गुरुवार, 12 जनवरी 2012

मंगल पर मानव बस्ती बसाने का सपना





एक चित्रकार की कल्पना में मंगल पर मनुष्य का आवास: वहां सतह के नीचे ही घर बनाए जा सकते हैं या वनस्पतियां उगाना सुविधाजनक हो सकता है।



इस धरती पर पली बढ़ी मनुष्य जाति को बचाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि उसके इस धरती से बाहर भी कहीं धरती पर बसने का इंतजाम किया जाए। इस लिहाज से अपने सौर मंडल में जितने भी ग्रह-उपग्रह उपलब्ध हैं, उनमें सबसे अधिक उपयुक्त मंगल को पाया गया है। धरती के बाहर मानव उपनिवेश के लिए अब तक चंद्रमा और मंगल को ही चुना गया है। मंगल चंद्रमा की अपेक्षा काफी दूर है, लेकिन स्वतंत्र जीवन जी सकने की संभावना मंगल पर अधिक है। इसलिए इधर अंतरिक्ष विज्ञानियों ने मंगल की ओर अपना ध्यान अधिक केंद्रित किया है। कम से कम मंगल पर मौसम बदलने का क्रम तो बहुत कुछ धरती जैसा ही है, क्योंकि मंगल भी अपने अक्ष पर लगभग धरती की तरह ही झुका हुआ है। मंगल पर थोड़ा बहुत वातावरण भी है।



मंगल अपने सौर मंडल में पृथ्वी के सर्वाधिक नजदीक स्थित ग्रह है। अति प्राचीन काल से धरती के लोग इससे परिचित हैं। अपने लाल रंग के कारण शायद छोटे आकार के बावजूद इसने धरती के लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया। भरतीय परंपरा में मंगल को कल्याणकारी एवं शुभ माना जाता है, लेकिन जाने क्यों ज्योतिष में इसकी गणना क्रूर ग्रह के रूप में की गयी है। यूनान में भी इसे युद्ध का देवता माना जाता है। हां, रोमन जरूर इसे कृषि का देता मानते हैं। यूनानी इसे ‘ओरिस’ नाम से पुकारते हैं और रोमन ‘मार्स’। बाद में जाने कब इन दोनों का एकीकरण हो गया और ‘ओरिस’ ‘मार्स’ बन गया। अंग्रेजी वर्ष के तीसरे महीने ‘मार्च’ का नामकरण इसी ‘मार्स’ के आधार पर हुआ। सौर मंडल का दूसरा कोई ग्रह नहीं है, जिसे यह सम्मान मिला हो।

पश्चिम की पुरा कथाओं में जाने कब और कैसे यह धारणा बन गयी कि धरती पर ‘पुरुष’ जाति मंगल से आयी और ‘स्त्री’ शुक्र -वीनस- से। शायद इसमें इन दोनों के रंग रूप का प्रभाव है। मंगल लाल है, तो शुक्र चमकदार सफेद। पश्चिम में शायद उसके चमकदार रूप के कारण उसकी कल्पना स्त्री के रूप में कर ली गयी और उसे सौंदर्य की देवी वीनस का नाम दे दिया गया। अब इसके बाद यदि स्त्री के वहां से धरती पर आने की कल्पना की गयी, तो इसमें आश्चर्य नहीं। जाने कैसे एक समानांतर दंत कथा यह भी चल निकली कि धरती पर जीवन मंगल से ही आया। पहले मंगल जीवन से गुलजार था, लेकिन जाने क्या विपत्ती आयी कि वह उजाड़ हो गया। वहां से जीवन के बीज तत्व किसी उल्का पिंड पर पहुंचे और वह उल्का धरती पर ले आयी। शायद इन्हीं सारी कल्पनाओं के कारण मंगल विज्ञान कथा लेखकों का भी सर्वाधिक प्रिय ग्रह बन गया। धरती चांद और मंगल इन कथाओं में इस तरह गुंथे हुए हैं, मानों वे तीनों किसी एक ही पाणि संसार के अंग हों।

