कांग्रेस के पहले राष्ट्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक
पत्रकार, शिक्षक, वकील, समाज सुधारक, स्वातंत्र्य सेनानी, क्या नहीं थे केशव बाल गंगाधर तिलक| वह भारत में अंग्रेजी शिक्षा के पहली पीढ़ी के स्नातकों में थे| भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के वह पहले लोकप्रिय नेता थे| कांग्रेस के वह पहले ऐसे राजनेता हैं, जिन्होंेने घोषणा की कि स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम उसे लेकर रहेंगे (स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क| अहे अणि तो मी मिलवनारच)| वह आधुनिक भारत के पहले ऐसे दार्शनिक राजनेता हैं, जिन्होंने कहा, ‘यह देश मेरी मातृभूमि मेरी देवी है, देशवासी समूह मेरा परिवार है और इस देश को राजनीतिक व सामाजिक स्वाधीनता दिलाने के लिए काम करना ही मेरा सबसे बड़ा धर्म है|’
अंग्रेज उन्हें ‘भारतीय अशांति का जनक’ (फादर ऑफ इंडियन अनरेस्ट) कहते थे| वास्तव में तिलक पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने कांग्रेस के चरित्र को बदला| उन्होंने गोपालकृष्ण गोखले के नरम रुख का विरोध किया| वह १८९० में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए| १८९१ में उन्होंेेने अंग्रेज सरकार द्वारा लाए गए ‘एज कंसेट बिल' का विरोध किया| यह बिल लड़कियों की शादी की आयु से संबंधित था| इसके अंतर्गत लड़कियों के विवाह की न्यूनतम आयु १० वर्ष से बढ़ाकर १२ वर्ष किया गया था| तिलक स्वयं बाल विवाह के विरोधी थे, लेकिन वे इस तरह विवाह की आयु तय करने वाले कानून के भी खिलाफ थे| वह कानून के द्वारा बाल विवाह पर नियंत्रण नहीं चाहते थे| उनका कहना था कि इस तरह के विधेयक खतरनाक नजीर बन सकते हैं| इससे समाज के निजी पारिवारिक जीवन में राज्य का हस्तक्षेप बढ़ने का खतरा पैदा हो सकता है|
तिलक ने गीता से उद्धरण देते हुए कहा कि बिना किसी निजी स्वार्थ के यदि कोई व्यक्ति किसी दमनकारी या अत्याचारी को मार डाले, तो इससे कोई पाप नहीं लगता| उनके इस उपदेश का परिणाम हुआ कि २२ जून, १८९७ को चापेकर बंधुओं ने दो अंग्रेज अफसरों रैंड तथा लेफ्टिनेंट ऐर्स्ट को गोली मार दी| अंग्रेज सरकार ने इस हत्या की प्रेरणा देने के आरोप में तिलक को १८ महीने के लिए जेल में डाल दिया| यह उनकी पहली जेल यात्रा थी| जेल से बाहर आते ही उन्होंने नारा लगाया ‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, जिसे हम लेकर रहेंगे|'
रत्नगिरि (महाराष्ट्र) में २३ जुलाई, १८५६ को जन्मे केशव गंगाधर तिलक के पिता गंगाधर तिलक स्कूल टीचर और संस्कृत के विद्वान थे| केशव जब अभी मात्र १६ वर्ष के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया| केशव गंगाधर ने उक्कन कॉलेज, पुणे से १८७७ मंें ग्रेजुएट की उपाधि प्राप्त की| ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने वहीं पुणे के एक स्कूल में गणित पढ़ाना शुरू किया| स्कूल में साथियों के साथ मतभेद के कारण उन्होंने अध्यापन कार्य छोड़ दिया और पत्रकार बन गए| उन्होंने मराठी में ‘केशरी' तथा अंगे्रजी में ‘मराठा' साप्ताहिक शुरू किया|
