रविवार, 16 जनवरी 2011

श्रीनगर में तिरंगे को मिल रही चुनौती !



भारतीय जनता पार्टी ने आगामी 26 जनवरी गणतंत्र दिवस को जम्मू कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के लालचौक में तिरंगा फहराने का संकल्प लिया है। इसके जवाब में उस दिन वहां के अलगाववादी संगठनों ने कश्मीरियों को शांतिपूर्वक लालचौक की ओर कूच करने का आह्वान किया है। एक अलगाववादी नेता मोहम्मद यासीन मलिक ने चुनौती दी है उस दिन दुनिया देखेगी कि वहां किसका झंडा उंचा रहता है। उनकी यह चेतावनी भी है कि यदि भाजपा ने तिरंगा लहराने की कोशिश की तो कश्मीर में ही नहीं पूरे इस उपमहाद्वीप में आग लग जाएगी। राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भाजपा नेताओं से अपील की है कि वे तिरंगा फहराने का संकल्प वापस ले लें लेकिन इस पर सवाल किया जा रहा है कि वहां तिरंगा जलाने पर तो कोई रोक नहीं मगर उसे फहराने का इतना विरोध क्यों ?

 
भारतीय जनता पार्टी की युवा शाखा भारतीय जनता युवा मोर्चा ने 12 जनवरी को कोलकाता से ‘राष्ट्रीय एकता यात्रा' का प्रारंभ किया। यह यात्रा एक दर्जन से अधिक राज्यों से गुजरते हुए 26 जनवरी को जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के लाल चौक पहुंचकर वहां भारत का राष्ट्रीय तिरंगा फहराकर भारत की भौगोलिक एकता का जयघोष करेगी। इस यात्रा के जवाब में जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठन जे.के.एल.एफ. (जम्मू-कश्मीर) के अध्यक्ष मोहम्मद यासीन मलिक ने कश्मीरियों का आह्वान किया है कि 26 जनवरी को वे शांतिपूर्वक लाल चौक की ओर कूच करें। मलिक का कहना है कि उस दिन दुनिया देखेगी कि लाल चौक पर किसका झंडा उंचा रहता है। कश्मीर की अन्य अलगाववादी पार्टियों ने मलिक के इस आह्वान का समर्थन किया है। हुर्रियत कांफ्रेंस के तथाकथित नरम गुट के कार्यकारिणी की बैठक में इसका विधिवत समर्थन किया गया। अध्यक्ष मीर वायज उमर फारुक की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में प्रो. अब्दुल गनी बट, बिलाल गनी लोन, मौलाना अब्दुल तारी आदि प्रायः सभी वरिष्ठ नेताओं ने भाग लिया।

यासीन मलिक का कहना है कि अपने युवा संगठन की कश्मीर चलो यात्रा को रवाना करते हुए भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडगरी ने कोलकाता में जो कुछ कहा है, वह जम्मू-कश्मीर जनता के साथ सीधे युद्ध की घोषणा है। जम्मू-कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है, किसी की निजी जागीर नहीं। यहां की जमीन के लोग उसके वास्तविक मालिक हैं। भाजपा के लोग वोट बैंक की राजनीति मालिक हैं। भाजपा के लोग वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं, लेकिन वे यह नहीं समझ रहे हैं कि जो कुछ वे करने जा रहे हैं, उससे केवल कश्मीर नहीं यह पूरा उपमहाद्वीप जल उठेगा। भाजपा जब सत्ता में थी, तब उसने श्रीनगर में राष्ट्रीय ध्वज फहराने की कोई पहल नहीं की। 1992 के बाद से एक बार भी उसने यह नहीं सोचा, तो अब वह क्यों यहां झंडा फहराने का अभियान शुरू कर रही है।

जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भाजपा नेताओं से अपील की है कि वे लाल चौक पर तिरंगा फहराने का अपना कार्यक्रम वापस ले लें। 26 जनवरी पर राज्य के जिला मुख्यालयों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया ही जाता है, फिर लाल चौक पर उसे निजी तौर पर फहराने की जिद क्यों ? यह वास्तव में कश्मीरी युवकों को भड़काने वाला काम है। उन्होंने भाजपा की यह कहकर निंदा भी की कि जब तक देश में कहीं आग न लगी रहे, तब तक उसे संतोष नहीं होता। कश्मीर घाटी में लंबी अशांति के बाद शांति की स्थिति पैदा हुई है, तो भाजपा के लोग फिर वहां आग भड़काने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा नेताओं का कहना है कि लाला चौक पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज जलाने की छूट है, लेकिन उसे फहराया नहीं जा सकता। वहां पाकिस्तान के झंडे फहराये जा सकते हैं, भाजपा के नहीं। कश्मीर सरकार यदि वहां झंडा जलाने से नहीं रोक सकती, तो फिर वह वहां उसे फहराने से क्यों रोकना चाहती है। उमर इसके जवाब में कहते हैं कि जो नेश्नलिस्ट नहीं हैं, उनसे हमें क्यों आखिर अपनी तुलना करनी चाहिए।

उमर अब्दुल्ला की बात सही है। राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर निश्चय ही उनकी पहली चिंता यही होनी चाहिए कि राज्य में शांति रहे, कानून व्यवस्था बनी रहे और लोगों के दैनंदिन जीवन में कोई बाधा न पड़े, किंतु कश्मीर की यही चिंता देखते-देखते तो यहां तक आ पहुंची है कि अब कश्मीर के अलगाववादी नेता यह कहने लगे हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर के बारे में उन्हें एक पार्टी के तौर पर नहीं, कश्मीर के मालिक (मास्टर) के तौर पर शामिल किया जाए। यह प्रस्ताव जे.के.एल.एफ. के नेता यासीन मलिक व हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीर वायज उमर फारुक दोनों ने की है। अगले महीने भूटान में ‘सार्क' (दक्षिण एशियायी क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के विदेश मंत्रियों की बैठक के दौरान भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्री अलग से भी मिलने वाले हैं। उनकी बातचीत में कश्मीर का मुद्दा भी उठेगा ही, क्योंकि यह हो ही नहीं सकता कि पाकिस्तान कश्मीर का मुद्दा न उठाए। अंतर्राष्ट्रीय बैठकों के अवसर पर तो वह कश्मीर का राग छोड़े बिना मानता ही नहीं।

यहां यह उल्लेखनीय है कि कश्मीर की समस्या न तो भारत-पाकिस्तान की समस्या रह गयी है और न कश्मीरियों की भौगोलिक क्षेत्रीयता की। वह इस्लाम की समस्या बन गयी है। इसीलिए अब कश्मीर समस्या को देश की मुस्लिम समस्या से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वह पहले से भारतीय उपमहाद्वीप की मुस्लिम समस्या के रूप में पहचाना जाता रहा है। बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुस्लिम देशों में इसकी शिकायत की जाती रही है कि भारत का आम मुसलमान कश्मीर के मसले के साथ अपने को क्यों नहीं जोड़ता। इसी उद्देश्य से हुर्रियत कांफ्रेंस के नेताओं सैयद अली शह गिलानी व मीर वायज उमर फारुक तथा जे.के.एल.एफ. के यासीन मलिक ने देश के विभिन्न अंचलों में सेमीनार व गोष्ठियों के बहाने कश्मीर के सवाल को भारत के आम मुसलमानों के बीच ले जाने की योजना बनायी, जिसके अंतर्गत दिल्ली, कोलकाता, चंडीगढ़ तथा जम्मू आदि में सेमीनार के आयोजन किये गये। मुस्लिम संस्थाओं विशेषकर मुस्लिम शैक्षिक संस्थाओं में इसे लेकर गोष्ठियों की श्रृंखला चलाने के कार्यक्रम बनाये जा रहे हैं।

