मिस्र : तथाकथित लोकतंत्र से अब गृहयुद्ध की ओर?
मिस्र की राजनीतिक स्थिति शायद खाड़ी क्षेत्र के अरब देशों में सर्वाधिक जटिल है| संभव है यह भविष्य की इस्लामी राजनीति की केंद्रीय प्रयोगशाला बने| यहॉं यदि मुस्लिम ब्रदरहुड की योजना सफल होती है और उसकी स्थिर सरकार कायम हो जाती है, तो मिस्र निश्चय ही विश्व इस्लामी साम्राज्य की धारणा (पैन इस्लामिज्म) की आधारभूमि बन जाएगा और यदि वह यहॉं विफल रहा, तो इस्लामी विश्व साम्राज्य का सपना भी विफल हो जाएगा|
मिस्र (इजिप्ट) ने सिद्ध कर दिया है कि केवल मतदान करने से लोकतंत्र नहीं आता| होस्नी मुबारक की तानाशाही के खिलाफ भड़के जबर्दस्त जनांदोलन को प्रायः दुनिया भर में लोकतंत्र की हवा समझा गया था और कहा गया था कि ट्यूनीशिया के बाद अब मिस्री तानाशाही का भी अंत है और उत्तरी अफ्रीका के अरबी क्षेत्र में भी लोकतंत्र की जमीन तैयार हो गई है| मुबारक के अपदस्थ होने के बाद २०१२ में हुए चुनाव में इस्लामी कट्टरपंथी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता मोहम्मद मोर्सी ने भारी बहुमत से चुनाव जीतकर राष्ट्रपति की गद्दी हासिल की| मोर्सी ने चुनाव तो जीत लिया, किंतु वह न्यायपालिका और सेना (जो होस्नी मुबारक के समय से चली आ रही थी) का समर्थन नहीं प्राप्त कर सके| सेना की शह पर देश में मोर्सी के विरुद्ध भी आंदोलन उठ खड़ा हुआ, जिसे बहाना बनाकर सेना ने इस ३ जुलाई को मोर्सी को गद्दी से उतार कर हिरासत में ले लिया और न्यायपालिका के एक प्रतिनिधि अदली मंसूर को राष्ट्रपति बना दिया| सेना की इस कार्रवाई के खिलाफ देश भर में मोर्सी समर्थक प्रदर्शन शुरू हो गया| राजधानी काहिरा में बड़ी संख्या में मोर्सी समर्थक राष्ट्रपति के महल के सामने मोर्सी की वापसी की मॉंग को लेकर धरने पर बैठ गए| सोमवार ८ जुलाई को धरने पर बैठे मोर्सी समर्थकों को तितर-बितर करने के लिए सेना ने गोली चलाई, जिसमें करीब २५ लोग मारे गए| इसके बाद मोर्सी समर्थकों का आंदोलन और तेज हो गया| सेना ने मुस्लिम ब्रदरहुड के नेताओं की गिरफ्तारी शुरू कर दी| १० जुलाई तक देश भर में करीब ६५० लाग गिरफ्तार किए गए, जिसमें २०० के विरुद्ध आरोप तय हो चुके थे, बाकी को जमानत पर रिहा करने की कार्रवाई चल रही थी|
मिस्र के कार्यवाहक राष्ट्रपति ने देश में शीघ्र नए चुनाव कराने का आश्वासन दिया है| आशा की जा रही है कि अगले वर्ष फरवरी तक चुनाव हो जाएँगे| लेकिन सवाल है कि इस चुनाव से क्या वहॉं कोई बदलाव आ सकेगा| यदि मुक्त चुनाव हुए तो दुबारा भी मुस्लिम ब्रदरहुड का प्रत्याशी ही वहॉं राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतेगा| यदि सेना इस चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े करती है या वर्तमान अंतरिम सरकार के प्रतिनिधियों को आगे लाती है, तो उन्हंें जन समर्थन मिलने की संभावना बहुत कम है, क्योंकि अब सेना द्वारा की गई इस तख्ता पलट की कार्रवाई से वे लोग भी मोर्सी के पक्ष में होते जा रहे हैं, जो पिछले चुनाव में मोर्सी के खिलाफ थे| इतना ही नहीं सेना के वर्चस्व को तो इस्लामी वर्चस्व से भी बदतर समझा जा रहा है|