इसके बाद उन्होंने आधुनिक शिक्षा के साथ भारतीय इतिहास एवं संस्कृति की शिक्षा के लिए ‘दकन एजुकेशन सोसायटी' के नाम से एक शैक्षिक संगठन की स्थापना की| इस सोसायटी में उनके साथ गोपाल गनेश अगरकर, विष्णु शास्त्री चिपलूनकर तथा महादेव बल्लाल
नाम जोशी मुख्य रूप से शामिल थे| इस सोसायटी के द्वारा उन्होंने एक स्कूल ‘न्यू इंग्लिश स्कूल' तथा एक कॉलेज ‘फर्गुशन कॉलेज' की स्थापना की| इन दोनों ने भारतीय संस्कृति की भी शिक्षा की सम्यक व्यवस्था थी| तिलक स्वयं फर्गुशन कॉलेज में गणित पढ़ाते थे और संस्कृति की भी कक्षाएँ लेते थे| उनके द्वारा स्थापित फर्गुशन कॉलेज अब भी चल रहा है|
तिलक ने कांग्रेस में जब गोखले के नरम रुख का विरोध किया, तो उन्हें व्यापक समर्थन मिला| बंगाल से विपिनचंद्र पाल तथा पंजाब से लाला लाजपत राय ने उनका खुला समर्थन किया| १९०५ में जब लार्ड कर्जन ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को कमजोर करने के लिए बंगाल के विभाजन का प्रस्ताव सामने रखा, तो विपिनचंद्र पाल और लाला लाजपतराय के साथ बाल गंगाधर तिलक ने उसके विरुद्ध देशव्यापी अभियान चलाया| इन तीनों नेताओं का गुट इस आंदोलन के बाद इतना प्रसिद्ध हुआ कि ‘लाल-बाल-पाल' का यह नाम बच्चे-बच्चे की जबान पर चढ़ गया|
१९०७ में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में नरमपंथियों और गरमपंथियों के बीच स्पष्ट विभाजन रेखा खिंच गई| गरमपंथी या झाला मतवादी (रेडिकल) समूह का नेतृत्व तिलक कर रहे थे तो नरमपंथी (मवाल मतवादी) गुट गोपालकृष्ण गोखले के साथ खड़ा था| उस समय क्रांतिकारी अरविंद घोष तथा वी.ओ. चिदंबरम जैसे नेता तिलक के समर्थक थे| अपने गरम बयानों के कारण तिलक अंगे्रजों की नजर में बेहद खतरनाक नेता साबित हो चुके थे| इसलिए १९०८ में उन्हें गिरफ्तार करके मांडल जेल भेज दिया गया, जहॉं से वह १९१४ में रिहा हुए| जेल में रहते हुए उन्होंने ‘गीता रहस्य' नाम से भगवद्गीता पर अपनी टीका लिखी|
जेल से बाहर आने पर वह काफी कुछ बदले हुए नजर आए, लेकिन १९१६ आते-आते वह फिर अपने पुराने तेवर में वापस आ गए| उन्होंने ‘ऑल इंडिया होम रूल लीग' की स्थापना की| इस लीग में उनके साथ जी.एस. खपारेड, मोहम्मद अली जिन्ना तथा एनीबेसेंट भी शामिल थीं| तिलक ने इस संगठन के माध्यम से स्वशासन की पुरजोर मांग की| यह लीग १९१८ तक सक्रिय थी| इसके दो साल के भीतर ही १९२० में उनका निधन हो गया|
तिलक ने सामाजिक चेतना के प्रसार के लिए महाराष्ट्र में दो ऐसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रारंभ किया, जो आज तक चल रहे हैं और जिन्होंने कम से कम मराठी समाज को परस्पर जोड़ने में अद्भुत भूमिका अदा की है| १८९४ में उन्होंने सार्वजनिक गणेशोत्सव का प्रारंभ किया और एक साल बाद ‘श्री शिवाजी फंड कमेटी' का गठन किया, जिसने मराठावीर शिवाजी की पुण्यतिथि (शिव पुण्यतिथि) मनानी शुरू की|
तिलक अपने समय के अत्यंत मेधावी तथा बहुमुखी प्रतिभा वाले राजनेता थे| उन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम तथा आधुनिक भारतीय समाज पर अपनी ऐसी अमिट छाप छोड़ी है, जो कभी भी धूमिल नहीं पड़ सकती|
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