अभी जामिया मिलिया इस्लामिया में आयोजित कश्मीर संबंधी एक सिम्पोजियम (वे फार्वर्ड इन कश्मीर)  में केंद्रीय गृहसचिव जी.के. पिल्लै को आमंत्रित किया गया। पिल्लै ने वहां बताया कि कश्मीर समस्या के समाधान का रास्ता सुझाने के लिए नियुक्त वार्ताकारों की त्रिसदस्यीय टीम से कहा गया है कि वह आगामी अप्रैल तक अपनी रिपोर्ट सौंप दे। इस बीच सरकार वहां तनाव के कारणों को दूर करने का प्रयास कर रही है। पिल्लै ने बताया कि सरकार कश्मीर से 25 प्रतिशत सुरक्षा बलों को हटाने जा रही है। शहरी इलाकों में बने बंकर भी हटाये जा रहे हैं। जैसी कि खबरें हैं केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त वार्ताकार अपनी तरफ से कुछ ऐसी सलाह देना चाहते हैं, जिससे कश्मीरी स्वायत्तता के लिए संघर्ष करने वालों को कुछ संतोष मिल सके। वहां सत्तारूढ़ नेशनल कांफ्रेंस के नेता यह मानते हैं कि भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर रियासत के साथ किये गये समझौते का सम्मान नहीं किया और उसकी स्वायत्तता को क्रमशः क्षीण करने का प्रयास किया, इसीलिए यह समस्या पैदा हुई। तो यदि राज्य की पहले वाली स्थिति बहाल हो जाए, तो समस्या बहुत कुछ सुलझ सकती है। लेकिन यह एक कठोर सच है कि यदि आज वह पुरानी स्थिति बहाल भी कर दी जाए, तो वह वहीं रुकने वाली नहीं है। अफसोस की बात यही है कि कश्मीर समस्या का समाधान ढूंढ़ने वाले लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि यह किसी क्षेत्रीय स्वाभिमान या सांस्कृतिक गौरव रक्षा की लड़ाई नहीं है, यह शुद्ध रूप से मजहबी अलगाववाद की लड़ाई है, जिसका लक्ष्य है भारत को कमजोर करना और उससे पाकिस्तान के विखंडन का बदला लेना। इसके अतिरिक्त अब यह लड़ाई केवल किन्हीं दो देशों व जातियों की नहीं, बल्कि लोकतंत्र अथवा उदार मानववाद बनाम मजहबी तानाशाही और कट्टरपंथी अधिनायकवाद की हो गयी है। कश्मीर के अलगाववाद की लड़ाई लड़ने वाले वे जिहादी संगठन हैं, जिनसे पूरी मानवता को खतरा है। इसलिए कश्मीरी अलगाववाद के खिलाफ संघर्ष का संकल्प वास्तव में केवल भारत की राष्ट्रीय या भौगोलिक अखंडता का संघर्ष नहीं, बल्कि मनुष्यता के आधुनिक मूल्यों की रक्षा का संकल्प है, जिसके लिए कोई समझौता किया ही नहीं जा सकता।

लेकिन इस लड़ाई के लिए भारतीय जनता पार्टी को भी संयम से काम लेना चाहिए। एक झंडा लहराने से यह लड़ाई पूरी होने वाली नहीं है। इसके लिए बड़ी और बेहतर संगठित तैयारी की जरूरत है। अच्छा हो कि इस यात्रा को जम्मू में प्रस्तावित रैली के साथ समाप्त कर दिया जाए और अनावश्यक टकराव को आमंत्रित न किया जाए। वास्तव में सच तो यही है कि कश्मीर की लड़ाई को भाजपा ने भी भुला दिया था। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जो नारा दिया था कि ‘एक देश में दो प्रधान, दो निशान व दो विधान नहीं चलेगा नहीं चलेगा' उसका उसने स्वयं परित्याग कर दिया था। भाजपा को यदि वास्तव में कश्मीर की लड़ाई गंभीरता से लड़नी है, तो उसे पहले धारा 370 को हटाने के पक्ष में राष्ट्रीय स्तर पर वातावरण तैयार करना चाहिए। उसे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त वार्ताकारों की रिपोर्ट की भी प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए। उसकी युवा शाखा भरतीय जनता युवा मोर्चा केनये अध्यक्ष अनुराग सिंह ठाकुर पार्टी में तथा देश में अपनी कुछ धमक कायम करना चाहते हैं, किंतु उन्हें भी इतना तो समझ ही लेना चाहिए कि कश्मीर की लड़ाई एक दीर्घकालिक लड़ाई है, इसे अल्पकालिक राजनीतिक लाभ का साधन बनाने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए।

16/01/2011

2 टिप्‍पणियां:

शिवा ने कहा…

बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर ..
कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग//shiva12877.blogspot.com पर भी अपनी एक दृष्टी डालें .... धन्यवाद

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

इस देश के नेताओं की नपुसंक सोच के कारण हम चारों ओर से दुश्मनों से घिरते जा रहे हैं और उनके पाले हुए कुत्ते देश में दुम हिला रहे हैं :(