मंगलवार, 2 जुलाई 2013

मौलाना कादरी के सामने झुकी जरदारी सरकार

मौलाना कादरी के सामने झुकी जरदारी सरकार


घोर भ्रष्टाचार और निकम्मेपन में डूबी पाकिस्तानी राजनेताओं की मंडली हतप्रभ है| पिछले करीब सात वर्षों से कनाडा में जा बसे पाकिस्तानी इस्लामी नेता अल्लामा-ताहिर-अल-कादरी ने 'लॉन्ग मार्चफ करके जिस तरह राजधानी इस्लामाबाद को जा घेरा वह अकल्पनीय था| उनके साथ उमड़ा जनसमूह इस बात का प्रमाण था कि देश की जनता अब अपनी ताकत पहचान गई है और उसे सत्ताधारियों का कोई भय नहीं है| यहॉं यह भी उल्लेखनीय है कि यह कोई लोकतांत्रिक उफान नहीं, बल्कि इस्लामी नवचेतना का ज्वार है, जो मध्यपूर्व से निकलकर अब अफ्रीका, एशिया एवं यूरोप की ओर बढ़ रहा है|

पाकिस्तानी मूल के एक कनाडियायी नागरिक मौलवी अल्लामा ताहिर-अल-कादरी ने चार दिन में पूरे पाकिस्तान को हिला कर रख दिया और सत्ता के हुक्मरानों को उनके सामने झुकने और उनकी शर्तों पर समझौता करने के लिए मजबूर कर दिया| पाकिस्तानी राजनीतिक आकाश में एकाएक प्रकटे धूमकेतु की तरह मौलाना कादरी करीब सात वर्ष पूर्व पाकिस्तान छोड़कर कनाडा चले गए थे और वहॉं की नागरिकता हासिल कर ली थी| कादरी ने २००५ में पाकिस्तान छोड़ा था, जब वहॉं जनरल मुशर्रफ का शासन था|
पाकिस्तान में रहते हुए मौलाना ने 'तहरीके मिनहाजुल कुरानफ (कुरान का रास्ता) नामक एक मजहबी संगठन खड़ा किया| कादरी के अनुसार इस समय दुनिया के ९० देशों में उसकी शाखाएँ हैं और लाखों अनुयायी हैं| इसमें भारत भी शामिल है| अभी पिछले वर्ष वह भारत की यात्रा पर आए भी थे| वह यात्रा इस बात की प्रमाण थी कि भारत में उनके अनुयायियों की संख्या कुछ कम नहीं हैं| कादरी ने राजनीति में भी जोर आजमाइश की ओर २००२ के आम चुनाव में चुनाव भी लड़े, लेकिन केवल अपने को राष्ट्रीय असेंबली तक पहुँचा सके| २००५ में जब उन्होंने पाकिस्तान छोड़ा उस समय वह सांसद थे| वह अपनी राजनीतिक स्थिति से असंतुष्ट थे, इसलिए उन्होंने मुशर्रफ की तानाशाही की कटु आलोचना करते हुए संसद से इस्तीफा दिया और कनाडा निकल गए| ऐसा लगता था कि मानो उन्होंने राजनीति से तौबा कर लिया है| लेकिन अभी मध्य दिसंबर में जब उनका पाकिस्तान में पुनः अवतरण हुआ, तो लगा कि उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा अभी जीवित है और वह उसे पूरा करने के लिए सन्नद्ध हैं|
अपने कनाडा प्रवास के दौरान वह चुप नहीं रहे, उन्होंने अपने मिन्हाज मिशन को विश्‍वव्यापी बनाने का काम किया| देश से बाहर रहने के बावजूद उनके अनुयायियों की संख्या किस तरह बढ़ी इसका स्पष्ट प्रमाण उनकी लाहौर रैली और लॉन्ग मार्च में देखने को मिला| दिसंबर २३ की उनकी लाहौर रैली में दो लाख से अधिक लोग शामिल हुए| इस जनसमर्थन को देखकर ही शायद उन्होंने इस्लामाबाद के लिए लॉन्ग मार्च की योजना बनाई| लाहौर रैली में ही उन्होंने सरकार को ७ जनवरी तक इस्तीफा देकर कार्यवाहक सरकार का मार्ग प्रशस्त करने की चेतावनी दी| कादरी ने सत्ताधीशों को स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि उनकी मांग की ओर कान न दिया गया, तो वह अपने अनुयायियों के साथ लॉन्ग मार्च पर निकलेंगे और इस्लामाबाद में आकर सरकार को घेरेंगे|