अमेरिका ने मिस्र की अंतरिम सरकार को आगाह किया है कि वह मुस्लिम ब्रदरहुड के नेताओं की अंधाधुंध गिरफ्तारी न करे| ओबामा के पहले के अमेरिकी राष्ट्रपति अगला अरब इजरायल युद्ध बचाने के लिए होस्नी मुबारक की तानाशाही का समर्थन करते आ रहे थे, किंतु ओबामा ने शायद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ मुस्लिम सहानुभूति पाने के लिए लोकतंत्र के नाम पर मुस्लिम ब्रददहुड का समर्थन किया, अभी भी उनकी सहानुभूति ब्रदरहुड के साथ ही है| मुस्लिम देशों में टर्की व कतर, जहॉं मोर्सी के समर्थक हैं, वहॉं सऊदी अरब के शाह तथा संयुक्त अरब एमिरेट्स के अमीर मोर्सी के खिलाफ हैं| वास्तव में खानदानी राजशाही के सारे प्रतिनिधि मोर्सी को अपने लिए खतरा समझते हैं, इसलिए वे उनके खिलाफ हैं| फिलहाल जहॉं अमेरिका मोर्सी की बहाली चाहता है, यद्यपि वह सीधे यह न कहकर वहॉं लोकतंत्र की पुनर्स्थापना की दुहाई दे रहा है, वहीं सऊदी अरब तथा संयुक्त अरब एमिरेट्स ने सैनिक नेताओं को आश्वासन दिया है कि यदि मोर्सी के कारण अमेरिका मिस्र की आर्थिक सहायता बंद करता है, तो वे अपनी ओर से उसकी भरपाई कर देंगे|
मिस्र की राजनीतिक स्थिति शायद खाड़ी क्षेत्र के अरब देशों में सर्वाधिक जटिल है| संभव है यह भविष्य की इस्लामी राजनीति की केंद्रीय प्रयोगशाला बने| यहॉं यदि मुस्लिम ब्रदरहुड की योजना सफल होती है और उसकी स्थिर सरकार कायम हो जाती है, तो मिस्र निश्चय ही विश्व इस्लामी साम्राज्य की धारणा (पैन इस्लामिज्म) की आधारभूमि बन जाएगा और यदि वह यहॉं विफल रहा, तो इस्लामी विश्व साम्राज्य का सपना भी विफल हो जाएगा|
वास्तव में आज का मुस्लिम समुदाय भी सबसे पहले सुखी और समृद्ध जीवन की लालसा रखता है| आधुनिक जीवनशैल्ी उसे भी आकर्षित करती है| उसको भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा मुक्त जीवन अच्छा लगता है| वह इस्लामी वर्चस्व की कामना तो करता है, लेकिन उसके सहारे उसकी कल्पना यह है कि दुनिया की सारी संपदा उसके कब्जे में आ जाएगी, फिर वह बहिश्त की जिंदगी जी सकेगा| मगर यदि इस्लामी सत्ता कायम होने के बाद भी उसे नौकरियों का टोटा पड़ा रहा, लाभकर रोजगार के अवसर न मिले और सुरक्षित एवं समृद्ध जीवन का उसका सपना पूरा न हुआ, तो शरीयत के शासन से भी उसका मोह भंग हो जाएगा|
