पूर्ण ब्रह्मस्वरूपा कामरूपा भगवती सरस्वती
वसंत पंचमी सृष्टि के नवांकुरण का पर्व है, 'कामफ का पर्व है| यह भगवती सरस्वती के जन्मदिन का भी पर्व है, क्योंकि वह स्वयं कामरूपा हैं| जहॉं भी जीवन है, गति है, नाद है वहॉं 'सरस्वतीफ हैं| जहॉं कहीं भी कोई नया अंकुर निकल रहा है, कोई नई कोंपल अंगड़ाई ले रही है, कोई नई कलिका बाहर आने को व्याकुल है, कोई नया राग फूटने को है, कोई पॉंव थिरकने को चंचल है, कोई तूलिका रंग बिखेरने को मचल रही है, कोई रोमॉंचित भुजा किसी को आलिंगन पाश में बॉंधने के लिए ललक रही है, वहॉं सरस्वती प्रकट रूप में विद्यमान हैं|
वसंत पंचमी यों तो कामोत्सव का पर्व है, किंतु भारतीय परंपरा में यह भगवती सरस्वती के जन्मदिवस के रूप में भी प्रसिद्ध है| वसंत कामदेव का घनिष्ठ सहचर है| काम जब धरती पर अपना ध्वज फहराने का उपक्रम करता है, तो वसंत उसके आगमन की पूर्व पीठिका सजाने लगता है| प्रेरक शक्ति तो काम है, वसंत उसके आदेश पर उस
वातावरण की सृष्टि करता है, जिसमें काम की सर्जना शक्ति को उन्मुक्त विकास का अवसर मिल सके| सरस्वती भी सर्जना की देवी हैं, इसलिए यह कहा जा सकता है कि वह काम की भी प्रेरक हैं| वेदोपनिषद में काम को ब्रह्मस्वरूप कहा गया है| देवी सरस्वती भी ब्रह्मस्वरूपिणी हैं| इसलिए उनका परस्पर एकात्मभाव है| सरस्वती इस विराट प्रकृति की जीवनी शक्ति हैं, जो कुछ नया सृजित हो रहा है, उसकी प्रेरक शक्ति देवी सरस्वती ही हैं और सृजन के साथ ही जुड़ी हैं सारी विद्याएँ और कलाएँ| इसलिए सरस्वती सभी विद्याओं व कलाओं की भी अधिष्ठात्री देवी हैं| सृष्टि के आदि सजर्क कहे जाने वाले ब्रह्मा की वह पत्नी भी हैं और पुत्री भी| इस पत्नी और पुत्री के रूपक को लौकिक अर्थों में नहीं लिया जाना चाहिए| कोई भी सर्जना बिना विचार के नहीं हो सकती, इसलिए विचार को सारी स्थूल सृष्टि की मॉं कह सकते हैं| ब्रह्मा जिसके सहयोग से सृष्टि करते हैं, उसे यदि किसी कवि ने ब्रह्मा की पत्नी कह दिया, तो इसमें गलत क्या है? फिर वह विचार ही सृष्टि रूप में प्रकट हुआ, इसलिए विचार या कल्पना के रूप में जो ब्रह्मा की पत्नी हैं, वही सृष्टि के रूप ब्रह्मा की पुत्री बन गईं|
वस्तुतः भारतीय वांग्मय में वर्णित सभी देवियॉं एवं देवता एक ही हैं| भिन्न स्थान, भिन्न काल तथा भिन्न व्यक्तियों के कारण एवं भाषा भेद तथा कल्पना भेद के कारण उनके अलग-अलग रूप बन गये| जीवन तथा व्यापक सृष्टि के अलग-अलग पक्षों तथा भिन्न आयामों की व्याख्या के लिए भी उनकी अलग-अलग रूप में कल्पना की गई है| इसलिए कभी-कभी भ्रम होने लगता है कि इतने असंख्य देवी-देवता क्यों गिनाए जाते हैं| शीर्षस्तर पर भी त्रिदेव की और त्रिदेवियों की कल्पना की गई है| ब्रह्मा, विष्णु, महेश और उनकी शक्तियों, महा सरस्वती, महा