मंगलवार, 2 जुलाई 2013

उत्तर पूर्व की गंभीरतम समस्या

उत्तर पूर्व की गंभीरतम समस्या
बंगलादेश से हो रही मुस्लिम घुसपैठ

 
भारत का उत्तर-पूर्वी क्षेत्र पहले आंतरिक विद्रोह (इंसर्जेंसी) के कारण अशांत था, लेकिन अब उससे भी बड़ी और गंभीर समस्या बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों के कारण पैदा हो गई है| इस घुसपैठ से न केवल सीमावर्ती क्षेत्रों का जनसंख्या अनुपात बदला है, बल्कि इसके कारण गंभीर राजनीतिक व सामाजिक चुनौतियॉं भी उठ खड़ी हुई हैं| खेद की बात है कि इस घुसपैठ को न केवल राजनीतिक समर्थन मिल रहा है, बल्कि घुसपैठियों को स्थानीय लोगों के मुकाबले तरजीह भी दी जा रही है|

भारत का उत्तर पूर्वी क्षेत्र अपने सांस्कृतिक वैभव तथा प्राकृतिक संपदा की दृष्टि से जहॉं देश के सर्वाधिक समृद्ध क्षेत्रों में गिना जाता है, वहीं सामाजिक एवं राजनीतिक दृष्टि से यह देश का सर्वाधिक समस्याग्रस्त क्षेत्र भी कहा जाता है| देश के मुख्य भाग से एक पतली भू पटि्टका इसे जोड़ती है, जिसे 'सिलीगुड़ी कॉरीडोर' कहा जाता है| यह पश्‍चिम बंगाल का भू-भाग है, जो मात्र २१ से ४० कि.मी. तक चौड़ा है| इसकी ९० प्रतिशत सीमा (४५०० कि.मी.) अन्य देशों की सीमाओं से मिलती है, यानी इसकी ९९ प्रतिशत सीमा रेखा भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा है| उत्तर में चीन (दक्षिणी तिब्बत) है, तो पश्‍चिम में नेपाल-भूटान, पूर्व में म्यांमार तो दक्षिण-पश्‍चिम में बंगलादेश| दूसरे देशों से मिलने वाली बाकी इतनी बड़ी सीमा इसकी भारी समस्या है, क्योंकि इस विस्तृत सीमा से लगातार बाहरी देशों की घुसपैठ होती रहती है| सर्वाधिक घुसपैठ बंगलादेश की तरफ से हुई है| इस घुसपैठ ने इस क्षेत्र को सर्वाधिक समस्याग्रस्त बनाया है| बंगलादेशी मुसलमानों ने यहॉं आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक ही नहीं, बल्कि गंभीर सांस्कृतिक संकट खड़ा कर दिया है| इनके माध्यम से अलकायदा और तालिबानी कट्टरपंथी संगठन भी यहॉं अपना जाल फैला चुके हैं| अलकायदा तो इस पूरे क्षेत्र को कश्मीर की तरह के अलगाववादी संघर्ष का गढ़ बना देना चाहता है|
उत्तर-पूर्व से इस क्षेत्र के अंतर्गत आठ राज्य आते हैं- असम, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर, अरुणाचल तथा सिक्किम| वर्तमान समय में ये आठों राज्य केंद्र सरकार के उत्तर-पूर्व क्षेत्र विकास मंत्रालय (एमडीओएनईआर यानी मिनिस्ट्री ऑफ डेवलपमेंट ऑफ नार्थ-ईस्ट रीजन) के अंतर्गत आते हैं| इसके मंत्री हैं डिब्रूगढ़ से कांग्रेस के सांसद पवन सिंह घटोवर| वह स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री हैं| इस एमडीओएनईआर की स्थापना २००१ में अटल बिहारी वाजपेयी के शासनकाल में की गई| इसके पूर्व सबसे पहले १९७१ में 'नार्थ ईस्टर्न कौंसिल' (एनईसी) का गठन किया गया था और इसे आठों राज्यों के विकास की जिम्मेदारी सौंपी गई थी| बाद में १९९५ में 'नार्थ ईस्टर्न डेवलपमेंट फाइनेंस कार्पोरेशन लि.' का गठन किया गया| और फिर इस क्षेत्र के विकास के लिए एक अलग मंत्रालय की स्थापना की गई| फिर भी यह पूरा इलाका देश के अन्य भूभागों के मुकाबले काफी पिछड़ा है|
