माली कट्टरपंथी इस्लाम के साथ पश्चिम के संघर्ष का नया अखाड़ा
'माली' अफ्रीका का एक आदर्श लोकतंत्र था, लेकिन अब वह अफ्रीका में इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ पश्चिमी ताकतों के संघर्ष का नया अखाड़ा बन गया है| अलकायदा से संबद्ध इस्लामी कट्टरपंथियों के मुकाबले के लिए फ्रांस ने बमवर्षक जेट विमानों के साथ अपनी थल सेना भी वहॉं उतार दी है, लेकिन यह सवाल अभी से खड़ा हो गया है कि क्या वह जिहादियों के खिलाफ कोई निर्णायक जीत हासिल कर सकेगा?
उत्तर-पश्चिम अफ्रीकी देश माली अफ्रीका में सेकुलर डेमोक्रेसी का नमूना माना जाता था| यहॉं की ९० प्रतिशत आबादी मुस्लिम होने के बाद भी यहॉं सेकुलर लोकतांत्रिक संविधान लागू था, लेकिन अब यह इस्लामी कट्टरपंथियों और पश्चिमी लोकतांत्रिक ताकतों का अखाड़ा बन गया है| साहित्य, संस्कृति एवं विज्ञान का प्रसिद्ध केन्द्र टिम्बकटू इसी माली देश के अंतर्गत है| इस्लाम यहॉं ११वीं शताब्दी में पहुँचा| लगभग पूरी आबादी के मुस्लिम बन जाने के बावजूद यहॉं पुरानी उदार परंपराएँ जारी रहीं| १९६० के पूर्व यह एक फ्रांसीसी उपनिवेश था और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद १९६० के उपरांत भी यह सेकुलर रिपब्लिक बना रहा|
माली में संकट की शुरुआत मार्च २०१२ में हुई जब विद्रोही सैनिकों के एक दल ने राष्ट्रपति के महल पर कब्जा कर लिया और घोषणा कर दी कि सरकार भंग कर दी गई है और संविधान को निलंबित कर दिया गया है| ये सैनिक खानाबदोश तुअरेग विद्रोहियों के साथ सरकार के व्यवहार से नाराज थे| राजधानी बामाको पर कब्जा करने के बाद इन्होंने माली के विस्तृत उत्तरी भाग पर कब्जा कर लिया और ६ अप्रैल २०१२ को 'आजवाडफ (जो उस क्षेत्र का पुराना नाम था) के नाम से एक स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर दी| लेकिन उनकी यह स्वतंत्रता नहीं चल पाई| कट्टरपंथी इस्लामी संगठन अलकायदा से जुड़े जिहादी इस्लामी संगठन ने स्वयं इस पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया|
माली की सेना इनके विरुद्ध किसी कार्रवाई की इच्छुक नहीं थी इसलिए जिहादियों का उत्साह दुगुना था| उन्होंने पूरे माली पर कब्जा करने की योजना बना ली| इस खबर से पश्चिम की चेतना जागी| उसे लगा कि माली पर यदि इस्लामी कट्टरपंथियों का कब्जा हो गया तो यह देश अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी आक्रमण का सबसे बड़ा अफ्रीकी अड्डा बन जाएगा| माली चूंकि फ्रांसीसी उपनिवेश था इसलिए जिहादियों के कब्जे से बचाने के लिए सबसे पहले वही आगे आया| पहले उसने अपने बमवर्षक जेट विमानों को वहॉं भेजा लेकिन उनकी विफलता पर उसने अपनी थल सेना को भी वहॉं उतारने का फैसला किया| ताजा खबरों (२१ जनवरी) के अनुसार फ्रांसीसी सैनिकों के साथ माली के सरकारी सैनिकों ने जिहादियों के कब्जे वाले दो शहरों डायबली तथा डाउएंट्जा पर कब्जा कर लिया है| बमबारी से बचने के लिए जिहादी सैनिक पहाड़ियों तथा झाड़ियों वाले इलाके में छिप गये हैं|
यहॉं यह उल्लेखनीय है कि मार्च में तख्ता पलट के बाद कई नागरिक नेता राष्ट्रपति बने लेकिन सत्ता सेना के ही हाथ में थी| पश्चिमी देशों ने यह अस्थिरता समाप्त करने के लिए मिलिट्री 'जुंटाफ पर दबाव डाला कि वह किसी को स्थाई राष्ट्रपति नियुक्त करे| इस दबाव के कारण राष्ट्रीय असेम्बली के पूर्व अध्यक्ष डायोन कौंड्रा ट्राओरे को अंतरिम राष्ट्रपति नियुक्त किया गया| ७० वर्षीय ट्राओरे की गुहार पर ही फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रंैकोइस होलांद ने अपनी सेना वहॉं भेजने का फैसला किया| खतरे को भांपते हुए ब्रिटेन और अमेरिका ने भी फ्रांस को हर तरह की सहायता देने का आश्वासन दिया| संयुक्त राष्ट्रसंघ की व्यवस्था के अंतर्गत भी एक सेना का गठन किया गया है जो फ्रांसीसियों की सहायता के लिए पहुँचने वाली है|
