सोमवार, 4 जनवरी 2010

           सुन्दरता के कारण तत्त्व की खोज



सुंदरता सहज ही आकर्षित करती है। लेकिन यह   आकर्षण है क्या? कोई क्यों बहुत आकर्षक लगता है या कोई क्यों किसी की ओर दूसरों की अपेक्षा अधिक आकर्षित होता है। क्या है रहस्य ? आधुनिक जैव मनोविज्ञानी इस रहस्य का पता लगाने में लगे हैं। सौंदर्य देखने वाले की आंखों में होता है या वस्तु में, यह बहस बहुत पुरानी हो गयी है। ताजा सवाल यह है कि सौंदर्य या आकर्षण का कारण तत्व क्या है? क्यों पैदा होता है यह आकर्षण और क्यों लोग सौंदर्य के गुलाम बनने को मजबूर होते हैं।
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सौंदर्य वस्तु में होता है या देखने वाले की आंखों में। यह बहस पुरानी है और अभी तक इसका निपटारा नहीं हो पाया है। ठीक इसी तरह स्त्री-पुरुष आकर्षण का मुद्दा है। कोई स्त्री क्यों बहुत आकर्षक लगती है कोई कम। आखिर इस आकर्षण का आधार क्या है। सामान्य तौर पर समझा  जाता है कि शारीरिक आकर्षण पूरी तरह वैयक्तिक अभिरुचि तथा सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों पर निर्भर करता है। अगर आप भी यही समझते  हों, तो इस प्रश्न पर दुबारा विचार कीजिए। दुनिया के मनोजैव वैज्ञानिकों (साइको बायोलाजिस्ट) का कुछ अलग ही कहना है। उनके अनुसार आपका आकर्षण जैव विकास क्रम की आवश्यकताओं पर निर्धारित है। आपको कोई आकर्षित करता है, तो आकर्षण का यह फार्मूला पहले से निर्धारित है और जैविक विकास के साथ आपके मस्तिष्क में अच्छी तरह आरोपित है। सुंदर चेहरों के प्रति आकर्षण और कुरूप चेहरों के प्रति विकर्षण छोटे बच्चों में भी पाया जाता है। प्रयोग करके देखा गया है कि दो महीने का बच्चा भी सुंदर चेहरा देखकर खुश होता है, लेकिन बदसूरत चेहरा देखकर क्षुब्ध। जाहिर है कि दैहिक सौंदर्य या आकर्षण का मापदंड पहले से ही मस्तिष्क में स्थापित है। व्यक्ति के बौद्धिक व सांस्कृतिक स्तर का बहुत थोड़ा प्रभाव रहता है। और वह प्रभाव भी जैविक विकास की आवश्यकताओं से ही विकसित हुआ है। उच्च सांस्कृतिक या बौद्धिक स्तर केवल उसमें परिष्कार करता है, कोई परिवर्तन नहीं।
वास्तव में गहराई से विचार करें, तो आप पाएंगे कि सौंदर्य का मूलाधार, जीवनरक्षा तथा प्रजनन में निहित है। प्रकृति का केवल एक अंतर्निहित कार्यक्रम है कि यह सृष्टि चक्र चलता रहे। मनुष्य के स्तर पर सृष्टिचक्र चलते  रहने का एक ही आधार है कि स्वस्थ युवा स्त्री पुरुष सहवास करें, जिससे संतान उत्पत्ति होऔर वे संतानें सुरक्षापूर्वक उस अवस्था को प्राप्त करें, जब वे स्वयं संतान उत्पत्ति करने लायक हो जाएं। इस तरह यह चक्र चलता रहेगा, तो प्रकृति ने मानव मस्तिष्क में आकर्षण या प्रेम के दो आधार स्थापित किये (जैविक प्रेम भी आकर्षण का ही दूसरा नाम है, जो आपको आकर्षक लगता है, उसे आप प्रेम करते हैं) एक तो स्त्री-पुरुष  के बीच प्रेम दूसरा शिशु के प्रति प्रेम . ये दोनों ही श्रृष्टि के   जैविक विकास के लिए अनिवार्य है। स्त्री-पुरुष के बीच आकर्षण न हो ,प्रेम न हो अथवा  उन दोनों के संयोग के बीच प्रगाढ़ आनंद न हो, तो प्रजनन प्रक्रिया ही रुक  जाएगी। दूसरे शिशु के प्रति