अब वास्तविक विज्ञान इस कल्पना को चरितार्थ करने की दिशा में बढ़ रहा है। धरती पर मानव जीवन दिनों दिन कठिन होता जा रहा है। यहां स्वयं मनुष्य ने अपने विनाश के इतने उपकरण जुटा रखे हैं कि किसी दुर्घटना में अब अपनी ही जाति का अंत कर सकता है। फिर बाहर से संभावित दुर्घटनाओं का भी खतरा है। कब कौनसा भटका हुआ उल्का पिंड आ टकराए क्या ठिकाना। आखिर लाखों या करोड़ों वर्ष पूर्व धरती के विशालकाय जीवों -डायनासोरों- का जीवन इसी तरह तो समाप्त हो गया था। इसीलिए स्टिफेन हाकिंन जैसे ब्रह्मांड विज्ञानी बहुत पहले से यह सलाह दे रहे हैं कि यदि मानव जाति को विनष्ट होने से बचाना है, तो उसके आवास के लिए धरती के बाहर किसी अन्य ग्रह पर भी इंतजाम किये जाने चाहिए। धरती से सबसे निकट का पिंड उसका अपना ही उपग्रह चांद है। इस चांद पर बस्ती बसाने की योजना बहुत दिनों से चल रही है, लेकिन यदि मनुष्य जाति को धरती पर होने वाली किसी बड़ी दुर्घटना से बचाना है, तो उसका नया आवास कुछ अधिक दूरी पर बनाया जाना चाहिए। चांदी काफी नजदीक है और जीवन लायक प्राकृतिक सुविधाएं भी वहां बहुत कम हैं। इसलिए वैज्ञानिकों ने मंगल की ओर देखना शुरू किया है। मंगल थोड़ा दूर भी है और वहां शायद चांद से बेहर परिस्थितियां हैं। इसलिए अंतरिक्ष में चांद के बाद वैज्ञानिक खोजबीन का सबसे बड़ा केंद्र मंगल बन गया।

अंतरिक्ष यानों के माध्यम से मंगल की खोज खबर का काम 1965 में शुरू हुआ, जब मैरिनर-4 नाम का पहला अंतरिक्ष यान मंगल की यात्रा पर निकला और उसके पास से गुजरा। इसके पहले के 6 प्रयास विफल हो चुके थे। उसके बाद सफल-असफल करीब 35 प्रयास और हुए, जिनमें कई यानों ने मंगल की परिक्रम की और कुछ उसकी सतह पर उतरे। इस दौरान तीन ‘मंगल गाड़ियां’ -मार्स रोवर- भी वहां उतारी गयीं। पहली ‘मंगल गाड़ी’ ‘मार्स-पाथ फाइंडर‘ द्वारा 1996 में मंगल की सतह पर उतारी गयी। यह एक छोटी सी गाड़ी थी, खिलौने जैसी, लेकिन इसने इतिहास का नया अध्याय लिखा। अगली गाड़ी थी ‘स्पिरिट’ जो 10 जून 2003 को मंगल की सतह पर उतरी। इसके एक महीने से भी कम समय के भीतर तीसरी गाड़ी ‘अपार्चुनिटी मिशन द्वारा 7 जुलाई 2003 को उतारी गयी। और इसके बाद अब तक की सबसे बड़ी -करीब 1 टन भार की गाड़ी- ‘मार्स साइंस लेबोरेटरी’ मिशन के अंतर्गत बीते 26 नवबंर को रवाना की गयी। इसका नाम ‘क्यूरियासिटी’ -जिज्ञासा- रखा गया है। यह करीब 9 महीने की यात्रा करके अगले वर्ष अगस्त 2012 में मंगल की सतह पर पहुंचेगी।

यह रोबोटिक यानी स्वचालित गाड़ी मंगल पर भेजी गयी पिछली गाड़ी से 5 गुना अधिक भरी है। इसमें प्लूटोनियम बैटरी लगायी गयी है, जिसकी उर्जा से यह कम से कम 10 वर्षों तक मंगल का भ्रमण कर सकेगी। इसमें ऐस उपकरण लगे हैं, जो चट्टानों कोचूर्ण कर सकते हैं और सतह से एक मीटर भीतर तक मी मिट्टी का रासायनिक व परमाण्विक संरचना का पता लगा सकते हैं। इस मिशन का मुख्य उद्देश्य मंगल पर जीवन की संभावनाओं का पता लगाना है। क्या वहां पहले किसी स्तर का कोई जीव था या इस समय क्या वहां सूक्ष्म स्तर का भी कोई जीवन है। यहां जीवन के रहने व विकसित होने की कितनी संभावनाएं हैं। करीब ढाई अरब डॉलर के खर्च से भेजे गये इस यान के साथ बहुत सी संभावनाएं जुड़ी हैं। नासा के मंगल अभियान के निदेशके अनुसार ‘हमने न केवल तकनीकी स्तर पर, बल्कि वैज्ञानिक स्तर पर एक नये युग की शुरुआत की है। हमें यकीन है कि जब यह यान मंगल पर उतरेगा, तो हमें मंगल ग्रह के ऐसे अनूठे दृश्य देखने को मिलेंगे, जिन्हें हमने पहले कभी नहीं देखा है तथा ऐसी जानकारियां प्राप्त होंगी, जिनके आधार पर मनुष्य मंगल पर कदम रखने की योजना बना सकेगा।

