी फूंका था। अब यदि उनसे अनुप्राणित कोई व्यक्ति योग साधना के प्रचार के साथ देश में राजनीतिक व सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए भी निकल पड़ा हो, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं।
ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी का वह काल इस देश में घोर निराशा का काल था, जब महान सम्राट अशोक के वंशज भी घोर विलासी, कायर और भ्रष्ट हो गये थे। देश का स्वाभिमान नष्ट हो चला था। विदेशी यवन हमलावरों ने पूरे मध्य देश को रौंद डाला था। बौद्ध मठाधीश अपने वर्चस्व के लिए विदेशियों को आमंत्रित करने में संकोच नहीं कर रहे थे। ऐसे में महर्षि पतंजलि ने ही परिवर्तन का बीड़ा उठाया था। शायद महाभाषण लिखने में भी उनका मन नहीं लग रहा था। उनका हृदय देश की दुरावस्था पर रोदन कर रहा था। तभी तो वह व्याकरण के नियमों का उदाहरण देते हुए भी देश की समकालीन स्थिति को ही रेखांकित कर रहे थे। महाभाष्य में अनद्यतन भूत (एडजसेंट पास्ट) का उदाहरण देते हुए महर्षि लिखते हैं ‘अरुणद यवनः साकेतम् अरुणद यवनः माध्यनिकाम‘। यवनों ने साकेत को रौंद डाला है, मध्य देश को रौंद डाला है। अशोक के वंशज मगधराज वृहद्र था का सेनापति पुष्यमत्रि शुंग पतंजलि के शिष्यों में था। व्रहद्रथ ’अहिंसा परमोधर्मः' का जप करने वाला एक कायर शासक था, जो परंपरा से प्राप्त राज्यश्री का उपभोग कर रहा था। देश किस विपत्ति से आक्रांत है, इसकी तरफ से आंख बंद किये हुए था। उसकी सेना मात्र शोभा की वस्तु बनकर रह गयी थी। सैनिक भी देश की दुरावस्था से चिंतित थे, लेकिन राज्यादेश के बिना वे क्या कर सकते थे। पतंजलि के आश्रम में भी चिंता थी, क्योंकि बाहरी आक्रमणों से देश की संस्कृति के लिए भी खतरा उत्पन्न हो गया था। सवाल किसी राज्य की रक्षा का नहीं, भरतीय अस्मिता की रक्षा का था। पतंजलि की दृष्टि में केवल पुष्यमित्र ही इस संकट का समाधान कर सकते थे। उन्होंने दायित्व शिरोधार्य किया और ईसा पूर्व 185 में सैनय स्कंधावार में परेड का निरीक्षण करते समय पूरे सैन्य बल के सामने पुष्यमित्र ने राजा वृहद्रथ का वध करके सत्ता शक्ति अपने हाथ में ले ली। सेना ने सेनापति पुष्यमित्र शुंग की जय जयकार की। आज की भाषा में इसे पतंजलि के आश्रम में हुए षड्यंत्र के परिणामस्वरूप मगध में हुआ सैनिक तख्ता पलट कहा जाएगा, लेकिन उस समय देश की सांस्कृतिक अस्मिता की रक्षा का यह एकमात्र उपाय था। इस कांड के पीछे पुष्यमित्र का कोई सत्ता लोभ नहीं था, यह इसी बात से प्रमाणित है कि उसने जीवन भर राजा की उपाधि धारण नहीं की। वह राज्य पर नियंत्रण के बाद भी सेनापति ही बना रहा और अपनी पहचान ‘सेनापति पुष्यमित्र शुंग‘ के रूप में ही बनाए रखी।
आज फिर पतंजलि आश्रम (योगपीठ) से एक भगवाधारी साधु निकला है। आज युग बदल चुका है, राजनीति व सत्ता का स्वरूप बदल चुका है, लेकिन संकट वही पुराना है- मूल्यों का संकट, अस्मिता का संकट। आज लोकतंत्र का युग है। लोकतंत्र में इस लोकतांत्रिक व्यवस्था का हर प्रबुद्ध नागरिक सैनिक है, इसलिए व्यवस्था परिवर्तन की बात इस नागर-सैन्य-स्कंधावार में ही की जाएगी। आज वृहद्रथ एक व्यक्ति नहीं, एक सहस्रानन समूह है। मूल्यनिष्ठ लोक शक्ति की संघटित उर्जा से ही इसका विनाश और आगे का पुननिर्माण संभव है। बाबा रामदेव नामधारी वह भगवाधारी साधु इसी उर्जा को जगाने का अभियान छेड़े हैं। परिणाम क्या होगा पता नहीं, लेकिन अभियान एक नये युग पथ का अनुसंधान करता है, इसमें दो राय नहीं।
