मंगलवार, 2 जुलाई 2013

केजरीवाल की

केजरीवाल की
'आम आदमी पार्टी'

किसी पार्टी का नाम 'आम आदमी पार्टी' रखने मात्र से वह आम आदमी की पार्टी नहीं हो जाती| नाम कुछ भी रहे, लेकिन उसके संचालक या कर्णधार कुछ खास लोग ही हो जाते हैं| और ये खास लोग जैसे ही सत्ता में स्थापित हो जाते हैं, उनका चरित्र बदल जाता है| उसके बाद उन पर नियंत्रण रखने की व्यवस्था केवल संविधान व कानूनी तंत्र द्वारा की जा सकती है| इसीलिए संविधान व न्याय व्यवस्था में बदलाव लाए बिना राजनीतिक तंत्र में कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता| इसलिए केजरीवाल को यदि व्यवस्था परिवर्तन का काम करना है, तो उन्हें पूरे संवैधानिक व न्यायतंत्र में बदलाव का उपाय करना चाहिए और देश व समाज को विभाजित करने वाली सांप्रदायिकता व जातिवाद से लड़ने का हथियार तलाश करना चाहिए|

अरविंद केजरीवाल ने २६ नवंबर २०१२ को अपनी नई राजनीतिक पार्टी की विधिवत घोषणा कर दी| इसे उन्होंने 'आम आदमी पार्टी' का नाम दिया है| केजरीवाल ने अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने की योजना का ऐलान २ अक्टूबर को ही कर दिया था, किंतु इसके नाम की घोषणा २६ नवंबर के लिए टाल दी गई थी| इस पार्टी का लक्ष्य गांधी जी के 'स्वराज' के स्वप्न को साकार करना बताया गया, जिसमें सत्ता तथा लोकतंत्र के सारे अधिकार देश की आम जनता के हाथ में होंगे| देश में स्थित वर्तमान राजनीतिक पार्टियों से भिन्न इस पार्टी के बारे में बताया गया कि-
* आम आदमी पार्टी में कोई केंद्रीय हाईकमान नहीं होगा| पार्टी का ढॉंचा नीचे से ऊपर की तरफ होगा, जहॉं आमसभा के सदस्य कार्यकारिणी के सदस्यों का चुनाव करेंगे| इन सदस्यों को अपने चुने प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का भी अधिकार होगा|
* इस पार्टी का कोई एम.पी., एम.एल.ए. अपनी गाड़ियों पर लाल बत्ती या कोई विशेष चिह्न नहीं लगाएगा|
* इस पार्टी का कोई एम.पी., एम.एल.ए. अपने लिए विशेष सुरक्षा नहीं लेगा| पार्टी की राय में जनता के प्रतिनिधियों को भी वही सुरक्षा चाहिए, जो आम आदमी को उपलब्ध है|
* पार्टी का कोई एम.पी., एम.एल.ए. शानदार (लक्जरियस) सरकारी बंगलों में नहीं रहेगा|
* इस पार्टी में किसी को चुनावी टिकट खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी| अपने क्षेत्र के प्रत्याशी का चयन क्षेत्र की जनता करेगी|
* इस पार्टी में अपराधियों (गुंडों) को कभी टिकट नहीं मिलेगा|
* यह पार्टी वित्तीय मामलों में पूरी पारदर्शिता रखेगी| चंदे के रूप में एकत्र प्रत्येक रुपये की आमदनी और खर्च का पूरा ब्यौरा पार्टी की वेबसाइट पर दे दिया जाएगा|
* किसी एक परिवार के एक से अधिक सदस्य चुनाव नहीं लड़ सकेंगे| एक परिवार के एक से अधिक सदस्य कार्यकारिणी के सदस्य नहीं बन सकेंगे|
* पार्टी के भीतर भी लोकपाल की व्यवस्था रहेगी, जो किसी भी पदाधिकारी के विरुद्ध आरोपों की जॉंच व कार्रवाई कर सकेगी|
इसके अतिरिक्त पार्टी की तरफ से वायदा किया गया कि यदि वह सत्ता में आई तो वह 'राइट टु रिजेक्ट' (चुनाव में खड़े होने वाले सभी प्रत्याशियों को अस्वीकार करने का अधिकार) और 'राइट टु रिकाल' (निर्वाचित प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार) को कानून का रूप प्रदान करेगी तथा १५ दिन के अंदर 'जन लोकपाल बिल' संसद से पारित करा देगी|
अब यदि इस पार्टी के लक्ष्यों, सिद्धांतों एवं कार्यसूची पर गहराई से नजर डालें, तो देखेंगे कि इसमें सारे निषेधात्मक उपाय हैं, जो देखने-सुनने में आकर्षक है, किंतु न तो इनसे व्यवस्था बदलने वाली है और न आम आदमी का जीवन स्तर सुधरने वाला है| पार्टी को चूँकि केंद्रीय सत्ता में आना ही नहीं है, इसलिए उसके बाद के वायदों का कोई अर्थ ही नहीं है, लेकिन उसके पूर्व की यानी पार्टी के गठन की जो प्रक्रिया है, वह भी न तो व्यावहारिक है, न परिणामदायी|
अपने देश में बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था चल रही है| इसमें हर पार्टी अपने सदस्य बनाती है और सिद्धांततः ये प्राथमिक सदस्य ही हर पार्टी की आधारभूत आम सभा का गठन करते हैं| यह संख्या भी काफी बड़ी होती है, इसलिए कांग्रेस जैसी कुछ पार्टियों ने सक्रिय सदस्य की       अवधारणा कायम की है| २५ वयस्क नागरिकों को पार्टी का सदस्य बनाने वाला पार्टी का सक्रिय सदस्य कहा जाता है| इन सक्रिय सदस्यों को ही अपनी प्राथमिक इकाई (वार्ड, नगर, ग्राम आदि) की कार्यसमिति चुनने का अधिकार होता है| हर पार्टी के अपने अलग सदस्य होते हैं| इसलिए कोई भी पार्टी पूरे देश के आम आदमी के प्रतिनिधित्व का दावा नहीं कर सकती|
केजरीवाल ने अपनी पार्टी की केवल आचरण संहिता घोषित की है, उन्होंने अब तक अपने राजनीतिक सिद्धांतों का कोई खुलासा नहीं किया है| वर्तमान संविधान के बारे में उन्होंने अपनी कोई राय नहीं व्यक्त की है| उन्होंने जातिवाद व संप्रदायवाद पर अपनी कोई नीति सामने नहीं रखी है| जातीय व धार्मिक विशेषाधिकारों तथा आरक्षण आदि पर उन्होंने अपनी कोई राय नहीं रखी है| देश की राजनीतिक प्रणाली, न्याय प्रणाली, शिक्षा व्यवस्था व आर्थिक अधिकारों आदि के बारे में जब तक वह अपनी स्पष्ट नीतियों की घोषणा नहीं करते, तब तक उनकी राजनीतिक पार्टी का कोई राजनीतिक स्वरूप ही स्पष्ट नहीं होता|
हो सकता है कि उन्होंने इस सबके बारे में भी कुछ सोच रखा हो, किंतु उसका संकेत तक अभी सामने नहीं आया है| अभी वह केवल भ्रष्टाचार और महँगाई को अपना राजनीतिक मुद्दा बनाए हुए हैं| देश का आम आदमी पीड़ित भी फिलहाल इन्हीं दोनों से है, लेकिन भ्रष्टाचार के केवल कुछ मामले उजागर करके या बिजली के कटे कनेक्शन जोड़ करके आम आदमी की इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता|

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