ब्रिटिश काल में यह पूरा क्षेत्र 'बंगाल प्रांत' का अंग रहा| असम राज्य १८७४ में अस्तित्व में आया| जब देश स्वतंत्र हुआ, तो ब्रिटिश इंडिया वाले असम में मणिपुर व त्रिपुरा की रियासतें शामिल कर ली गईं, लेकिन बाद में इन दोनों को १९५६ में अलग करना पड़ा| १९५६ से १९७२ तक ये केंद्र शासित प्रदेश थीं, उसके बाद इन्हें राज्य का दर्जा मिला| स्थानीय आकांक्षाओं को संतुष्ट करने के लिए असम का और चार बार विभाजन हुआ और चार अन्य राज्य बने| १९६३ में नागालैंड, १९७२ में मेघालय, १९७५ में अरुणाचल प्रदेश (जो इसके पहले नार्थ-ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी के नाम से जाना जाता था, भारत सरकार ने १९५४ में इस सीमावर्ती क्षेत्र को असम से अलग करके यह नया नाम दिया था) और १९८७ में मिजोरम नाम के नए राज्य अस्तित्व में आए| २००२ में सिक्किम को भी इन राज्यों के साथ जोड़कर 'नार्थ ईस्टर्न कौंसिल' का आठवॉं सदस्य बना दिया गया|
उत्तर-पूर्व के ये राज्य बेहद खूबसूरत हैं| प्रकृति ने मानो अपना पूरा खजाना यहॉं खोल दिया है| लेकिन देश में इनकी चर्चा इनकी सांस्कृतिक समृद्धि या प्राकृतिक सौंदर्य के लिए कम, बल्कि यहॉं व्याप्त अशांति के लिए अधिक होती है|
अशांति के यहॉं मुख्य रूप से दो कारण हैं| एक तो क्षेत्रीय स्वतंत्रता एवं स्वायत्तता की आकांक्षा, दूसरे बाहरी क्षेत्रों से हो रही घुसपैठ| क्षेत्रीय स्वतंत्रता की आकांक्षा के कारण उत्पन्न हिंसक विद्रोह (इंसर्जेंसी) तो अब बहुत कुछ शांत हो चला है| विद्रोही समुदाय धीरे-धीरे मुख्य राष्ट्रीय धारा में शामिल होने में ही अपना हित समझने लगे हैं| लेकिन बाहरी क्षेत्रों से हो रही घुसपैठ की समस्या दिनोंदिन गंभीर से गंभीरतर होती जा रही है| इस समस्या के अधिक गंभीर हो जाने का मुख्य कारण है घुसपैठियों का सांप्रदायिक चरित्र| इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहॉं बहुत पुराने समय से नेपाली, बर्मी तथा थाई लोगों का आना-जाना चल रहा था| पूर्वी बंगाल से भी लोग आते थे, लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व इनके कारण कोई सामाजिक व राजनीतिक समस्या नहीं पैदा हुई| मगर स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस घुसपैठ ने उत्तर-पूर्व में विशेषकर असम के इलाके में आर्थिक ही नहीं, राजनीतिक और सांस्कृतिक संकट भी खड़ा कर दिया है| देश के भीतर की आंतरिक शोषक वृत्तियों के विरुद्ध संघर्ष या उस समस्या का समाधान तो आसान था, किंतु इस सांप्रदायिक राजनीति ने जो संकट खड़ा कर दिया है, उसका समाधान आसान नहीं है|
इस क्षेत्र के आर्थिक शोषण की शुरुआत जो १९वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अंग्रेजों के आने के साथ हुई, वह देश के स्तवंत्र होने के बाद भी रुकी नहीं, बल्कि बढ़ती गई| देश के स्वतंत्र होने के बाद असम को पहला झटका तब लगा, जब नागालैंड और मिजोरम को उससे अलग किया गया| इस विभाजन से असम की जमीन में ६५ प्रतिशत कमी आई, लेकिन जनसंख्या बढ़ गई| इसका कारण था एक तो नागालैंड और मिजोरम को जनसंख्या के अनुपात में कहीं अधिक जमीन दी गई, दूसरे असम में बंगलादेशी घुसपैठियों की संख्या तेजी से बढ़ी| असम का भूक्षेत्र १९६१ में २,१९,८७७ वर्ग कि.मी. था, जो १९७२ में ७८,५२३ वर्ग कि.मी. रह गया, लेकिन १९७२ में उसकी जनसंख्या १९६१ के मुकाबले ३८ लाख बढ़ गई| इस आंकड़े से वास्तविक स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकती, क्योंकि असम में खेती के लिए उपलब्ध भूमि का अनुपात बहुत कम है| ज्यादातर भूमि संरक्षित वन क्षेत्रों तथा चारागाहों के लिए आरक्षित हो गई है| आदिवासी इलाके गैर आदिवासियों के लिए बंद हैं|