बाबा रामदेव ने बीते रविवार 27 फरवरी को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित अपनी पहली राजनीतिक रैली में (जिसमें करीब एक लाख लोग शामिल हुए) देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक जंग का एलान किया। उन्होंने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यू.पी.ए. सरकार को अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार करार दिया और कहा कि देश में 99 प्रतिशत भ्रष्टाचार की जिम्मेदार कांग्रेस ही है, जिसका देश में सर्वाधिक समय तक शासन रहा है। उन्होंने प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को एक ईमानदार प्रधानमंत्री स्वीकार किया, लेकिन कहा कि वह नितांत भ्रष्ट नेताओं से घिरे हुए हैं। उन्होंने कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी पर सीधा प्रहार करते हुए कहा कि इस देश में केवल एक परिवार ने ही कोई त्याग बलिदान नहीं किया है, लेकिन देश की तमाम सरकारी योजनाएं उसी एक परिवार के नाम पर चलती हैं। महात्मा गांधी के नाम पर भी केवल एक योजना है। शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस आदि के नाम से कोई योजना क्यों नहीं। भारत रत्न का हकदार इन शहीदों को क्यों नहीं माना गया। केंद्र सरकार तथा भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए बाबा ने एलान किया कि वह अपना भ्रष्टाचार विरोधी अभियान अहिंसा और शांति को अपनाते हुए चलाएंगे। यह अभियान किसी व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार, काला धन और भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ है। उनकी चेतावनी थी कि सरकार सुधर जाए, नहीं तो देश के एक करोड़ लोग दिल्ली आने के लिए तैयार हैं।
बाबा ने यह स्वीकार किया कि उन्हें मौत की धमकियां मिल रही हैं, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि बाबा को कोई मार नहीं सकता, क्योंकि वह स्वयं भ्रष्ट लोगों की मौत बनकर आया है। भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के द्वारा आयोजित बाबा की इस रैली, समाज चिंतक गोविंदाचार्य, वरिष्ठ वकील रामजेठ मलानी, स्वामी अग्निवेश, पूर्व आयकर आयुक्त विश्वबंधु गुप्ता, जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी, भाजपा सांसद व पत्रकार बलवीर पुंज, आई.टी.आई. एक्टिविस्ट अरविंद केजरीवाल, प्रख्यात समाजसेवी अन्ना हजारे, भागवत कथाकार विजय कौशलजी महाराज तथा चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह व राजगुरु के परिवार वाले लोग भी उपस्थित थे। विश्व बंधु गुप्ता ने रैली में बोलते हुए कहा कि विदेशों में काला धन जमा करने वाले जिन लोगों के नाम भारत सरकार को प्राप्त हुए हैं, उनमें बड़े उद्योगपतियों के ही नहीं, कई शीर्ष नेताओं के भी नाम हैं, इसी कारण सरकार उन नामों को सार्वजनिक करने से बच रही है। उन्होंने साफ कहा कि इन नेताओं में कांग्रेस के दो नेता केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री विलासराव देशमुख तथा सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल के नाम भी शामिल हैं। गुप्ता ने कहा कि गृहमंत्री पी. चिदंबरम विदेशी बैंक में दाउद कंपनी के करीबी हसन अली द्वारा एक लाख करोड़ रुपये जमा कराने के मुद्दे पर कार्रवाई करने वाले थे, लेकिन वे इसलिए चुप हो गये कि उनकी पार्टी के भी दो लोगों का नाम भी काला धन जमा करने वालों की सूची में उजागर हो गया।
