सोमवार, 23 नवंबर 2009

बीजिंग घोषणा-पत्र के साये में भारत-अमेरिका वार्ता

प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अमेरिका की अपनी बहुचर्चित यात्रा पर आज सोमवार(२३ नवम्बर ) की सुबह (भारतीय समयानुसार) वहां पहुंच चुके हैं। यद्यपि अमेरिका में अभी यह रविवार की अपराह्न का समय रहेगा। वहां के मौसम विभाग की एक रोचक सूचना है कि उनके पहुंचने के अगले दिन यानी अमेरिकी सोमवार को राजधानी में वर्षा का मौसम रहेगा, फिर मंगलवार को चमकती धूप रहेगी, लेकिन अगले दिन यानी बुधवार फिर बादल और वर्षा का दिन रहेगा । यानी पूरे यात्राकाल में धूप-छांव का अच्छा खेल चलता रहेगा। अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के पंडितों की नजर में यह मौसम भी भारत-अमेरिका संबंधों के बनते-बिगड़ते रूप को प्रतिबिंबित कर रहा है।
डॉ. सिंह अपनी चार दिन की इस यात्रा में करीब 90 से अधिक घंटे वाशिंगटन में बिताएंगे, फिर वहां से वापसी में त्रिनीदाद व टुबैगो की यात्रा पर जाएंगे। उनकी इस यात्रा में सबसे बड़ा घोषित एजेंडा परमाणु समझौते के कार्यान्वयन का है। प्रधानमंत्री की कोशिश है कि उनकी इस यात्रा पर इस पर हस्ताक्षर हो जाएं, लेकिन अभी अंतिम तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। यद्यपि दोनों तरफ के अधिकारियों का ख्याल है कि दोनों देशों के संयुक्त वक्तव्य जारी होने के पहले सारे मतभेद दूर कर लिए जाएंगे। भारत के स्तर पर जो एक बड़ी बाधा थी, वह दूर कर ली गयी है। उसने भारत में स्थापित होने वाले अमेरिकी परमाणु संयंत्रों में दुर्घटना होने की स्थिति में मुआवजा देने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने का विधेयक संसद में पास कराने का निर्णय ले लिया है। प्रधानमंत्री के अमेरिका रवाना होने के पहले ही कैबिनेट ने उसे स्वीकृति दे दी है। असल में इस विधेयक के बिना अमेरिका बीमा कंपनियां इन परमाणु संयंत्र लगाने वाली अमेरिकी कंपनियों को बीमा सुविधा नहीं देंगी । अब अमेरिका को अपने पक्ष की बाधा दूर करनी है। वह बाधा है अमेरिका द्वारा आपूर्त परमाणु ईंधन के पुनर्संस्करण अधिकार की। आशा की जा रही है कि कुछ शर्तों के आधार पर अमेरिका यह अधिकार दे देगा। यदि ऐसा हो गया, तो प्रधानमंत्री की इसी यात्रा में समद्ब्राौते को अंतिम रूप प्रदान कर दिया जाएगा, अन्यथा इसे फिर और आगे के लिए टाला गया, तो इससे भारत-अमेरिकी संबंधों में थोड़ी खटास पैदा होगी।
भारत अभी भी अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की बीजिंग यात्रा के दौरान जारी संयुक्त विज्ञप्ति के आघात से उबरा नहीं है। यद्यपि उसे लेकर अमेरिका और चीन दोनों ने अपनी-अपनी तरफ से सफाई दी है। फिर भी उससे भारत को संतोष होने वाला नहीं है। भारत अपने को दक्षिण एशिया की एक प्रमुख शक्ति समद्ब्राता है, लेकिन उपर्युक्त संयुक्त विज्ञप्ति में आए उल्लेख से लगता है कि अमेरिकी दृष्टि में भारत का 'क्षेत्रीय शक्ति होने जैसा कोई दर्जा नहीं है। वह अभी भी कोई ऐसा देश है, जिसके आचरण व्यवहार को अमेरिका और चीन जैसे देश नियंत्रित करेंगे। भारत को इस मामले में चीन से कोई शिकायत नहीं है, लेकिन अमेरिका से अवश्य शिकायत है। यदि उसकी दृष्टि में भारत की इतनी भी स्वतंत्र हैसियत नहीं है कि वह अपने क्षेत्र की स्वयं जिम्मेदारी का व्यवहार कर सके, तो भला अमेरिका के साथ उसकी कोई दोस्ती कैसे हो सकती है।
इसलिए ओबामा के साथ बातचीत में भारत जरूर यह जानना चाहेगा कि वह भारत को उसकी किस हैसियत में अपना साझीदार बनाना चाहता है। अमेरिका चीन संयुक्त विज्ञप्ति में अफगानिस्तान व पाकिस्तान के साथ भारत का जिस तरह उल्लेख किया गया है, वह भारत के लिए बहुत अपमानजनक है। भारत इसके लिए अमेरिका को संदेह का लाभ तो दे सकता है कि वह नासमझी में या गफलत में वैसी शब्दावली पर हस्ताक्षर कर आए, लेकिन इसका भरोसे लायक स्पष्टीकरण उन्हें वाशिंगटन में देना होगा, अन्यथा दोनों देशों के बीच आगे जो भी संबंध होंगे, वे कच्चे ही रहेंगे। भले ही उन्हें दोनों पक्ष कितना ही महिमामंडित क्यों न करें।(२३-११-२००९)

3 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

" यानी पूरे यात्राकाल में धूप-छांव का अच्छा खेल चलता रहेगा। अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के पंडितों की नजर में यह मौसम भी भारत-अमेरिका संबंधों के बनते-बिगड़ते रूप को प्रतिबिंबित कर रहा है।"

शायद राजनीतिक खेल का प्रतीक बन गया है अमेरिका का यह मौसम :)

बेनामी ने कहा…

देखें ऊँट किस करवट बैठता है!

और हाँ , २२/११ का साप्ताहिकीवाला विशद आलेख भी तो यहाँ आना चाहिए न?

Amrendra Nath Tripathi ने कहा…

जिस मौसम के साथ आपने अपनी बात शुरू
वही मौसम कामोबेश निष्कर्ष भी है ...
ब्लागानुकूल संक्षिप्त और सारगर्भित
प्रस्तुति ...
.....आभार ......