बुधवार, 4 नवंबर 2009

अपने देशी आतंकवादियों से चिंतित अमेरिका

अमेरिका इस्लामी आतंकवाद के खतरे से बचने के लिए अफगानिस्तान में लंबा युद्ध लड़ रहा है, लेकिन अब वह उन अपने ही नागरिकों को लेकर चिंतित है, जो जिहादी दीक्षा लेकर आतंकवादी हमले करने के लिए तैयार हो रहे हैं। पिछले दिनों ऐसे ही एक अमेरिकी नागरिक डेविड कोलमैन हेडले को पकड़ा गया, जो भारत और डेनमार्क में एक बड़े आतंकवादी हमले की योजना बना रहा था। वह भारत स्थित लश्कर-ए-तैयबा से संबद्ध था तथा इसने पाकिस्तान में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। हेडले ऐसा अकेला नहीं है। अमेरिका की संघीय गुप्तचर एजेंसी (एफ.बी.आई. यानी फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन) ने गत दो महीनों में 4 बड़े आतंकवादी षड्यंत्रों का पर्दाफाश किया और उनके सूत्रधारों को गिरफ्तार किया। ये सभी अमेरिकी नागरिक थे, लेकिन उनके अलकायदा अथवा अन्य जिहादी संगठनों से भी संबंध थे तथा उन्होंने पाकिस्तान व अफगानिस्तान में प्रशिक्षण प्राप्त किया था।अमेरिका की घरेलू सुरक्षा तथा सरकारी मामलों की कमेटी के चेयरमैन ने अपने नागरिकों के आतंकवादी बनने पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्हें सर्वाधिक आश्चर्य इस बात पर है कि अलकायदा व अन्य जिहादी संगठनों ने देश में इतनी गहरी घुसपैठ कैसे बना ली। ऐसा लगता है कि अमेरिकी सुरक्षा तंत्र अब तक इस बात को नहीं समझ सका है कि अफगानिस्तान की लड़ाई केवल किसी एक संगठन या एक देश के कुछ सिरफिरे लोगों के खिलाफ नहीं है। यह लड़ाई वहां केन्द्रीकृत केवल इसलिए हो गयी है कि वह धार्मिक राजनीतिक विचारधारा के हमलावर दस्ते का एक केंद्रीय गढ़ बन गया था अन्यथा वहां लडऩे वाले तालिबान व अलकायदा के पीछे उनकी विचारधारा वाली पूरी ग्लोबल शक्तियां कार्यरत हैं। इसलिए इस लड़ाई को जीतना है, तो पूरे वैश्विक (ग्लोबल) स्तर पर विचारधारा की लड़ाई छेडऩी पड़ेगी और जहां कहीं भी दूसरा पक्ष शस्त्र प्रयोग पर आमादा हो, वहां शस्त्रों का प्रयोग करना पड़ेगा। यह क्षेत्र अफगानिस्तान हो, पाकिस्तान हो या कोई और लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि जिहादी शक्तियों का अखाड़ा वहीं तक सीमित नहीं है। उसके दायरे में आज लगभग पूरी दुनिया है। इसलिए उसके साथ युद्ध की तैयारी भी पूरी दुनिया के स्तर पर करनी पड़ेगी।

2 टिप्‍पणियां:

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

आतंकबाद कै ग्लोबलीकरण
सम्झायेव | अच्छा लाग ...
बड़े लिखाड़ हौ | लिखै मनई
आपसे सीखै |
राम राम !!!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

शायद लोकतंत्र की यही कीमत होती है- इस घर को आग लगी घर के चिराग से!!!