बाबा ने इस दिन रैली के साथ-साथ राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाकिल तथा प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मिलकर उन्हें भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई के लिए एक ज्ञापन सौंपने का कार्यक्रम भी रखा था। इसके लिए राष्ट्रपति की ओर से तो उन्हें समय मिल गया, लेकिन प्रधानमंत्री ने समय नहीं दिया। राष्ट्रपति को सौंपे गये ज्ञापन में 30 लाख लोगों के हस्ताक्षर के साथ मांग की गयी है कि भ्रष्टाचार के मुकाबले के लिए देश में कठोर कानून बनाये जाएं।
बाबा रामदेव का कांग्रेस के साथ सीधा द्वंद्व उनकी अरुणाचल प्रदेश की यात्रा के दौरान कांग्रेस सांसद निनांग एरिंग के साथ् हुए टकराव के बाद शुरू हो गया। बाबा अपनी भारत स्वाभिमान यात्रा कार्यक्रम के अंतर्गत पूरे देश का भ्रमण कर रहे हैं। इस यात्रा के दौरान आयोजित योग शिविरों में वह योग प्रशिक्षण व चरित्र निर्माण के उपदेश के साथ अपने राजनीतिक अभियान की भी बातें कर रहे हैं। इसी क्रम में वह अरुणाचल प्रदेश पहुंचे थे और पूर्वी सियांग जिले के पाशीघाट योग शिविर में बोल रहे थे। हर शिविर में वह योगाभ्यास के बाद देश को भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने तथ विदेशों में छिपाकर रखे गये 30 लाख करोड़ की संपत्ति भारत वापस लाने की बात करते हैं। उनका आरोप है कि विदेशी बैंकों के गुप्त खातों में देश के भ्रष्टाचारियों का 500 लाख करोड़ रुपया जमा है। वह सवाल करते हैं कि देश में स्विस बैंकों की 4 तथा इतालवी बैंकों की 8 शाखाएं खोलने की इजाजत क्यों दी गयी है। बाबा के प्रवचनों से क्षुब्ध ऐरिंग ने योग शिविर में ही आकर गालियां देनी शुरू कर दीं। उन्होंने बाबा को ‘ए ब्लडी इंडियन डॉग‘ कहा। यह केवल बाबा को गाली नहीं थी, बल्कि ‘इंडिया' (पांरपरिक भारत) को भी गाली थी। यह भारतीय परंपरा और संस्कृति को भी गाली थी। इस पर बाबा का तथा उनके समर्थकों का भड़कना स्वाभाविक था। इसके बाद बाबा ने कांग्रेस पर अपना हमला और तेज कर दिया। उन्होंने असम व नगालैंड आदि के शिविरों में और तीखे प्रहार किये। इस पर असम कांग्रेस के पार्टी प्रभारी महासचिव ठाकुर दिग्विजय सिंह मुकाबले के लिए सामने आए। उन्होंने बाबा पर जवाबी हल्ला बोला।
दिग्विजय सिंह ने कहा कि दूसरों पर काला धन इकट्ठा करने का आरोप लगाने के पहले बाबा स्वयं अपनी आमदनी और व्यवसाय का खुलासा करें। उनके पास 10 से भी कम वर्षों में उतनी संपत्ति कहां से आ गयी कि वह हरिद्वार में अपना विशाल आश्रम ही नहीं खड़ा कर लें, बल्कि यूरोप में एक पूरा द्वीप ही खरीद लें। बाबा ने इसका तीखा जवाब दिया। उनका कहना था कि उनके नाम न तो कोई बैंक खाता है, न एक इंच जमीन। जो कुछ है सब पतंजलि योगपीठ, दिव्य योग मंदिर तथा स्वाभिमान ट्रस्ट के नाम है। उन्होंने यह भी बताया कि योगपीठ और दिव्य योग मंदिर का कुल 1100 करोड़ का वार्षिक टर्न ओवर है, जिसका पैसे-पैसे का हिसाब है। उनके पास तो भी धन आया, वह लोगों द्वारा दिया गया दान है। वह हर वर्ष ऑडिट कराते हैं और सरकार जब चाहे उसकी जांच करा ले। इस पर दिग्विजय सिंह ने फिर अपना पैंतरा बदलते हुए कहा कि क्या वह यह बता सकते हैं कि उन्हें दान में काला धन नहीं दिया गया। क्या उस धन पर आयकर दिया गया है।