अपने सौर मंडल में जितने भी ग्रह हैं, उनमें से केवल मंगल ऐसा है, जिस पर मौसम का परिवर्तन उसी तरह होता है, जिस तरह धरती पर होता है। इसका कारण है कि मंगल भी अपने अक्ष पर उसी तरह और करीब उतना ही झुका हुआ है, जितना की पृथ्वी। हां, यह बात दूसरी है कि मंगल पर प्रत्येक मौसम के बने रहने की अवधि धरती की अपेक्षा दो गुनी है। चंूकि मंगल सूर्य से ज्यादा अधिक दूरी पर है, इसलिए मंगल का एक वर्ष धरती के करीब दो वर्षों के बराबर है। यानी मंगल जब तक सूर्य की एक परिक्रमा करता है, तब तक पृथ्वी दो परिक्रमा पूरी कर चुकी रहती है। हां, धरती और मंगल के तापक्रम में जरूर काफी अंतर है। सूर्य से अधिक दूरी होने के कारण उस पर सूर्य की गर्मी कम पहुंचती है, तो वहां की गर्मी में भ्ी जमने वाली ठंड पड़ती है और सर्दी का तो पूछना ही क्या। गर्मी में अधिकतम तापमान -5 डिग्री सेल्सियस रहता है और सर्दी का न्यूनतम -ध्रुवीय क्षेत्र में- -87 डिग्री सेल्सियस । गर्मी और सर्दी के तापमान में इतना ज्यादा फर्क होने का कारण यह है कि मंगल का वातावरण बहुत हल्का या पतला है, जिसके कारण वह सूर्य की गर्मी को अधिक मात्रा में अपने में सुरक्षित नहीं रख पाता । वातावरण् हल्का रहने के कारण वायुदाब भी बहुत कम है। लेकिन इस सबके बावजूद इतना तो कहा ही जा सकता है कि यदि मंगल सूर्य से पृथ्वी जितनी दूरी पर होता, तो इसका मौसम भी पृथ्वी जैसा ही होता, क्योंकिइसका झुकाव पृथ्वी जैसा ही है। मंगल की सूर्य से दूरी करीब 23 करोड़ कि.मी. है। मंगल के वातावरण की यह भी विशेषता है कि उसमें स्वतंत्र ऑक्सीजन की मात्रा बहुत कम है। वातावरण का 95 प्रतिशत कार्बनडाई ऑक्साइड है, 3 प्रतिशत नाइट्र्ोजन और 1.6 प्रतिशत आर्गन। जाहिर है हवा में पानी और ऑक्सीजन की उपस्थिति नाम मात्र को है, किंतु कार्बन के साथ जुड़ी हुई अवस्था में काफी ऑक्सीजन उपलब्ध है। मंगल का आयतन धरती का केवल 15 प्रतिशत है। उसका व्यास धरती के व्यास का केवल आधा है। मंगल का घनत्व धरती के घनत्व से कम है, इसलिए आकार के मुकाबले उसका कुल द्रव्यमान और कम यानी केवल 11 प्रतिशत है। मंगल का कुल धरातल धरती के सूखे क्षेत्र के लगभग बराबर है, इसलिए बसने की जगह बहुत कम नहीं है। हां, उसकी सतह पर न कोई नदी-समंदर है न जंगल, बस बड़े-बड़े गड्ढे हैं या उंचे-उंचे पहाड़। सतह का रंग लाल है, क्योंकि सतह की पूरी मिट्टी व चट्टानों में हेमेटाइड -लोहे का ऑक्साइड- की मात्रा बहुत अधिक है।

बसने की दृष्टि से और ग्रहों पर नजर डालें तो उनकी स्थितियां और खराब हैं। बुध पर दिन में बेहद गर्मी है, रात में बेहद सर्दी, शुक्र की सतह तो तपती भट्टी जैसी है और दूर वाले ग्रह बेहद ठंडे हैं, क्योंकि वहां सूर्य की उर्जा बहुत कम पहुंचती है।