स्वाभाविक ममत्व न हो, तो कोई  उसका पालन-पोषण ही नहीं करेगा। यही कारण है कि इस सृष्टि के जीवों में दो सर्वाधिक सुंदर लगते हैं, एक तो स्त्री दूसरे छोटे बच्चे। स्त्रियों में भी सौंदर्य का आधार है उसकी प्रजनन क्षमता। नवयौवन प्राप्त युवती सर्वाधिक आकर्षक लगती है, तो केवल इसलिए कि प्रजनन के लिए वह श्रेष्ठतम अवस्था में होती है। प्रजनन के श्रेष्ठ काल पर्यंत उसका आकर्षण बना रहता है। प्रजनन क्षमता जैसे-जैसे कम होती जाती है, आकर्षण घटने लगता है। और प्रजनन क्षमता समाप्त होते ही उसका आकर्षण भी समाप्त हो जाता है। 40 वर्ष की स्त्री अपने शरीर को चाहे जैसे सांचे में ढला बनाकर रखे हो, लेकिन वह 20 साल की युवती का आकर्षण नहीं पैदा कर सकती है। ठीक यही स्थिति पुरुष के बारे में भी सच है। लेकिन आयु बढऩे के बावजूद स्त्री की अपेक्षा पुरुष का आकर्षण अधिक समय तक बना रहता है, तो केवल इसलिए कि वह अपेक्षाकृत अधिक समय तक गर्भाधान करने में सक्षम रहता है। गर्भाधान कर सकने में अक्षम पुरुष अपना आकर्षण खो देता है। इसीलिए पुरुष के आकर्षण का प्रधान आधार बन गया है पुंसत्व।
यह सारी बातें अब तक अनुमान पर आधारित थीं, लेकिन अब इसके वैज्ञानिक प्रमाण भी उपलब्ध हो गये हैं। मनोजैव वैज्ञानिको ने अपने गहन अनुसंधान से प्रमाणित कर दिया है कि प्रकृति मध्यममार्गी है तथा उसकी सारी क्रिया- प्रक्रिया केवल सृष्टि चक्र को बनाये रखने के लिए है। आप कह सकते हैं कि प्रकृति में और  भी बहुत-सी चीजें भी तो सुंदर लगती हैं, लेकिन ध्यान दें, तो अन्य सौंदर्य भी उपयोगिता आधारित ही  है। प्रकृति में लाल रंग है, जो जीवन का प्रदाता है। सुबह होते ही सबसे पहले जिस रंग पर दृष्टि  पड़ती है वह लाल है। लाल रंग ऊर्जा का स्रोत है, इसलिए वह सुंदर है, आकर्षक है। हरा रंग आंखों को बहुत सुखद लगता है। मनुष्य का क्या संपूर्ण जंगम जीव जगत का आधार यह हरियाली है। इसी से उसे आहार मिलता है, जिस पर यह शरीर निर्भर है, इसलिए हरियाली भी सुंदर लगती है। जीवन के लिए तीसरी सर्वाधिक आवश्यक वस्तु है जल। सघन जल राशि हल्के नीले रंग की सृष्टि  करती है.  इसलिए यह नीला रंग भी  आकर्षक लगता है। लाल, नीला, हरा, पीला मनुष्य की आंखों को आकर्षक लगता है, तो इन रंगों के संयोग से बनी चीजें भी उसे सुंदर व आकर्षक लगती हैं।
ऊपर हम चर्चा कर चुके हैं कि प्रकृति मध्यम मार्गी है। उसे संतुलन पसंद है। बहुत छोटे या बहुत बड़े पंखों वाले पक्षियों की मौत जल्दी होती है। जनम  के समय औसत से बहुत  बड़े या छोटे बच्चों का जीवित रहना मुश्किल होता है। स्थिरता के लिए संतुलन आवश्यक होता है, इसलिए संतुलित आकृतियां सुंदर लगती हैं। अति बड़ा या अति छोटा, भयावह तथा कुरूप होता है। रात्रि काली होती है, जिसमें प्रकाश क्षीण हो जाता है, तो काला रंग डरावना लगता है। हम जब कोई चीज सुंदर बनाना चाहते हैं, तो उसका औसत आकार रखते हैं, हर अंग को संतुलित बनाते हैं तथा लाल, हरे, पीले, नीले रंगों का प्रयोग करते हैं, लेकिन जब हम कुरूपता या भयानकता को प्रदर्शित करना चाहते हैं, तो बेडौल बड़े या छोटे आकार तथा काले रंग का प्रयोग करते हैं।