दिग्विजय सिंह की प्रेरणा से कांग्रेस की कुछ और इकाइयों ने बाबा पर हमला शुरू किया। पार्टी की अरुणाचल प्रदेश इकाई ने बाबा रामदेव से कहा कि वे अपनी ‘फंडिंग‘ का स्रोत बताएं। अरुणाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता विशल पी. नाबान का आरोप था कि ाबा की यह यात्रा राजनीतिक योग का प्रचार मात्र बहाना है, उनका लक्ष्य राजनीतिक है। उत्तराखंड के कुछ कांग्रेसी विधायकों ने कहा कि बाबा को खुद अपनी संपत्तिायों की जांच का प्रस्ताव करना चाहिए, जिससे वह आरोपों से अपने को मुक्त कर सकें।
सवाल है कि कांग्रेस स्वयं क्यों नहीं बाबा की संपत्तियों की जांच कराने की कार्रवाई शुरू करती। कांग्रेस सत्ता में है। सत्ता की सारी मशीनरी उसके पास है। इसके लिए दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को कोई बयान देने के बजाए सीधे सरकारी कार्रवाई शुरू कर देनी चाहिए। लेकिन सरकार शायद सीधी कार्रवाई से डरती है, क्योंकि यदि बाबा की संपत्तियों की जांच कार्रवाई शुरू की गयी, तो उसे देश की सैकड़ों अन्य संस्थाओं की जांच करानी पड़ेगी, जिनमें मुस्लिम व ईसाई संस्थाएं भी हैं। सरकार में यह साहस नहीं कि वह इन संस्थाओं की जांच करा सके, इसलिए वह बाबा की संस्था को भी छूते डरती है और केवल विरोधी प्रोपेगंडा करके बाबा की जबान पर अंकुश लगाना चाहती है।
इस पृष्ठभूमि में अपनी 27 फरवरी को दिल्ली रैली में बाबा बहुत खुलकर बोले। इस रैली में दिया गया उनका वक्तव्य निश्चय ही तिलमिला देने वाला था, लेकिन इसके जवाब में पार्टी के अधिकृत प्रवक्ताओं ने जो तर्क देना शुरू किया, वे इतने लचर हैं कि उन्हें किसी भी तरह स्वीकार नहीं किया जा सकता। दिल्ली रैली के बाद कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि ‘बाबा अध्यात्म से भटक कर सस्ती राजनीति करने लग गये हैं। भगवाधारी साधुओं को धर्म और राजनीति में घालमेल नहीं करना चाहिए। उन्हें समाज में अपनी प्रतिष्ठा का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। भगवाधारी लोग सोच-समझकर निर्ण लें कि उन्हें क्या बोलना चाहिए या क्या करना चाहिए, क्योंकि उसका समाज पर व्यापक असर पड़ता है।'
अभिषेक सिंघवी, भारतीय संस्कृति के एक पंडित पिता की संतान हैं, लेकिन शायद उन्हें उत्तराधिकार में वह संस्कृति बोध नहीं मिला है। भारतीय परंपरा में भगवा रंग संसार या समाज से पलायन का रंग नहीं, बल्कि उच्च संकल्पों का रंग है। यह अग्नि की तेजोमय लपटों से लिया गया है। भारतीय भगवा ध्वज भी अग्नि की उर्ध्वमुखी तिकोनी लपटों की अनुकृति है। इस देश में जब भी भ्रष्टाचार व अनाचार बढ़ा है, भगवाधारियों ने उसमें हस्तक्षेप किया है। भगवान व्यास, वशिष्ठ, विश्वामित्र, परधुराम जैसे पौराणिक काल के ही नहीं, आधुनिक काल के महर्षि पतंजलि विद्यारण्य स्वामी व समर्थ गुरु रामदास जैसे संतों ने राजनीतिक परिवर्तनों के लिए अपना पथ परिवर्तन किया। और लोकतंत्र में तो जिस किसी को वोट देने का अधिकार है, उसे राजनीति में हस्तक्षेप करने और अपनी भूमिका अदा करने का भी अधिकार है।
बाबा रामदेव किसी एकांतिक पारलौकिक साधना-उपासना वाले बाबा या सांप्रदायिक दीक्षा देने वाले बाबा नहीं है। वह किसी पारलौकिक सत्ता की कृपा या भ्य का भी उपदेश नहीं देते। इसलिए उनकी गणना अन्य सांप्रदायिक व दार्शनिक-धार्मिक गुरुओं में नहीं की जा सकती। वह शुद्ध लौकिक जीवन के उपदेष्टा है और लौकिक साधना से लौकिक-शारीरिक-मानसिक स्वाध्याय व समृद्धि की बातें करते हैं। बाबा ने योग साधना व स्वास्थ्य विज्ञान के प्रचार के साथ यदि अपना कोई औद्योगिक साम्राज्य खड़ा किया है, तो यह कोई संवैधानिक या कानूनी अपराध नहीं है। यदि इसमें कोई अपराध हो रहा हो, तो सरकार को उसकी जांच करानी चाहिए और