यात्रा की दृष्टि से भी धरती से मंगल तक की यात्रा अपेक्षकृत आसान है। एक ता इस तक पहुंचने में कम उर्जा की जरूरत पड़ती है। यात्रा का समय अभी तो बहुत ज्यादा प्रतीत होता है। अभी 26 नवंबर को भेजा गया यान 9 महीने बाद आगामी अगस्त में वहां पहुंचेगां वास्तव में अभी इस यात्रा के लिए अंतरिक्ष में जो मार्ग अपनाया जाता है -हॉहमान ट्र्ांसफर आरबिट- वह बहुत लंबा है। इसमें सुधार करके यात्रा की अवधि को घटाकर 6 महीने तक किया जा सकता है। यात्रा समय इससे और कम करने के लिए नई टेक्नोलॉजी का सहारा लेना पड़ेगा। उस टेक्नोलॉजी का भी परीक्षण हो गया है, बस उसे इस्तेमाल में लाना है। ये हैं ‘वी.ए.एस.आई.एम.आर.’ टेकनीक और ‘न्यूक्लियर-रॉकेट‘ टेकनीक। इनका इस्तेमाल करके यात्रा की अवधि 2 हफ्ते तक घटाई जा सकती है।

लेकिन केवल यात्रा का समय कम करना ही काफी नहीं है। अगणित और भी चुनौतियां हैं जिनका मुकाबला करने की तैयारी की जा रही है। एक अंतरिक्ष यात्रियों के लिए रास्ते में रेडियेशन का भारी खतरा है, जिससे कैंसर होने की संभावना है। मंगल तक पहुंच जाने के बाद वहां उतरना भी संकट का काम नहीं है। मंगल पर एक तो वातावरण अत्यंत क्षीण है, दूसरे वहां गुरुत्वाकर्षण घनत्व धरती का मात्र 0.38 प्रतिशत है। पर्यावरण का घनत्व धरती का केवल 1 प्रतिशत है।

मंगल के साथ रेडियो संपर्क भी आसान है। धरती जब मंगल के क्षितिज से ठीक उपर होती है, उस समय सबसे सीध संपर्क कायम किया जा सकता है। अमेरिका और रूस द्वारा भेजे गये यान मंगल का चक्कर लगा रहेहैं।इन यानों में संदेश भेजने व ग्रहण करने के उपकरण पहले से ही लगे हैं। इसका मतलब है कि वहां अनेक संचार उपग्रह पहले मौजूद हैं, बस उनका इस्तेमाल करने की जरूरत है। जब तक वे पुराने और बेकार होंगे, तब तक ऐसे और कई यान उनकी कक्ष -आर्बिट- में पहुंच जायेंगे।

मंगल पर यदि मानव बस्ती बसाना है, तो उसकी प्रारंभिक तैयारी का काम रोबोटिक मशीनों द्वारा कराया जा सकता है। ये मशीनें मनुष्ृय के रहने लायक सुविधाएं जुटाने- जैसे विविध उपभोग वस्तुएं, ईंधन, पानी, निर्माण सामग्री आदि तैयार करने या खोजने- का काम कर सकती हैं। पानी की निश्चय ही बड़ी समस्या है। द्रव रूप में पानी वहां रह ही नहीं सकता, क्योंकि वहां वायु दाब बहुत कम है और ठंड काफी अधिक है। ध्रुवीय क्षेत्र में पानी का विशाल जमा हुआ भंडार है। किंतु अभी ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि निचले अक्षांशों पर भी पानी उपलब्ध हो सकता है। ध्रुवीय क्षेत्र में तो इतनी बर्फ है कि यदि वह सब पिघल जाए तो पूरा मंगल ग्रह पानी की 11 मीटर मोटी परत से ढक जाएगा। ऐसा माना जाता है कि पानी की विशाल मात्रा सतह के अन्य क्षेत्रों में भी चट्टानों में कैद हो सकती है। यदि बीच के इलाकों मं पानी मिल गया, तो फिर वहां मानव उपनिवेश बनने की संभावना स्वतः बढ़ जाएगी। असल में अंतरिक्ष विज्ञान में ज्ञान के नये-नये क्षेत्र जिस तरह खुल रहे हैं, उससे भविष्य की तमाम असंभव कल्पनाएं भी संभव लगने लगी हैं। लगातार बढ़ रहे ऐसे नये ज्ञान और नई तकनीक के कारण यह तय हो गया है कि मनुष्य जाति अकेले धरती की सीमाओं में कैद होकर नहीं रह सकती। हो सकता है धरती के बाहर उसका पहला चरण मंगल पर ही पड़े। 11-12-11

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

हमारे प्राचीन ग्रंथों को कपोल कल्पना कहनेवाले क्या उन्हीं कल्पनाओं को यथार्थ में बदलने का प्रयास नहीं कर रहे हैं? पता नहीं नारदजी के ब्रह्माण्ड पर्यटन की कब सार्थक कर पाएंगे ये वैज्ञानिक!!!