माली की यह पूरी समस्या उत्तरी तथा मध्य अफ्रीका के इस्लामी संघर्ष से जुड़ी हुई है| माली में फ्रांसीसी सैनिक हस्तक्षेप की तात्कालिक प्रतिक्रिया अल्जीरिया में हुई जहॉं अलकायदा से जुड़े आतंकवादियों ने सहारा रेगिस्तान में स्थित एक ऑयल फील्ड में काम करने वाले लोगों को बंधक बना लिया| उनकी मांग थी कि फ्रांस, माली में अपना हस्तक्षेप बंद करे| पश्चिमी देशों के सहयोग से अल्जीरियायी सेना ने बंधकों को मुक्त कराने के लिए हमला किया| इस हमले में सभी आतंकवादी मारे गये लेकिन ४० से अधिक बंधकों की भी जान गई| जिहादियों ने बदले की भावना से उनकी हत्या कर दी| बंधक बनाने की योजना तैयार करने वाला अलकायदा का मुखिया मोख्तार 'बेलमोख्तारफ वहॉं से भाग निकला| मोख्तार अल्जीरिया में सक्रिय जिहादी संगठन 'मुलथमीन ब्रिगेडफ का नेता है| उसने धमकी दी है कि फ्रांस ने माली में हस्तक्षेप जारी रखा तो पश्चिमी आर्थिक हित वाले प्रतिष्ठानों पर और हमले किये जाएंगे| अल्जीरिया की उपर्युक्त आयल फील्ड अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधन में चल रही थी इसलिए वहॉं बंधक बनाए गए लोगों में अधिकांश विदेशी थे|
माली की निर्वाचित सरकार पर विद्रोही सैनिकों का हमला भी अफ्रीकी इस्लामी संघर्ष का ही परिणाम है| 'अजवाडफ को स्वतंत्र कराने वाले विद्रोही सैनिक वास्तव में तुअरेग समुदाय के लोग ही है| तुअरेग एक घुमंतू जाति है जो माली से लेकर नाइजर, अल्जीरिया तथा लीबिया तक फैली है| शताब्दियों तक वे पूरे सहारा क्षेत्र में घूमा करते थे, किन्तु औपनिवेशिक सीमाओं ने उन्हें अलग-अलग राष्ट्रों का नागरिक बना दिया| ये तुअरेग जाति १९६० से ही अपने स्वतंत्र राज्य की आकांक्षा पूरी करने में लगी है और जगह-जगह विद्रोह का झंडा बुलंद किये हुए है| लीबिया के पूर्व नेता कर्नल मुअम्मर एल. गद्दाफी कई दशकों से माली तथा नाइजर में तुअरेग विद्रोहियों का समर्थन कर रहे थे| इसलिए ये तुअरेग उनकी निजी रक्षक सेना में शामिल होकर उनके लिए लड़ रहे थे| गद्दाफी की मौत के बाद ये सैनिक बेरोजगार हो गये| वे अपने आधुनिकतम हथियारों के साथ माली वापस आ गये और वहॉं के तुअरेग संगठन के साथ मिलकर माली सरकार का तख्तापलट कर दिया| यद्यपि अब जिहादियों ने उन्हें भी किनारे कर दिया है, फिर भी वे जिहादियों के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए तैयार नहीं हैं , क्योंकि पश्चिमी शक्तियों के विरोध के मामले में वे जिहादियों के साथ है| संयुक्त राष्ट्रसंघ के
तत्वावधान में पड़ोसी अफ्रीकी देशों से एकत्र की गई सेना भी केवल पश्चिमी दबाव में फ्रांसीसी सेना के साथ है|
फ्रांसीसी सेना के सामने अभी से यह समस्या आकर खड़ी हो गयी है कि वह यहॉं से निकलेगी कैसे और निकलेगी तो आगे यहॉं क्या होगा| क्या माली का पारंपरिक लोकतंत्र वहॉं फिर से वापस आ पाएगा? किसी के पास इनका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है| पश्चिमी देश अपनी सैन्य शक्ति और विकसित तकनीक से प्रारंभिक जीत भले हासिल कर लें, लेकिन वे अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था वहॉं नहीं लागू कर सकते| वे जिहादियों को निर्णायक रूप से पराजित कर सकने में भी असमर्थ हैं| उनके भाड़े के सैनिक लंबे समय तक कभी मोर्चे पर नहीं टिक पाते और निजी सैनिकों को आखिरकार वापस बुलाना ही पड़ता है| अमेरिका का ईरान और अफगानिस्तान का अनुभव सामने है| अफ्रीकी देशों की लोकतांत्रिक क्रांति ने किस तरह इस्लामी तानाशाही का रूप ले लिया है, यह भी सामने है| और माली के विद्रोह के बाद यह तय हो गया है कि अब लगभग पूरा अफ्रीका इस्लामी तानाशाही के शिकंजे में जा रहा है|
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