देश के कानून के तहत सजा देनी चाहिए। बाबा यदि राजनीतिक सत्ता प्राप्ति की महत्वाकांक्षा पालते हों, तो यह भी कोई अपराध नहीं है। यदि यह अपराध है, तो देश के सारे राजनेता अपराधी हैं, क्योंकि वे तो सबके सब सत्ता की महत्वाकांक्षा वश ही राजनीति में हैं। और उस आकांक्षा को पूरा करने के लिए हर तरह के भ्रष्ट और अपराधिक तौर तरीके अपना रहे हैं। ऐसे में यदि बाबा रामदेव मूल्य आधारित किसी राजनीति का श्रीगणेश कर रहे हैं, तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए।
राजनीतिक भ्रष्टाचार सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता रहे, देश लुटता रहे, नागरिक अपनी विपन्नता पर रोते रहें और जिन्होंने भगवा धारण कर लिया हो, वे केवल पूजा पाठ, प्रवचन व आध्यात्मिक चिंतन में ही लगे रहे, वे राजनीति की तरफ आंख उठा कर न देखें, यह कोई स्वस्थ सलाह तो नहीं कही जा सकती। सच कहा जाए, तो देश जब संकट में हो तो साधु संतों को सबसे पहले उसकी रक्षा में आगे आना चाहिए और यदि न आएं, तो वे साधु-संत कहलाने के काबिल नहीं। अभी ‘आर्ट ऑफ लिविंग‘ के आचार्य श्री श्री रविशंकर ने भी बाबा रामदेव का समर्थन करते हुए काले धन और भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी आवाज उठायी है। उन्होंने कहा है कि यह दुर्भाग्य पूर्ण है कि सरकार उन लोगों को बचा रही है, जो काला धन छिपा रहे हैं। उन्होंने साफ कहा कि राजनीति मेरे जीवन का हिस्सा नहीं और कोई राजनीतिक पार्टी बनाने में भी मेरी रुचि नहीं, लेकिन हम सुधारकगण भ्रष्टाचार और सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध संघर्ष में पूरी तरह एक हैं। केवल सुधारकगण ही नहीं, आज इस देश, समाज व मनुष्यता के प्रति प्रेम व आस्था रखने वाला हर ईमानदार व प्रबुद्ध नागरिक बाबा के साथ है। आज यवनों ने नहीं, भ्रष्टाचार ने, अपसंस्कृति ने, बेईमानी ने, धोखाधड़ी ने इस पूरे देश को रौंद डाला है। महर्षि पतंजलि की राष्ट्र चेतना व धर्मचेतना (न्याय चेतना) एक बार फिर जागृत हो उठी है, माध्यम शायद सेनापति पुष्यमित्र शुंग की जगह इस बार रामदेव बन गये हैं। आशा की जानी चहिए कि अधिक कुछ नहीं, तो देश की राजनीति में एक चारित्रिक बदलाव लाने में तो अवश्य सफल होंगे।
6/03/2011
2 टिप्पणियां:
रामदेवजी कोई धर्माचार्य नहीं बल्कि एक योग गुरू हैं, यह सही है...पर राजनीति और योग दो अलग क्षेत्र हैं। देखना यह है कि हर नागरिक की तरह वे भी आज की राजनीति से त्रस्त हैं पर उन्हें क्या आम नागरिक जैसी स्वतंत्रता हमारे नेता उन्हें देते हैं? अभी से उनपर दोष मढ़ने में कोई कोर-कसर नहीं की जा रही है, यद्यपि उनके साथ समाज के बुद्धिजीवी जुड़ रहे हैं :(
Ram dev par aaj taak koe iljam nahi tha paat. cruption ke against aawaj uthane paar uski enquary kyo.AgarPolitical Leaders sachche hai to voh sbse pahle apni enquaries karwaye. Ram dev ko india ka nagrik hone ke naate apne molik adhikaro la pryog karne ka pura adhikar kannon ne diya hai to vo log kaise chchin sakte hai.Aur rahi baat jansabha ki rajnaitic leadero ki relly mai campasities se jayada log haote hai aur accedent.fuel and tranpotaion , trafiic jams . kya polic ne kabhi eske baare me ya suprime court ne kisi se pucha .Voh log rallies me milion rupees barbar karte hai .desh ka dhan barbad kar rahe hai.
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