शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

ऋतु संधिकाल ...

ऋतु संधिकाल में सावधानी आवश्यक

सर्दियॉं अब बीत चुकी हैं| वसंत का आगमन हो चुका है| दक्षिण भारत में आमों में बौर आने लगे हैं और धूप भी तेज हो गई है, उत्तर में वसंतागमन थोड़ा देर से होता है, फिर भी फाल्गुन (मार्च) आने के साथ वहॉं भी धरती सर्दी को विदाई देती नजर आने लगी है| ऋतु परिवर्तन के इस काल को ही ऋतु संधिकाल कहते हैं, जिसके दौरान थोड़ी सावधानी बरतना स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है|
आयुर्वेद के अनुसार बाह्य प्रकृति में बदलाव आने के साथ शरीर के आंतरिक अवयवों में भी परिवर्तन होने लगता है| भीतर का रासायनिक संतुलन नया रूप लेने लगता है| तो अब अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने की चिंता करने वाले मनुष्य को भी ऋतु के अनुकूल अपनी जीवनशैली बदलने की तैयारी कर लेनी चाहिए| वैसे गर्मी से सर्दी की तरफ संक्रमण के मुकाबले सर्दी से गर्मी की तरफ संक्रमण काफी सहज होता है| गर्मी के साथ समायोजन के लिए शरीर को कुछ अधिक प्रयत्न नहीं करना पड़ता| फिर भी यदि हम मौसम में बदलाव के अनुकूल अपना खान-पान तथा जीवनचर्या थोड़ी बदल लें, तो उसका लाभ अवश्य मिलेगा| ऋतु परिवर्तन के इस मध्यकाल को ही ऋतु संधिकाल कहते हैं| इस संधिकाल में थोड़ी अधिक सावधानी की जरूरत रहती है|
बसंत ऋतु में वायु प्रवाह प्रायः दक्षिण से उत्तर की ओर होता है| वसंत का वर्णन करने वाले कवियों ने दक्षिण पवन की प्रशंसा में ढेरों छंद लिखे हैं| सूर्य किरणें भी मध्यम ताप बिखेरने वाली होती हैं| वृक्षों में नई कोपलें आ जाती हैं| बहुत से वृक्षों के तने की बाहरी पपड़ियॉं भी झड़ जाती हैं और नई छालें उनकी जगह ले लेती हैं| वातावरण धूलरहित और स्वच्छ नजर आता है| तो ऐसे समय में शरीर भी अपने को स्वच्छ करने की प्रक्रिया में आगे बढ़ता है|
शीतकाल में शरीर में बहुत सारा श्‍लेषमा (कफ) जमा हो जाता है| कफ प्रकृति वाले मनुष्यों में कुछ अधिक ही| वसंतागमन के साथ शरीर इस कफ को बाहर निकालने की कोशिश में लग जाता है| इस कार्य में शरीर की मदद करनी चाहिए| यदि उचित खान-पान और अनुकूल औषधियों का सेवन किया जाए, तो शरीर अपने को स्वच्छ भी कर लेगा और उसका पता भी नहीं चलेगा| अन्यथा सर्दी, जुकाम की छोटी-मोटी बीमारियॉं भी हो सकती हैं| तो क्या करें इस ऋतु परिवर्तन के साथ अपना तालमेल बैठाने के लिए-
* एक तो सीधी हवा (जिसे फगुनी हवा कहते हैं) और सीधी धूप से बचें| ये अच्छी लगेंगी, लेकिन नुकसान कर सकती है|
* तेल की नियमित मालिश हवा और धूप के दुष्प्रभाव से त्वचा की ही रक्षा नहीं करेगी, बल्कि सामान्य स्वास्थ्य को भी उन्नत बनाएगी| सुगंधित तेल या तिल का तेल लाभकर होगा| आयुर्वेद में कहा भी गया है- घृतात् दश गुणं तैलं, मर्दने न तु खादने| यानी तेल, घी से दस गुना अधिक लाभकर है, किंतु खाने में नहीं मालिश करने में|
* आजकल चंदन और अगुरु तो दुर्लभ हो गए हैं, किंतु यदि व्यवहार में ला सकें, तो शरीर पर चंदन का लेप लगाएँ| यदि यह संभव नहीं है, तो किसी अन्य उबटन का इस्तेमाल कर सकते हैं| चेहरे पर चिरौंजी के दानों का उबटन (दूध के साथ पीसकर) बहुत चमत्कारी प्रभाव डालना है| शरीर पर बेसन या मसूर की दाल (दूध में भिगोकर पिसी हुई) का उबटन भी लाभकारी है|
* सर्दियों में नहाना शायद कम हो गया हो, लेकिन वसंत में रोज नहाना शुरू कर दें| स्नान के बाद कोई सुगंधित द्रव्य शरीर पर लगाएँ तो सुखकर रहेगा|
* दिन में सोना अत्यंत हानिकर है| वसंत में तो दिन के शयन से जरूर बचें| गर्मियॉं आने पर दिन में सोने का आनंद ले सकते हैं|
* स्त्री-पुरुष सभी को इस मौसम में नियमित व्यायाम अवश्य करना चाहिए| प्राणायाम, जॉगिंग, नृत्य या एरोबिक व्यायाम हितकर हैं|
* संभव हो तो शरीर शोधन के लिए योग्य आयुर्वेदिक चिकित्सक की देखरेख में पंचकर्म कराएँ|
आहार
सर्दियों में घृतपूरित गरिष्ठ आहार की यदि आदत पड़ गई है, तो उसे अब बदल दें| हल्के भोजन की तरफ बढ़े| शहद का सेवन अवश्य करें| इससे श्‍लेष्मा (कफ) को बाहर निकालने में मदद मिलेगी| आसव, आरिष्ट का सेवन भी कर सकते हैं| गेहूँ और यव (जौ) के बने पदार्थ इस ऋतु में हितकर हैं| खट्टी चीजें अधिक न लें| मौसमी फल और सब्जियॉं हर ऋतु में लाभकर होती हैं, लेकिन खट्टे फलों से बचें|

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