मिस्र में ‘अरबी स्प्रिंग' क्रांति के बाद मोहम्मद मोर्सी ने देश में शरीयत की इस्लामी सत्ता तो कायम कर दी, लेकिन वह मिस्री जनता के लिए और कुछ नहीं कर सके| देश में बेरोजगारी का ग्राफ घटने के बजाए बढ़ता ही जा रहा है| आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार का भी कोई संकेत नहीं दिखाई पड़ा| सरकार की तरफ से इसका कोई आश्वासन भी नहीं मिल सका| यह कहा जा सकता है कि मोहम्मद मोर्सी को यह सब करने का अभी अवसर ही कहॉं मिला था, किंतु उनकी तरफ से ऐसी कोई सामाजिक या आर्थिक योजना भी तो सामने नहीं आई, जो लोगों को आश्वस्त कर सके|
राष्ट्रपति मंसूर द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री हजेम एल बेबलवी को अपना मंत्रिमंडल बनाना भी मुश्किल हो रहा है| कई वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं ने उनके मंत्रिमंडल में शमिल होने से इंकार कर दिया है| कई लोग इससे डर रहे हैं कि वे मुस्लिम ब्रदरहुड के निशाने पर आ जाएँगे| इस बीच मुस्लिम ब्रदरहुड ने अपना शांतिपूर्ण प्रतिरोध जारी रखने का फैसला किया है| उन्हें भरोसा है कि अगर चुनाव हुए, तो फिर उनकी ही जीत होगी| सवाल है कि राष्ट्रपति की कुर्सी पर मोहम्मद मोर्सी की वापसी को सेना के अफसर बर्दाश्त कर सकेंगे?
जाहिर है कि अगले चुनाव के बाद या तो फिर एक बार मुस्लिम ब्रदरहुड की सत्ता में वापसी होगी या फिर देश में अराजकता फैलेगी और गृहयुद्ध की स्थिति पैदा होगी| मिस्र के गृह युद्ध की स्थिति या मुस्लिम ब्रदरहुड की पराजय शायद दुनिया के लिए बेहतर संदेश लाए, क्योंकि यदि वहॉं मुस्लिम ब्रदरहुड की सत्ता स्थिर हो गई और उसकी विरोधी ताकतें पराजित हो गई, तो यह निश्चय ही पूरी दुनिया की आधुनिक लोकतांत्रिक शक्तियों के लिए एक खतरे का संदेश होगा और उन्हें इस पैन इस्लामिज्म का मुकाबला करने के लिए एक नए वैश्विक संघर्ष की तैयारी के लिए कमर कसनी पड़ेगी|
मिस्र (इजिप्ट) ने सिद्ध कर दिया है कि केवल मतदान करने से लोकतंत्र नहीं आता| होस्नी मुबारक की तानाशाही के खिलाफ भड़के जबर्दस्त जनांदोलन को प्रायः दुनिया भर में लोकतंत्र की हवा समझा गया था और कहा गया था कि ट्यूनीशिया के बाद अब मिस्री तानाशाही का भी अंत है और उत्तरी अफ्रीका के अरबी क्षेत्र में भी लोकतंत्र की जमीन तैयार हो गई है| मुबारक के अपदस्थ होने के बाद २०१२ में हुए चुनाव में इस्लामी कट्टरपंथी संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता मोहम्मद मोर्सी ने भारी बहुमत से चुनाव जीतकर राष्ट्रपति की गद्दी हासिल की| मोर्सी ने चुनाव तो जीत लिया, किंतु वह न्यायपालिका और सेना (जो होस्नी मुबारक के समय से चली आ रही थी) का समर्थन नहीं प्राप्त कर सके| सेना की शह पर देश में मोर्सी के विरुद्ध भी आंदोलन उठ खड़ा हुआ, जिसे बहाना बनाकर सेना ने इस ३ जुलाई को मोर्सी को गद्दी से उतार कर हिरासत में ले लिया और न्यायपालिका के एक प्रतिनिधि अदली मंसूर को राष्ट्रपति बना दिया| सेना की इस कार्रवाई के खिलाफ देश भर में मोर्सी समर्थक प्रदर्शन शुरू हो गया| राजधानी काहिरा में बड़ी संख्या में मोर्सी समर्थक राष्ट्रपति