असम में ९० प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है और जब कृषि क्षेत्र घटता जा रहा है, तो रोजगार के लिए तनाव बढ़ेगा ही| ऐसी स्थिति में सबसे पहले नजर उन लोगों पर ही जाएगी, जो बाहर से आकर उनकी जीविका का साधन उनसे छीन रहे हैं| इन अवैध घुसपैठियों के खिलाफ असमी युवा लामबंद होने लगा|
वास्तव में इसकी शुरुआत मार्च १९७८ में तब हुई, जब लोकसभा सदस्य हीरालाल पटवारी के निधन के बाद मंगलदोई लोकसभा सीट के उपचुनाव की नौबत आई| चुनाव आयोग ने मतदाता सूची के पुनरीक्षण का कार्य शुरू कराया| क्षेत्र से ७०,००० शिकायतें दर्ज हुईं| अदालत ने २६,९०० को सही साबित किया| जाहिर है चुनाव के पहले मतदाता सूची में अवैध रूप से आए घुसपैठियों के नाम बड़ी संख्या में दर्ज करा दिए गए थे| विदेशियों की इस घुसपैठ के खिलाफ ही १९७९ में असमिया छात्रों का संगठन 'आल असम स्टूडेंट्स यूनियन' (आसु) तथा आम नागरिकों का संगठन 'आल असम गण संग्राम परिषद' का गठन हुआ| बाद में आंदोलनकारियों ने एक राजनीतिक पार्टी भी बनाई 'असम गण परिषद' (अगप)| आसु ने नारा दिया 'सूची में सुधार नहीं तो चुनाव नहीं' (नो रिवीजन नो इलेक्शन)| उनकी तीन मांगें थीं- 'थ्री डीज'| यानी डिलीशन, डिटेक्शन एंड डिपोर्टेशन (मतदाता सूची में अवैध नामों को हटाना, उन नाम वाले व्यक्तियों की पहचान करना तथा उन्हें वापस उनके देश भेजना)|
२७ नवंबर १९७९ से 'आसु' और 'आगसप' का आंदोलन शुरू हुआ| १० दिसंबर, चुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तारीख थी| तब तक एक भी नामांकन नहीं हो सका था| अंतिम दिन वहॉं नियुक्त पुलिस अधिकारी के.पी.एस. गिल (आईजी) पुलिस सुरक्षा के साथ कांग्रेस की प्रत्याशी बेगम आबिदा अहमद का नामांकन कराने पहुँचे| आंदोलनकारियों ने उन्हें रोका| पुलिस ने लाठियॉं बरसाईं| उन्होंने एक युवक खरगेश्‍वर तालुकदार को तो इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई| आंदोलन उग्र से उग्रतर होता गया| केंद्र सरकार ने अक्टूबर १९८३ में अवैध घुसपैठियों की पहचान के लिए ट्राइब्यूनल बनाने का एक कानून 'इल्लीगल माइग्रेंट्स' (डिटरमिनेशन बाई ट्राइब्यूनल्स) एक्ट पारित किया| जनवरी १९६६ की तिथि पहचान और वापसी के लिए तय की गई| मतलब यह कि इस तिथि के बाद बाहर से आए लोगों को पहचान करके उन्हें वापस भेजने का काम किया जाएगा| १५ अगस्त १९८५ को राजीव गांधी के शासन काल में ऐतिहासिक असम समझौता संपन्न हुआ, लेकिन यह समझौता भी जमीनी तौर पर कार्यांवित नहीं हो सका|
वास्तव में यह समझौता लागू न हो पाना ही असम क्या पूरे उत्तर-पूर्व की सबसे बड़ी समस्या बन गई है| बंगलादेश से होने वाली घुसपैठ की समस्या ने अब इस क्षेत्र में इस्लामी साम्राज्यवाद और भारतीयता के बीच संघर्ष का रूप ले लिया है|