लक्ष्मी व महा काली (जिन्हें दुर्गा, पार्वती, सती आदि नामों से भी जाना जाता है) में तत्वतः कोई भेद नहीं है| लेकिन जब हम जीवन के उन्मेष की, सर्जना की तथा आनंद की कल्पना करते हैं, तो सहज ही महाशक्ति का सरस्वती रूप साकार हो उठता है| यद्यपि महा लक्ष्मी व महा काली का रूप भी उनमें अंतनिर्हित है| और जब सभी देवियॉं उनमें सन्निहित हैं, तो सभी देव उनमें स्वतः सन्निहित हो जाएँगे| इसलिए सरस्वती स्वयं अपने आप में पूर्ण ब्रह्मस्वरूपा हैं|
उनके स्वरूप की कल्पना भी इस तरह की गई है कि वह संपूर्ण व्यक्त एवं अव्यक्त सृष्टि का प्रतिनिधित्व करती हैं| यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि संपूर्ण ब्रह्मांड में जो कुछ दृश्यमान है, वह व्यक्त सृष्टि है| शेष संपूर्ण प्रकृति अव्यक्त, अज्ञात है| सरस्वती का वाहन हंस है| वे कमलासीन होती हैं, तो भी हंस उनके पास होता है| हंस की उपस्थिति भी प्रतीकात्मक है| हंस की चोंच और उसका पैर लाल रंग का होता है 'चंचु चरण लोहितौ|फ शेष वह सर्वांग श्वेत वर्णी होता है| अपने संपूर्ण शरीर से वह महासरस्वती के श्वेत वर्ण के साथ एकाकार है| केवल उसका थोड़ा-सा भाग अलग से व्यक्त है| वह थोड़ा-सा भाग ही व्यक्त सृष्टि है| चूँकि वह ज्ञान की, जीवन की, निरंतर चलते सृष्टि क्रम की और आनंद की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए इन सबके प्रतीक स्वरूप उनकी प्रतिमा के साथ पुस्तक, कमल पुष्प, अक्षमाला तथा वीणा को जोड़ दिया गया है| भारतीय सॉंस्कृतिक प्रतीकों में कमल पुष्प सर्वत्र सृष्टि के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है| चूँकि वह विद्या और ज्ञान की देवी हैं, इसलिए उन्हें वेदों की माता तथा भाषाओं और लिपियों की भी जननी कहा गया है| सारी ललित कलाएँ तो उनसे उद्भूत हैं ही|
सरस्वती को नाद तत्व की भी अधिष्ठात्री देवी माना गया है| कहा जाता है कि सृष्टि के आदि में केवल नाद था| आज के विज्ञान के अनुसार भी इस सृष्टि का जन्म एक महाविस्फोट (बिग बैंग) के साथ हुआ| यह 'सृष्टि नादफ का मूल रूप था| संगीत को इसीलिए नादब्रह्म की उपासना कहा जाता है| सृष्टि स्वरूपा मॉं सरस्वती इसी जीवन नाद को अपनी वाणी पर निरंतर निनादित करती रहती हैं| कोटि-कोटि कंठों से उनका ही स्वर फूटता है, चाहे उसका अर्थ कुछ भी हो| इसीलिए उन्हें वाक्देवी या वाणी के नाम से अभिहित किया गया है| प्रतीक रूप में वह अक्षर स्वरूपा हैं| संपूर्ण संसार में किसी भी भाषा का कोई अक्षर हो वह सरस्वती का आत्मरूप है, क्योंकि अर्थ की अभिव्यक्ति अथवा उसका ग्रहण बिना सरस्वती की कृपा के नहीं हो सकता|