के महल के सामने मोर्सी की वापसी की मॉंग को लेकर धरने पर बैठ गए| सोमवार ८ जुलाई को धरने पर बैठे मोर्सी समर्थकों को तितर-बितर करने के लिए सेना ने गोली चलाई, जिसमें करीब २५ लोग मारे गए| इसके बाद मोर्सी समर्थकों का आंदोलन और तेज हो गया| सेना ने मुस्लिम ब्रदरहुड के नेताओं की गिरफ्तारी शुरू कर दी| १० जुलाई तक देश भर में करीब ६५० लाग गिरफ्तार किए गए, जिसमें २०० के विरुद्ध आरोप तय हो चुके थे, बाकी को जमानत पर रिहा करने की कार्रवाई चल रही थी|
मिस्र के कार्यवाहक राष्ट्रपति ने देश में शीघ्र नए चुनाव कराने का आश्वासन दिया है| आशा की जा रही है कि अगले वर्ष फरवरी तक चुनाव हो जाएँगे| लेकिन सवाल है कि इस चुनाव से क्या वहॉं कोई बदलाव आ सकेगा| यदि मुक्त चुनाव हुए तो दुबारा भी मुस्लिम ब्रदरहुड का प्रत्याशी ही वहॉं राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतेगा| यदि सेना इस चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े करती है या वर्तमान अंतरिम सरकार के प्रतिनिधियों को आगे लाती है, तो उन्हंें जन समर्थन मिलने की संभावना बहुत कम है, क्योंकि अब सेना द्वारा की गई इस तख्ता पलट की कार्रवाई से वे लोग भी मोर्सी के पक्ष में होते जा रहे हैं, जो पिछले चुनाव में मोर्सी के खिलाफ थे| इतना ही नहीं सेना के वर्चस्व को तो इस्लामी वर्चस्व से भी बदतर समझा जा रहा है|
अमेरिका ने मिस्र की अंतरिम सरकार को आगाह किया है कि वह मुस्लिम ब्रदरहुड के नेताओं की अंधाधुंध गिरफ्तारी न करे| ओबामा के पहले के अमेरिकी राष्ट्रपति अगला अरब इजरायल युद्ध बचाने के लिए होस्नी मुबारक की तानाशाही का समर्थन करते आ रहे थे, किंतु ओबामा ने शायद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ मुस्लिम सहानुभूति पाने के लिए लोकतंत्र के नाम पर मुस्लिम ब्रददहुड का समर्थन किया, अभी भी उनकी सहानुभूति ब्रदरहुड के साथ ही है| मुस्लिम देशों में टर्की व कतर, जहॉं मोर्सी के समर्थक हैं, वहॉं सऊदी अरब के शाह तथा संयुक्त अरब एमिरेट्स के अमीर मोर्सी के खिलाफ हैं| वास्तव में खानदानी राजशाही के सारे प्रतिनिधि मोर्सी को अपने लिए खतरा समझते हैं, इसलिए वे उनके खिलाफ हैं| फिलहाल जहॉं अमेरिका मोर्सी की बहाली चाहता है, यद्यपि वह सीधे यह न कहकर वहॉं लोकतंत्र की पुनर्स्थापना की दुहाई दे रहा है, वहीं सऊदी अरब तथा संयुक्त अरब एमिरेट्स ने सैनिक नेताओं को आश्वासन दिया है कि यदि मोर्सी के कारण अमेरिका मिस्र की आर्थिक सहायता बंद करता है, तो वे अपनी ओर से उसकी भरपाई कर देंगे|
मिस्र की राजनीतिक स्थिति शायद खाड़ी क्षेत्र के अरब देशों में सर्वाधिक जटिल है| संभव है यह भविष्य की इस्लामी राजनीति की केंद्रीय प्रयोगशाला बने| यहॉं यदि मुस्लिम ब्रदरहुड की योजना सफल होती है और उसकी स्थिर सरकार कायम हो जाती है, तो मिस्र निश्चय ही विश्व इस्लामी साम्राज्य की धारणा (पैन इस्लामिज्म) की आधारभूमि बन जाएगा और यदि वह यहॉं विफल रहा, तो इस्लामी विश्व साम्राज्य का सपना भी विफल हो जाएगा|