सरकार खैर पहली चेतावनी पर भला क्या      सुनती, इसलिए कादरी लॉन्ग मार्च पर निकले और १४ जनवरी को इस्लामाबाद में संसद भवन के सामने जिन्ना स्केवयर में जा डटे| उनके दावे के अनुसार 'लान्ग मार्चफ में १० लाख लोग तो नहीं थे| लेकिन स्त्री, बच्चों, नौजवानों व बूढ़ों समेत जितने लोग इस मार्च में शामिल हुए वे ही पाकिस्तानी सत्ता को हतप्रभ करने के लिए काफी थे| लोग चकित थे कि सात साल देश से बाहर रहने वाला एक व्यक्ति देश में आने के १५-२० दिनों के भीतर इतना बड़ा आंदोलन कैसे खड़ा कर सकता है| अनुमान लगाया गया कि पर्दे के पीछे इसकी गुपचुप तैयारी पहले से चल रही थी| केवल समय की प्रतीक्षा थी| ऐसा लगा कि 'मुस्लिम ब्रदरहुडफ का अंतर्राष्ट्रीय संगठन शायद इस अभियान के भी पीछे है| अब यह हो सकता है कि इसके पीछे मुस्लिम ब्रदरहुड का भले ही सीधा हाथ न हो, किंतु डॉ. अल्लामा ताहिर-अल-कादरी उसके संपर्क में न हों, यह नहीं हो सकता| उनके संगठन के नाम से ही यह जाहिर है कि वह राजनीति में कुरान का रास्ता स्थापित करने का सपना देखते हैं| वह निजी तौर पर भी अपने को 'शेख-अल-इस्लामफ कहलाना पसंद करते हैं| इसलिए यदि वह इस्लाम की अरबस्तानी लहर में पाकिस्तान को भी डुबाने की तैयारी में हों, तो इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं|
उनके इस्लामाबाद के धरने के दौरान ही पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश जारी हुआ कि भ्रष्टाचार के आरोप में प्रधानमंत्री रजा परवेज अशरफ को गिरफ्तार किया जाए| मौलाना कादरी ने इसे अपने आंदोलन की जीत बताया| इससे
राजनेताओं पर किए जा रहे उनके प्रहार को एक वैधानिक प्रामाणिकता भी मिल गई| उन्होंने धरने पर बैठे अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि क्या उन्होंनेे दुनिया के किसी और देश के बारे में सुना है, जहॉं का शीर्ष प्रशासक इस तरह भ्रष्टाचार का घोषित अपराधी हो| उनका सीधा कहना था कि जिन्हें जेल में होना चाहिए वे संसद में बैठै हैं, मंत्री पद संभाले हैं और देश चला रहे हैं| सत्ताधारी पीपुल्स पार्टी के नेताओं ने पहले तो डॉ. कादरी की उपेक्षा की| यहॉं तक कि उनकी गिरफ्तारी का आदेश भी जारी कर दिया, लेकिन बाद में वह झुक गई और धरने के चौथे दिन १७ जनवरी को पॉंच घंटे की लंबी बातचीत के बाद कादरी के साथ समझौता कर लिया| पॉंच सूत्री समझौते में सरकार ने कादरी की प्रायः सारी मॉंगें मान ली| यह समझौता उसी स्थल पर हुआ, जहॉं डॉ. कादरी का धरना चल रहा था| समझौते पर सरकार के अन्य प्रतिनिधियों के साथ प्रधानमंत्री रजा परवेज अशरफ के भी हस्ताक्षर हैं| डॉ. कादरी ने खुद अपना रुख भी कुछ नरम कर लिया, क्योंकि धरना स्थल पर उनके समर्थकों की संख्या तेजी से घट रही थी और सर्दी के इस मौसम में खुले आसमान के नीचे धरने पर बैठे स्त्री और बच्चे बेहाल हो रहे थे| लेकिन इतना तो मानना पड़ेगा कि डॉ. कादरी ने मात्र चार दिन में सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया|