घुसपैठिये बंगलादेशियों के नेता बदरुद्दीन अजमल

मध्य असम क्षेत्र के होजाई निवासी बदरुद्दीन अजमल मुसलमानों के एक अरबपति धार्मिक नेता हैं| उन्होंने यह विशाल संपत्ति सुगंधित तेलों (विशेषकर अगर का तेल) या इत्र के व्यवसाय से अर्जित की है| उनकी वर्तमान संपत्ति २००० करोड़ रुपये से अधिक आँकी जा रही है| २००५ में जब सर्वोच्च न्यायालय ने घुसपैठिये मुसलमानों को सुरक्षा देने वाले कानून को रद्द करने का आदेश दिया, तब उसके खिलाफ बदरुद्दीन ने २ अक्टूबर २००५ को 'असम यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट' के नाम से अपना संगठन खड़ा किया (अब इसका नाम ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट है)| इस फ्रंट ने २००६ के विधानसभा चुनाव में १० सीटें जीतीं| स्वयं अजमल दक्षिण सलमारा तथा जमुनामुख की दो सीटों से विजयी हुए| इसके बाद २००९ में अजमल धुर्वी सीट से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए| इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के सिटिंग एमपी अनोवर हुसैन को भारी बहुमत से हराया| बंगलादेशी मुसलमानों के समर्थन में अजमल का प्रभाव बढ़ता गया| उन्होंने २०११ के विधानसभा चुनाव में केवल बंगलादेशी मुस्लिम मतों का ध्रुवीकरण कराकर १८ सीटें हासिल कीं| उनकी पार्टी में देशी मुसलमानों के लिए कोई स्थान नहीं था| बदरुद्दीन अपने बेहद भड़काऊ भाषणों के लिए प्रसिद्ध हैं, लेकिन चाहे राज्य की सरकार हो या केंद्र की, वह उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती, क्योंकि उसे भय रहता है कि यदि कोई कार्रवाई की तो उससे देशभर का मुसलमान नाराज हो जाएगा|
१२ फरवरी १९५० को जन्मे बदरुद्दीन दारुल-उलूम देवबंद से इस्लामी थियोलॉजी तथा अरबी भाषा एवं संस्कृति में फाजिल (फाजिले देवबंद) तथा एयरोस्पेस में इंजीनियर हैं| उनका एक अपना एन.जी.ओ. है 'मरकज-उल-म' आरिफ| होजाई (असम) में हाजी अब्दुल मजीद मेमोरियल ट्रस्ट के नाम से एक पब्लिक ट्रस्ट है| वह दारुल उलूम देवबंद के एडवाइजरी बोर्ड (सूरा) तथा जमीयत उलेमाए हिंद की केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य एवं असम राज्य जमीयत उलेमाए हिंद के अध्यक्ष हैं| वह तेजीम मदारिसे कौमिया तथा ऑल असम नान गवर्नमेंट मदरसा बोर्ड के भी अध्यक्ष हैं| उत्तर-पूर्व में करीब ६०० मदरसे हैं| उपर्युक्त मदरसा बोर्ड इन मदरसों का पाठ्यक्रम तैयार करता है तथा परीक्षाएँ कराता है| वह तमाम अन्य मदरसों, मुस्लिम स्कूलों व यतीम खानों के अध्यक्ष, मंत्री या सदस्य हैं| वह मुंबई में स्थापित मरकज-उल-म' आरिफ एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर के भी अध्यक्ष हैं, जहॉं मदरसा से पास ग्रेजुएट्स को अंग्रेजी पढ़ाई जाती है| इसके साथ ही यहॉं मुसलमानों के सामाजिक, धार्मिक
तथा आर्थिक मामलों में अनुसंधान का कार्य भी होता है|
यह एक रोचक तथ्य है कि असम के असमिया भाषी देशी मुसलमानों ने कभी अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाने की कोशिश नहीं की, जिसके कारण वे सबसे अधिक वंचित रहे| बंगला भाषी बंगलादेशी मुसलमानों ने राज्य की वे सारी सुविधाएँ हथिया लीं, जो अल्पसंख्यक के नाम पर राज्य के मुसलमानों को बॉंटी गयी|

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