वास्तव में आज का मुस्लिम समुदाय भी सबसे पहले सुखी और समृद्ध जीवन की लालसा रखता है| आधुनिक जीवनशैल्ी उसे भी आकर्षित करती है| उसको भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा मुक्त जीवन अच्छा लगता है| वह इस्लामी वर्चस्व की कामना तो करता है, लेकिन उसके सहारे उसकी कल्पना यह है कि दुनिया की सारी संपदा उसके कब्जे में आ जाएगी, फिर वह बहिश्त की जिंदगी जी सकेगा| मगर यदि इस्लामी सत्ता कायम होने के बाद भी उसे नौकरियों का टोटा पड़ा रहा, लाभकर रोजगार के अवसर न मिले और सुरक्षित एवं समृद्ध जीवन का उसका सपना पूरा न हुआ, तो शरीयत के शासन से भी उसका मोह भंग हो जाएगा|
मिस्र में ‘अरबी स्प्रिंग' क्रांति के बाद मोहम्मद मोर्सी ने देश में शरीयत की इस्लामी सत्ता तो कायम कर दी, लेकिन वह मिस्री जनता के लिए और कुछ नहीं कर सके| देश में बेरोजगारी का ग्राफ घटने के बजाए बढ़ता ही जा रहा है| आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार का भी कोई संकेत नहीं दिखाई पड़ा| सरकार की तरफ से इसका कोई आश्वासन भी नहीं मिल सका| यह कहा जा सकता है कि मोहम्मद मोर्सी को यह सब करने का अभी अवसर ही कहॉं मिला था, किंतु उनकी तरफ से ऐसी कोई सामाजिक या आर्थिक योजना भी तो सामने नहीं आई, जो लोगों को आश्वस्त कर सके|
राष्ट्रपति मंसूर द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री हजेम एल बेबलवी को अपना मंत्रिमंडल बनाना भी मुश्किल हो रहा है| कई वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं ने उनके मंत्रिमंडल में शमिल होने से इंकार कर दिया है| कई लोग इससे डर रहे हैं कि वे मुस्लिम ब्रदरहुड के निशाने पर आ जाएँगे| इस बीच मुस्लिम ब्रदरहुड ने अपना शांतिपूर्ण प्रतिरोध जारी रखने का फैसला किया है| उन्हें भरोसा है कि अगर चुनाव हुए, तो फिर उनकी ही जीत होगी| सवाल है कि राष्ट्रपति की कुर्सी पर मोहम्मद मोर्सी की वापसी को सेना के अफसर बर्दाश्त कर सकेंगे?
जाहिर है कि अगले चुनाव के बाद या तो फिर एक बार मुस्लिम ब्रदरहुड की सत्ता में वापसी होगी या फिर देश में अराजकता फैलेगी और गृहयुद्ध की स्थिति पैदा होगी| मिस्र के गृह युद्ध की स्थिति या मुस्लिम ब्रदरहुड की पराजय शायद दुनिया के लिए बेहतर संदेश लाए, क्योंकि यदि वहॉं मुस्लिम ब्रदरहुड की सत्ता स्थिर हो गई और उसकी विरोधी ताकतें पराजित हो गई, तो यह निश्चय ही पूरी दुनिया की आधुनिक लोकतांत्रिक शक्तियों के लिए एक खतरे का संदेश होगा और उन्हें इस पैन इस्लामिज्म का मुकाबला करने के लिए एक नए वैश्विक संघर्ष की तैयारी के लिए कमर कसनी पड़ेगी|
july 2013
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