शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

धरती के लिए...

धरती के लिए उल्का पिंडों का खतरा
 
 
बीती १५ फरवरी को धरती एक विशाल उल्का से तो बाल-बाल बच गई, लेकिन एक दूसरी उल्का उसके गुजरने के पहले ही (जिसका पहले से कोई अनुमान नहीं था) धरती के वायुमंडल में आ धमकी, जिसके कारण रूस के साइबेरिया क्षेत्र में १५०० से अधिक लोग घायल हो गए और संपत्तियों को भी भारी नुकसान पहुँचा| संयोग से कोई परमाणु रियेक्टर उसकी चपेट में नहीं आया और उस क्षेत्र का एक बड़ा शहर चेल्याबिंस्क भी चमत्कारी ढंग से बच गया| रूसी साइंस अकादमी के अनुसार यह उल्कापिंड करीब १०,००० टन वजन का था, जो १५ से २० कि.मी. प्रेति सेकेंड की गति से स्थानीय समय के अनुसार प्रातः ९ बजे वायुमंडल में प्रविष्ट हुआ| (रूसी विज्ञान अकादमी का पहला अनुमान था कि यह उल्का पिंड केवल १० टन वजन का था, लेकिन बाद मंं पता चला कि यह अनुमान से एक हजार गुना अधिक, करीब १० हजार टन का था|) धरती की सतह से करीब ५० कि.मी. ऊपर यह दग कर टुकड़े-टुकड़े हो गया| विस्फोट के समय वह सूर्य से भी अधिक चमकदार दीख रहा था| विस्फोट के बाद आकाश में एक लंबी चमकदार धुएँ की रेखा देखी गई| उल्का के छोटे-छोटे टुकड़े आस-पास बिखर गए| हवा की रगड़ से वे भी जल उठे, इसलिए धुएँ की रेखा के पीछे कई विस्फोट सुनाई दिए|
विस्फोट से निकले टुकड़े साइबेरिया तथा कजाखिस्तान के कई इलाकों में गिरे| इन जलते हुए टुकडों तथा विस्फोट की आघात तरंगों (शॉक वेव्स) से करीब ४००० मकानों को क्षति पहुँची| करीब १० लाख वर्ग फीट खिड़कियों के कॉंच टूट गए, जिनकी सफाई के लिए २४,००० सैनिक लगाए गए हैं| 'नासा' के अनुसार इस विस्फोट से करीब ५०० किलो टन ऊर्जा निकली, जो हिरोशिमा पर गिरे परमाणु बमों जैसे ३० बम के बराबर थी| ऐसा लगा कि कोई भूकंप आ गया| यह शहर मास्को से करीब १५०० कि.मी. दूर है तथा इसकी आबादी करीब ११ लाख २० हजार है|
संयोग से उसी दिन विशाल उल्कापात का एक बड़ा खतरा टल गया| 'ऐस्टेरॉयड २०१२ डी.ए. १४’ नामक यह उल्कापिंड १५ फरवरी की शाम धरती को बिना कोई हानि पहॅुंचाए उससे २७६८१ कि.मी. दूर इंडोनेशिया के ऊपर से निकल गया| करीब ४६ मीटर की मोटाई वाला यह उल्कापिंड यदि धरती से टकराता, तो करीब १००० परमाणु बमों के एक साथ विस्फोट के बराबर की ऊर्जापात होता| 'नासा' ने यद्यपि पहले से ही आश्‍वस्त कर दिया था कि यह उल्का पृथ्वी से नहीं टकराएगी, फिर भी यह अंदेशा तो था ही कि वह अंतरिक्ष में घूमते कुछ संचार उपग्रहों को अपनी चपेट में ले सकता है, जिससे धरती की संचार व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो सकती है| कारण था कि यह पिंड भूस्थिर उपग्रहों की धरती से दूरी (३५७८९ कि.मी.) से भी कम दूरी से निकलने वाला था, मगर वह बिना किसी उपग्रह से टकराए निकल गया, इससे सभी ने राहत की सॉंस ली|
फिलहाल हम राहत की सॉंस ले सकते हैं कि एक बड़ा खतरा टल गया और दूसरा पिंड भी धरती पर कोई बड़ा घाव नहीं लगा सका, किंतु अंतरिक्ष में बिखरे ऐसे उल्कापिंडों से धरती के लिए हमेशा खतरा बना हुआ है| किसी भी देश के पास अभी ऐसा कोई उपाय नहीं है कि धरती की तरफ आ रहे किसी उल्कापिंड को पहले ही रोका जा सके या उसे नष्ट किया जा सके|
उल्कापिंड डी.ए. १४ का भी पता गत वर्ष स्पेन के एक डेंटिस्ट द्वारा लगाया गया, जो शौकिया नक्षत्र विज्ञानी (एस्ट्रोनोमर) है| पेशेवर विज्ञानियों को इसका कोई पता नहीं था कि कोई भटका उल्कापिंड धरती की ओर आ रहा है| उसने जब जानकारी दी तब अंतरिक्ष में उसके मार्ग पर नजर रखी जाने लगी और रूस में आ टकराए पिंड का तो दूर-दूर तक किसी को अंदेशा नहीं था|
नक्षत्र विज्ञानियों के अनुसार ऐसे उल्कापिंड लगभग हर ४० वर्ष में पृथ्वी के पास से निकलते हैं, लेकिन धरती से इनके टकराने की संभावना हर एक लाख या दो लाख वर्ष में एक बार होती है| समझा जाता है कि करीब ६५० लाख वर्ष पूर्व धरती से डायनासोरों का सफाया ऐसे किसी उल्कापात में ही हुआ था| टकराने की कम संभावना के कारण ही धरती पर मनुष्य की सभ्यता जीवित बची चली आ रही है| लेकिन अगला खतरा कब आ टपके, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता|

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