हम यह सब कुछ पहले से जानते हैं। प्रयोग भी करते हैं। लेकिन हम इसे मानवीय अभिरुचि तथा सांस्कृतिक विकास की देन मानते रहे हैं। अब जो नई बात सामने आयी है, वह यही है कि यह सब प्रकृति ने पहले से तय कर रखा है। इसमें संस्कृति या अभिरुचि का कोई विशेष योगदान नहीं है। प्रकृति ने मस्तिष्क के कम्प्यूटर में जो 'प्रोग्रामिंग  कर दी है, उससे भिन्न मनुष्य को कुछ भी सुंदर या आकर्षक नहीं लगता। तो हम कह सकते हैं कि सौंदर्य न तो वस्तु में है, न देखने वालों की आंखों में है, बल्कि उस वस्तु या व्यक्ति की सृष्टि चक्र को चलाये रखने की उपयोगिता में है। जो उपयोगी है वह सुंदर  है और जो उस उपयोगिता को पूर्ण करने वाला होता है , वह उसके सौंदर्य में बंधता है।
अमेरिका की न्यूमैक्सिको स्टेट यूनिवर्सिटी के जैव-मनोविज्ञानी प्रोफेसर विक्टर जांस्टन ने कम्प्यूटर पर एक नारी का चेहरा तैयार किया है। निश्चय ही यह बेहद सुंदर है। संतुलित नाक-नक्श, निर्दोष त्वचा, बोलती आंखें, रसीले होंठ। सड़क पर निकल जाए तो ट्रैफिक जाम कर दे। जांस्टन ने वास्तव में 16 काकेशियन युवतियों के चेहरों को लेकर उनकी औसत सौंदर्य विशेषताओं के आधार पर यह डिजिटल छवि तैयार की है।
जांस्टन यह पता लगाने के लिए अनुसंधान में लगे हैं कि मनुष्य क्यों कुछ चेहरों को आकर्षक और बाकी को साधारण मानता है। यद्यपि उनके पास इसका अभी भी कोई दो टूक जवाब नहीं है, फिर भी वे ठोस उत्तर पाने के प्रयास में लगे हैं। इस क्षेत्र में वे अकेले नहीं हैं। दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में कई लोग उस क्षेत्र में प्रवेश करना चाहते हैं, जो अब तक कवियों, चित्रकारों, फैशन पंडितों तथा फिल्म निर्देशकों का क्षेत्र  माना जाता रहा है। इस अनुसंधान के अब तक जो परिणाम मिले हैं, वे चकित करने वाले हैं। इनसे पता चलता है कि आकर्षण या सौंदर्य भी भूख और पीड़ा की तरह की अनुभूति है, जो प्रकृति प्रदत्त है। सौंदर्य सत्य भले ही न हो, किंतु वह स्वास्थ्य और प्रजनन क्षमता से संबद्ध अवश्य है। सिनेमा जाने वाले जब किसी माधुरी दीक्षित, रवीना टंडन या करिश्मा कपूर की गुलाबीआभा युक्त त्वचा को देखते हैं, तो बहुत गहरे कहीं उनके चित्त में यह भाव उठता है कि यह स्वच्छ त्वचा हर तरह से स्वच्छ और दोषमुक्त है। इसका स्पर्श आनंददायक होगा और यौवन के सर्वगुण संपन्न यह युवती सहवास के लिए श्रेष्ठतम पात्र हो सकती है। इस अनुभूति को पैदा करने वाले गुण को ही सेक्स अपील कहा जाता है और जिसमें जितनी सेक्स अपील होती है, उसे उतना ही आकर्षक या सुंदर माना जाता है। ऋतिक रोश्र को पर्दे पर देखकर युवतियों में भी ऐसा ही भाव उठता है, जिसके कारण वे उसके लिए पागल हो उठती हैं। यद्यपि इसमें वैयक्तिक अभिरुचियाँ एवं  प्राथमिकताएं भी होती हैं, लेकिन उनका प्रभाव बहुत कम होता है। अब से करीब चार सौ वर्ष पहले एलिजाबेथ युग के कवि एडमंड स्वेंसर ने कहा था कि 'सौंदर्य पुरुषों को आकर्षित करने का एक तरह का चारा है, जिससे कि वे अपने तरह की (मानवीय) दुनिया का विस्तार कर सकें।'