सरस्वती एकमात्र देवी हैं, जिनका प्रायः सभी भारतीय धर्मों (आस्तिक-नास्तिक) में समान आदर है| बौद्ध धर्म में वह प्रज्ञा पारमिता के रूप में तो जैनधर्म में सरस्वती के रूप में ही पूजित हैं| वह एक मात्र ऐसी देवी हैं, जिनकी उपासना के लिए किसी कर्मकांड की आवश्यकता नहीं| यदि आप कला के उपासक हैं, ज्ञान-विज्ञान के सेवक हैं और किसी भी तरह की सर्जना में संलग्न हैं, तो आप वस्तुतः सरस्वती की ही आराधना कर रहे हैं|
काम, सृष्टि का एकमात्र कारण है और काम की प्रेरक शक्ति देवी सरस्वती हैं| इस सृष्टि के कारण तत्व परमात्मा या परब्रह्म के भी अंतस्तल में जब काम का अंकुरण हुआ या कामना जगी कि 'एकोऽहम बहुस्यामिफ तो सृष्टि हुई| इसलिए सरस्वती वस्तुतः परमात्मा परमब्रह्म की भी गर्भस्थ शक्ति हैं| वह स्वयं कारण स्वरूपा हैं और कार्यरूपा भी| उनसे परे और किसी आदि तत्व की कल्पना नहीं की जा सकती|
'सरस्वतीफ यह नाम भी बहुत सार्थक है| संस्कृत में 'सृफ धातु में एक प्रत्यय (असुन्) लगाकर यह शब्द बना है| 'सृफ का अर्थ होता है गति| गति सृजन का आवश्यक तत्व है, इसलिए सरस्वती 'गतिफ और क्रियाशीलता की भी अधिष्ठात्री देवी हैं| वैदिक साहित्य में उन्हें नदियों की देवी कहा गया है| नदी शब्द संस्कृत 'नदफ से बना है, जिसका अर्थ है शब्द या ध्वनि| नदी को सरस्वती नाम से इसीलिए अभिहित किया गया कि वह नाद करते हुए निरंतर गतिमान रहती है| निरंतर गति के कारण ही नदी को सरिता भी कहा जाता है| नदी, वास्तव में जल ही नहीं, जीवन के प्रवाह की भी प्रतीक है, इसीलिए वैदिक काल में नदियों को सरस्वती कहा गया है| हो सकता है कि कभी कोई एक नदी सरस्वती के नाम से पुकारी गई हो, लेकिन वास्तव में धरती पर प्रवाहित जितनी भी सरणियॉं हैं, वे सब 'सरस्वतीफ हैं| वसंत पंचमी सृष्टि के नवांकुरण का पर्व है, 'कामफ का पर्व है| यह भगवती सरस्वती के जन्मदिन का भी प्रतीक है, क्योंकि वह स्वयं कामरूपा हैं| जहॉं भी जीवन है, गति है, नाद है, वहॉं 'सरस्वतीफ हैं| जहॉं कहीं भी कोई नया अंकुर निकल रहा है, कोई नई कोंपल अंगड़ाई ले रही है, कोई नई कलिका बाहर आने को व्याकुल है, कोई नया राग फूटने को है, कोई पॉंव थिरकने को चंचल है, कोई तूलिका रंग बिखेरने को मचल रही है, कोई रोमांचित भुजा किसी को आलिंगन पाश में बॉंधने के लिए ललक रही है, वहॉं सरस्वती प्रकट रूप में विद्यमान हैं|
इसीलिए वेदों में सरस्वती की वंदना करते हुए कहा गया है-
ऐमम्बितमे, नदीतमे, देवी तमे सरस्वती
अप्रशस्ता, इव स्मसि प्रशस्तिमम्ब नस्कृधि
हे मातृ शक्ति में श्रेष्ठ (अम्बितम), जीवन दायिनी प्रवाहिकाओं में उत्तम (नदी में), देवियों में सर्वश्रेष्ठ (देवीतमे) सरस्वती हमारे जीवन के सारे संकोच-अवरोध-अंधकार एवं दुःख की बाधाओं को दूर करके हमें सम्यक प्रकाश, ज्ञान और समृद्धि प्रदान करो, जिससे कि सर्जना के आनंदमय पथ पर हमारी गति निर्बाध हो सके|
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