डॉ. ताहिर-अल-कादरी ने अपने आंदोलन के लिए बहुत सटीक समय चुना| देश में आगामी मई महीने में आम चुनाव होने वाले हैं| मौलाना इस चुनाव का इस्तेमाल करके पाकिस्तान का नक्शा बदलना चाहते हैं| इस समय पाकिस्तान की जो स्थिति है, उसमें सत्ताधारी पीपुल्स पार्टी अपनी सारी प्रतिष्ठा खो चुकी है| देश की सर्वोच्च अदालत ने भ्रष्टाचार के आरोप में स्वयं प्रधानमंत्री को गिरफ्तार करने का आदेश दे रखा है| राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी, जो सत्तारूढ़ पीपुल्स पार्टी के सह अध्यक्ष भी हैं, स्वयं भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे हैं| सर्वोच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ भी मुकदमा दर्ज करने का आदेश दे रखा है| देश की अर्थव्यवस्था सर्वाधिक बदतर हालत में है और हिंसक वारदातों ने पूरे देश को अपनी चपेट में ले रखा है|
शायद इन तमाम समस्याओं की तरफ से देश का ध्यान हटाने के लिए ही पाकिस्तानी हुक्मरानों ने भारतीय सीमा पर भड़काने वाली कार्रवाई शुरू की| लेकिन उसकी पूरी कोशिश के बावजूद भारत नहीं भड़का और सीमा पर कोई बड़ा बखेड़ा नहीं खड़ा हुआ, इसलिए सरकार को इसका कोई वांछित राजनीतिक लाभ नहीं मिल सका| ऐसे समय में कादरी की रैली ने सरकार को ऐसे कटघरे में ला खड़ा किया कि उसे समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा| सरकार ने बड़ी सहजता से स्वीकार कर लिया कि चुनाव के पहले सरकार इस्तीफा दे देगी और चुनाव कराने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यवाहक सरकार का गठन किया जाएगा| चुनाव आयोग का पुनर्गठन किया जाएगा तथा अगला चुनाव संविधान के अनुच्छेद ६२, ६३ तथा २१८ के तहत कराया जाएगा|
अब आगे क्या होगा और अगले आम चुनाव का हश्र क्या होगा, इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन इतना तय है कि अगला आम चुनाव कट्टरपंथी इस्लाम के सत्ता में आने का एक प्रबल अवसर होगा| डॉ. कादरी 'मुस्लिम ब्रदरहुडफ से सीधे जुड़े हों या नहीं, लेकिन वह उसी अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी आंदोलन का अंग हैं, जिसका लक्ष्य दुनिया में इस्लामी साम्राज्य की स्थापना करना है| मौलाना कादरी ने पश्‍चिम में रहते हुए अपनी छवि एक प्रगतिशील मुस्लिम नेता की बनाई है| वैसे भी वह सूफी मुस्लिम समुदाय से आते हैं| लेकिन वास्तव में यह उदारपंथी बाना उन्होंने पश्‍चिमी देशों में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए धारण किया, अन्यथा उनके राजनीतिक विचार 'मुस्लिम ब्रदरहुडफ के राजनीतिक विचारों से भिन्न नहीं है, जो कट्टरपंथी वहावी परंपरा का अनुयायी है| पाकिस्तान में यदि आगामी आम चुनावों को टालने का कोई बहाना न खड़ा हुआ, तो यह तय है कि इस बार कट्टरपंथी इस्लामी तबका उसमें उल्लेखनीय भूमिका अदा करेगा|

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