सौंदर्य और आकर्षण के इन अध्ययनों से पता चला है कि आकर्षक पुरुष- स्त्री न केवल विपरीत लिंगियों को ही आकर्षित करते हैं, बल्कि उनको अपनी माताओं से भी अधिक प्यार मिलता है। काम के एवज में उन्हें अधिक पैसा मिलता है। मतदाताओं से अधिक वोट मिलता है.  न्यायाधीश उनके प्रति अधिक उदार होते हैं और उनके प्रति ऐसी धारणा बनती है कि वे अधिक कृपालु, अधिक सक्षम, अधिक बुद्धिमान तथा अधिक आत्मविश्वासी होते हैं।
मानवीय आकर्षकता संबंधी अनुसंधान अभी अपेक्षाकृत नया है, इसलिए सौंदर्यादर्शों पर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन एक बात पर अनुसंधानकर्ताओं में पूर्ण  अभिसहमति है कि 'सूरत के आकर्षण पर हम तब तक विजय नहीं प्राप्त कर सकते, जब तक हम इसके स्रोत का पता न लगा लें। 1999 में प्रकाशित पुस्तक 'सर्वाइवल आफ द प्रेटियस्ट' (जो सबसे सुंदर है वही जीवित बचेगा) की लेखिका मनोविज्ञानी नैन्सी एट काफ ने लिखा है कि 'सौंदर्य के बारे में यह विचार कि यह महत्वहीन है या यह सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों की देन है, वास्तव में सौंदर्य के बारे मे सर्वाधिक मिथ्या अवधारणा है। हमें सौंदर्य को समझना  ही होगा, अन्यथा हम सदैव इसकी गुलामी करते रहेंगे।
कहते हैं सौंदर्य एक ऐसा जादू है, जो सिर चढ़कर बोलता है। सौंदर्य के प्रभाव को तो सभी अनुभव करते हैं। मर्लिन मुनरो, मैडोना, रेखा, माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या राय, करीना आदि का उदाहरण सब   के सामने हैं। राजनीति में प्रियंका का करिश्मा सब देख चुके हैं। एक युवा सौंदर्य के अतिरिक्त और कौनसी ऐसी  बात थी जो  चुनाव प्रचारों में उसके लिए भीड़ उमड़ रही थी।
भारतीय चिंतकों ने स्त्री-पुरुष के आकर्षण और संतान के प्रति प्रेम को महामाया का प्रभाव कहा है। इस महामाया को समझे  बिना व्यक्ति इस प्रेम पाश से मुक्त नहीं हो सकता। दूसरे शब्दों में इसी बात को नैन्सी एटकाल ने कहा है कि जब तक हम सौंदर्य के कारण तत्व को नहीं समझते , हम उससे मुक्त नहीं हो सकते। तो चाहे जीवन को समझना  हो या मुक्ति प्राप्त करनी हो, सौंदर्य के कारण तत्वयानी  प्रकृति या महामाया का रहस्य तो समझना  ही पड़ेगा।


5 टिप्‍पणियां:

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

nice post

Dr. Ashok Kumar Mishra ने कहा…

nice post

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

कहते हैं - ब्यूटी लाइज़ इन द आइज़ आफ़ बिहोल्डर!
ऐसे सुंदर और कुरूप जोडे़ भी होते है कि देखनेवाला सोचता है कि इनमें आपसी प्रेम कैसे हो सकता है। हमारे मुहल्ले में एक नौजवान एक प्रौढ महिला के साथ परिवार चलाता था और उस महिला की एक जवान लड़की थी। इसका मनोविज्ञान समझना तो कठिन ही कहा जाएगा। आपके सारगर्भित लेख ने कुछ उत्तर खोजे हैं।

Udan Tashtari ने कहा…

सीएमप्रसाद साहब से सहमत!


’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’

-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.

नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'

कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.

-सादर,
समीर लाल ’समीर’

ZEAL ने कहा…

Tried hard to see some beauty in the post but failed !

Women are just commodity for most of you guys.

Sigh !